Saturday 14 December 2013

दूकान की बिक्री तत्काल प्रभाव से बढ़ेगी

१.“श्री शुक्ले महा-शुक्ले कमल-दल निवासे श्री महालक्ष्मी नमो नमः। लक्ष्मी माई, सत्त की सवाई। आओ, चेतो, करो भलाई। ना करो, तो सात समुद्रों की दुहाई। ऋद्धि-सिद्धि खावोगी, तो नौ नाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई।”

विधि- घर से नहा-धोकर दुकान पर जाकर अगर-बत्ती जलाकर उसी से लक्ष्मी जी के चित्र की आरती करके, गद्दी पर बैठकर, १ माला उक्त मन्त्र की जपकर दुकान का लेन-देन प्रारम्भ करें। आशातीत लाभ होगा।

२.  “भँवरवीर, तू चेला मेरा। खोल दुकान कहा कर मेरा। उठे जो डण्डी बिके जो माल, भँवरवीर सोखे नहिं जाए।।” 
विधि- १॰ किसीशुभ रविवार से उक्त मन्त्र की १० माला प्रतिदिन के नियम से दस दिनों में १०० माला जप कर लें। केवल रविवार के ही दिन इस मन्त्र का प्रयोग किया जाता है। प्रातः स्नान करके दुकान पर जाएँ। एक हाथ में थोड़े-से काले उड़द ले लें। फिर ११ बार मन्त्र पढ़कर, उन पर फूँक मारकर दुकान में चारों ओर बिखेर दें। सोमवार को प्रातः उन उड़दों को समेट कर किसी चौराहे पर, बिना किसी के टोके, डाल आएँ। इस प्रकार चार रविवार तक लगातार, बिना नागा किए, यह प्रयोग करें।

पारिवारिक अशान्ती, आपसी वैचारिक मतभेदो का हारक मन्त्र :-

कभी कभी ग्रह दोष अथवा अन्य किन्ही बाह्य या आन्तरिक कारणों के फलस्वरूप पति-पत्नि,पिता-पुत्र,भाई-भाई अथवा अन्य किन्ही सदस्यों के बीच आपसी मतभेद उत्पन होकर घर परिवार की शान्ती में विघ्न उत्पन हो जाता है। ओर ऎसा प्रतीत होता है कि जैसे सभी पारिवारिक सम्बंध बिगडते जा रहे हैं, जिनके कारण मन अशान्त एवं अधीर हो उठता है। हर समय कुछ अनिष्ट हो जाने का भय मन में बना रहता है। यहाँ मैं जो मन्त्र आपको बता रहा हूँ----ये जानिए कि ऎसी किसी भी स्थिति के उन्मूलन के लिए ये मन्त्र सचमुच रामबाण औषधि का कार्य करता है। ऎसा नहीं कि इसके लिए आपको कोई पूजा अनुष्ठान करना पडेगा या अन्य किसी प्रकार की कोई सामग्री, कोई माला इत्यादि की जरूरत पडेगी। न कोई पाठ पूजा, न सामग्री, न माला या अन्य कैसे भी नियम, विधि-विधान की कोई आवश्यकता नहीं और न ही समय का कोई निश्चित बन्धन। आप अपनी सुविधा अनुसार जैसा और जब, जितनी मात्रा में चाहें उतना जाप कर सकते हैं। बस मन्त्र एवं मिलने वाले उसके सुफल के बारे में श्रद्धा बनाए रखिए तो समझिए कुछ ही दिनों में आपको इसका प्रत्यक्ष लाभ दिखलाई पडने लगेगा। मन्त्र है :- ॐ क्लीं विघ्न क्लेश नाशाय हुँ फट.......................

दैनिक परेशानियों कुछ अचूक परखे हुए उपाय .....................................................

मनुष्य के जीवन में आए दिन परेशानियां आती रहती है। यदि कुछ साधारण तांत्रिक प्रयोग किए जाएं तो वह समस्याएं शीघ्र ही समाप्त भी हो जाती हैं। तांत्रिक प्रयोग में एक ऐसे पत्थर का उपयोग किया जाता है जो दिखने में साधारण होता है लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से अपना प्रभाव दिखाता है। उस पत्थर का नाम है गोमती चक्र। गोमती चक्र कम कीमत वाला एक ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी में मिलता है। विभिन्न तांत्रिक कार्यों तथा असाध...्य रोगों में इसका प्रयोग होता है। इसका तांत्रिक उपयोग बहुत ही सरल होता है। जैसे-
1- पति-पत्नी में मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में हलूं बलजाद कहकर फेंद दें, मतभेद समाप्त हो जाएगा।
2- पुत्र प्राप्ति के लिए पांच गोमती चक्र लेकर किसी नदी या तालाब में हिलि हिलि मिलि मिलि चिलि चिलि हुक पांच बोलकर विसर्जित करें, पुत्र प्राप्ति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
3- यदि बार-बार गर्भ गिर रहा हो तो दो गोमती चक्र लाल कपड़े में बांधकर कमर में बांध दें तो गर्भ गिरना बंद हो जाता है।
4- यदि कोई कचहरी जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाहिना पांव रखकर जाए तो उस दिन कोर्ट-कचहरी में सफलता प्राप्त होती है।
5- यदि शत्रु बढ़ गए हों तो जितने अक्षर का शत्रु का नाम है उतने गोमती चक्र लेकर उस पर शत्रु का नाम लिखकर उन्हें जमीन में गाड़ दें तो शत्रु परास्त हो जाएंगे ..


बस ये याद रखे कि गोमती चक्र असली हो और जाग्रत किये हुए हो अन्यथा लाभ के स्थान पर हनी भी हो सकती है ...

इन उपायों से चूहे आपके घर में नहीं आएंगे

अधिकांश घर ऐसे हैं जहां चूहों की समस्या एक आम बात है। चूहों के कारण कई बार अनाज के साथ ही कपड़ों और अन्य मूल्यवान चीजों का नुकसान हो जाता है।
ऐसे में काफी लोग चूहों को मारने के लिए बाजार में मिलने वाली दवा का प्रयोग करते हैं। ये दवा खाकर चूहे घर में ही इधर-उधर मर जाते हैं, जिसकी बदबू पूरे घर में फैल जाती है।

यदि आपके घर में चूहों के कारण अत्यधिक नुकसान होता है और उन्हें मारने से फैलने वाली बदबू से भी मुक्ति पाना चाहते हैं तो यह उपाय करें। उपाय के अनुसार बाजार से मिट्टी का एक घड़ा या मटका लेकर आएं। इसके बाद यह मटका घर लाकर इस प्रकार फोड़ें कि उसके कम से कम चार टुकड़े हो जाएं।

मटके के चार टुकड़े लेकर काजल से उनके ऊपर चूहे भगाने का चमत्कारी मंत्र लिखें। मंत्र: ऊँ क्रौं क्रां। यह मंत्र मटके के टुकड़ों पर लिखने के बाद चारों टुकड़े घर के चारों कोनों में रख दें या गाड़ दें। यह एक तांत्रिक उपाय है। इस संबंध में किसी भी प्रकार की शंका या संदेह न करें, अन्यथा इसका प्रभाव निष्फल हो जाता है।

एक अन्य टोटका: जिस घर में चूहों के कारण परेशानियां रहती हैं और बार-बार वस्तुओं का नुकसान होता है उन्हें ऊंट के दाएं पैर का नाखुन का उपाय करना चाहिए।

यदि कहीं से आपको ऊंट के दाएं पैर का नाखुन मिल जाए तो उसे अपने घर ले आएं और घर में जहां चूहे रहते हैं उस स्थान पर वह नाखुन रख दें। इस नाखुन को स्पर्श करते ही चूहे आपके घर से भागने लगेंगे।

ज्योतिष में चूहों के संबंध में भी कुछ शकुन और अपशकुन बताए गए हैं।
ऐसा माना जाता है कि यदि किसी जहाज से चूहे भागने लगे तो समझ लेना चाहिए कि कोई दुर्घटना होने वाली है। जहाज पानी में डूब सकता है।

यदि घर में काले चूहे एकदम काफी अधिक हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि घर में कोई सदस्य किसी गंभीर बीमारी की गिरफ्त में आ सकता है।

जब घर में चूहे लकड़ी के फर्नीचर को कुतरना शुरू कर दे तो समझ लेना चाहिए कि उस घर में कोई बुरी घटना हो सकती है या कोई दुखद समाचार मिल सकता है।

यदि किसी घर में कोई छोटा बच्चा है और उस बच्चे का दूध का दांत गिरने पर चूहे ले जाए और बिल में डाल दे तो समझ लेना चाहिए कि बच्चे के दांत जीवनभर बहुत मजबूत रहेंगे।

शास्त्रों के अनुसार प्रथम पूज्य भगवान श्रीगणेश का वाहन चूहा ही है। इसी वजह से अकारण चूहों को मारने से जीव हत्या पाप भी लगता है। अत: कोशिश यही करना चाहिए चूहों को घर से भगा दिया जाए। उन्हें मारने उचित नहीं है। यदि चूहे घर में ही मर जाते हैं तो घर में दुर्गंध फैल जाती है, जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। मरे हुए चूहों की बदबू से घर का वातावरण भी प्रदूषित हो जाता है।

शास्त्रों के अनुसार सभी देवी-देवताओं के वाहन अलग-अलग और विचित्र बताए हैं। किसी भी देवता का वाहन अज्ञान और अंधकार की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसका नियंत्रण वह देवता करते हैं। गणेशजी का वाहन है मूषक यानि चूहा। गणपति को विशालकाय बताया गया है जबकि उनका वाहन मूषक अति लघुकाय है।

चूहे को धान्य अर्थात् अनाज का शत्रु माना जाता है और श्रीगणेश का उस नियंत्रण रहता है। अत: श्रीगणेश का वाहन मूषक यह संकेत देता है कि हमें भी हमारे अनाज, संपत्ति आदि को बचाकर रखने के लिए विनाशक जीव-जंतुओं पर नियंत्रण करना चाहिए। वहीं हमारे जीवन में जो लोग हमें नुकसान पहुंचा सकते हैं उन पर भी पूर्ण नियंत्रण किया जाना चाहिए। ताकि जीवन की सभी समस्याएं समाप्त हो जाए और हम सफलताएं प्राप्त कर सके।
इन सभी बातों को अपनाने से हमारे जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाएंगी। धन, संपत्ति और धर्म के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएं प्राप्त होंगी। घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान मिलेगा

Sunday 8 December 2013

शिव अभिषेक करें इन वस्तुओं से और अभीष्ट सिद्धि प्राप्त करें .

सात्त्विक समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु - दुग्ध एवं तीर्थजल से
बच्चों के जन्मोत्सव एवं उनके यसस्वी भविष्य के लिए -दुग्ध एवं तीर्थजल से
अपने दांपत्य जीवन में प्रीति वर्धन हेतु तथा गृह कार्य क्लेश निवारणार्थ - दुग्ध एवं शहद  से
व्यापार में उतरोत्तर वृद्धि तथा लक्ष्मी प्राप्ति के लिए - गन्ने का रस
प्रियजनों की रोग शांति के लिए - कुशोदक से
पुत्र प्राप्ति तथा सुगर रोग शमनार्थ - गोदुग्ध एवं शक्कर मिश्रित जल से
वंश वृद्धि के निमित्त - घृत से
बुद्धि की जड़ता तथा कमजोरी दूर करने के लिए - शर्करा मिश्रित जल से
शत्रु विनाश के लिए - सरसों के तेल से
धन की वृद्धि एवं ऋण मुक्ति तथा जन्मपत्रिका में मंगल दोष सम्बन्धी निवारणार्थ - शहद से


अर्थात 

जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
• असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
• भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें।
• लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
• धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।
• तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
• इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है ।
• पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।
• रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
• ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।
• सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
• प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जाती है।
• शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
• सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है।
• शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है।
• पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
• गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।
• पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें।

सभी प्रकार की आपदाओं के निवारण का एक सिद्ध प्रयोग

श्री बटुक भैरव स्तोत्र
 
।। पूर्व-पीठिका ।।
मेरु-पृष्ठ पर सुखासीन, वरदा देवाधिदेव शंकर से -
पूछा देवी पार्वती ने, अखिल विश्व-गुरु परमेश्वर से ।
जन-जन के कल्याण हेतु, वह सर्व-सिद्धिदा मन्त्र बताएँ -
जिससे सभी आपदाओं से साधक की रक्षा हो, वह सुख पाए ।
शिव बोले, आपद्-उद्धारक मन्त्र, स्तोत्र हूं मैं बतलाता,
देवि ! पाठ जप कर जिसका, है मानव सदा शान्ति-सुख पाता ।
।। ध्यान ।।
सात्विकः-
बाल-स्वरुप वटुक भैरव-स्फटिकोज्जवल-स्वरुप है जिनका,
घुँघराले केशों से सज्जित-गरिमा-युक्त रुप है जिनका,
दिव्य कलात्मक मणि-मय किंकिणि नूपुर से वे जो शोभित हैं,
भव्य-स्वरुप त्रिलोचन-धारी जिनसे पूर्ण-सृष्टि सुरभित है ।
कर-कमलों में शूल-दण्ड-धारी का ध्यान-यजन करता हूँ,
रात्रि-दिवस उन ईश वटुक-भैरव का मैं वन्दन करता हूँ ।
राजसः-
नवल उदीयमान-सविता-सम, भैरव का शरीर शोभित है,
रक्त-अंग-रागी, त्रैलोचन हैं जो, जिनका मुख हर्षित है ।
नील-वर्ण-ग्रीवा में भूषण, रक्त-माल धारण करते हैं,
शूल, कपाल, अभय, वर-मुद्रा ले साधक का भय हरते हैं ।
रक्त-वस्त्र बन्धूक-पुष्प-सा जिनका, जिनसे है जग सुरभित,
ध्यान करुँ उन भैरव का, जिनके केशों पर चन्द्र सुशोभित ।
तामसः-
तन की कान्ति नील-पर्वत-सी, मुक्ता-माल, चन्द्र धारण कर,
पिंगल-वर्ण-नेत्रवाले वे ईश दिगम्बर, रुप भयंकर ।
डमरु, खड्ग, अभय-मुद्रा, नर-मुण्ड, शुल वे धारण करते,
अंकुश, घण्टा, सर्प हस्त में लेकर साधक का भय हरते ।
दिव्य-मणि-जटित किंकिणि, नूपुर आदि भूषणों से जो शोभित,
भीषण सन्त-पंक्ति-धारी भैरव हों मुझसे पूजित, अर्चित ।
।। १०८ नामावली श्रीबटुक-भैरव ।।
भैरव, भूतात्मा, भूतनाथ को है मेरा शत-शत प्रणाम ।
क्षेत्रज्ञ, क्षेत्रदः, क्षेत्रपाल, क्षत्रियः भूत-भावन जो हैं,
जो हैं विराट्, जो मांसाशी, रक्तपः, श्मशान-वासी जो हैं,
स्मरान्तक, पानप, सिद्ध, सिद्धिदः वही खर्पराशी जो हैं,
वह सिद्धि-सेवितः, काल-शमन, कंकाल, काल-काष्ठा-तनु हैं ।
उन कवि-स्वरुपः, पिंगल-लोचन, बहु-नेत्रः भैरव को प्रणाम ।
वह देव त्रि-नेत्रः, शूल-पाणि, कंकाली, खड्ग-पाणि जो हैं,
भूतपः, योगिनी-पति, अभीरु, भैरवी-नाथ भैरव जो हैं,
धनवान, धूम्र-लोचन जो हैं, धनदा, अधन-हारी जो हैं,
जो कपाल-भृत हैं, व्योम-केश, प्रतिभानवान भैरव जो हैं,
उन नाग-केश को, नाग-हार को, है मेरा शत-शत प्रणाम ।
कालः कपाल-माली त्रि-शिखी कमनीय त्रि-लोचन कला-निधि
वे ज्वलक्षेत्र, त्रैनेत्र-तनय, त्रैलोकप, डिम्भ, शान्त जो हैं,
जो शान्त-जन-प्रिय, चटु-वेष, खट्वांग-धारकः वटुकः हैं,
जो भूताध्यक्षः, परिचारक, पशु-पतिः, भिक्षुकः, धूर्तः हैं,
उन शुर, दिगम्बर, हरिणः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो पाण्डु-लोचनः, शुद्ध, शान्तिदः, वे जो हैं भैरव प्रशान्त,
शंकर-प्रिय-बान्धव, अष्ट-मूर्ति हैं, ज्ञान-चक्षु-धारक जो हैं,
हैं वहि तपोमय, हैं निधीश, हैं षडाधार, अष्टाधारः,
जो सर्प-युक्त हैं, शिखी-सखः, भू-पतिः, भूधरात्मज जो हैं,
भूधराधीश उन भूधर को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
नीलाञ्जन-प्रख्य देह-धारी, सर्वापत्तारण, मारण हैं,
जो नाग-यज्ञोपवीत-धारी, स्तम्भी, मोहन, जृम्भण हैं,
वह शुद्धक, मुण्ड-विभूषित हैं, जो हैं कंकाल धारण करते,
मुण्डी, बलिभुक्, बलिभुङ्-नाथ, वे बालः हैं, वे क्षोभण हैं ।
उन बाल-पराक्रम, दुर्गः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो कान्तः, कामी, कला-निधिः, जो दुष्ट-भूत-निषेवित हैं,
जो कामिनि-वश-कृत, सर्व-सिद्धि-प्रद भैरव जगद्-रक्षाकर हैं,
जो वशी, अनन्तः हैं भैरव, वे माया-मन्त्रौषधि-मय हैं,
जो वैद्य, विष्णु, प्रभु सर्व-गुणी, मेरे आपद्-उद्धारक हैं ।
उन सर्व-शक्ति-मय भैरव-चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम ।
।। फल-श्रुति ।।
इन अष्टोत्तर-शत नामों को-भैरव के जो पढ़ता है,
शिव बोले – सुख पाता, दुख से दूर सदा वह रहता है ।
उत्पातों, दुःस्वप्नों, चोरों का भय पास न आता है,
शत्रु नष्ट होते, प्रेतों-रोगों से रक्षित रहता है ।
रहता बन्धन-मुक्त, राज-भय उसको नहीं सताता है,
कुपित ग्रहों से रक्षा होती, पाप नष्ट हो जाता है ।
अधिकाधिक पुनुरुक्ति पाठ की, जो श्रद्धा-पूर्वक करते हैं,
उनके हित कुछ नहीं असम्भव, वे निधि-सिद्धि प्राप्त करते हैं ।

Saturday 30 November 2013

पूजन में फूलों का महत्व

गणेशजी
को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं! गणपतिजी को दूर्वा अधिक
प्रिय है। अतः सफेद या हरी दूर्वा चढ़ाना चाहिए। दूर्वा की फुनगी में
तीन या पाँच पत्ती होना चाहिए। गणेशजी पर तुलसी कभी न चढ़ाएँ।
पद्मपुराण, आचार रत्न
में लिखा है कि 'न तुलस्या गणाधिपम्‌' अर्थात तुलसी से गणेशजी की पूजा
कभी न की जाए। कार्तिक माहात्म्य में भी कहा है कि 'गणेश तुलसी पत्र
दुर्गा नैव तु दूर्वाया' अर्थात गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की
दूर्वा से पूजा न करें।
भगवान शंकर पर फूल
चढ़ाने का बहुत अधिक महत्व है। तपः शील सर्वगुण संपन्न वेद में निष्णात
किसी ब्राह्मण को सौ सुवर्ण दान करने पर जो फल प्राप्त होता है, वह शिव
पर सौ फूल चढ़ा देने से प्राप्त हो जाता है।
गुड़हल का लाल फूल

भगवान
विष्णु के लिए जो-जो पत्र-पुष्प बताए गए हैं, वे सब भगवान शिव को भी
प्रिय हैं। केवल केतकी (केवड़े) का निषेध है। शास्त्रों ने कुछ फूलों के
चढ़ाने से मिलने वाले फल का तारतम्य बतलाया है।

जैसे दस सुवर्ण दान का
फल एक आक के फूल को चढ़ाने से मिलता है, उसी प्रकार हजार आक के फूलों का
फल एक कनेर से और हजार कनेर के बराबर एक बिल्व पत्र से मिलता है। समस्त
फूलों में सबसे बढ़कर नीलकमल होता है।
फूल सुगंध और सौंदर्य के प्रतीक हैं। हम पूजा के दौरान भगवान को इसी भाव से फूल चढ़ाते हैं कि हमारा जीवन भी सुगंध और सौंदर्य से भरा हो। वैसे तो भगवान भाव के भूखे हैं। लेकिन पूजा विधान में अलग-अलग देवता को अलग-अलग रंग के फूल चढ़ाने की परंपरा है। यह सिर्फ परंपरा ही नहीं है, इसका देवता विशेष के संदर्भ में वैज्ञानिक महत्व भी है। स्वभावत: जिस देवता को जो रंग प्रिय है, हम उस रंग के फूल अर्पित करते हैं तो पूजा सफल होती है। आइए जानें कौन देवता किस रंग के फूल से प्रसन्न होते हैं....

सूर्य: लाल फूल

सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं। पूजा में सूर्य को लाल रंग के फूल चढ़ाने का विधान हैं। सूर्य को लालिमा प्रिय है। वे तेज के पुंज हैं। लाल रंग तेज का प्रतीक है। इसलिए सूर्य पूजा में लाल कनेर, लाल कमल, केसर या पलाश के फूल चढ़ाने का विधान है।

गणेश : लाल फूल

गणेश प्रथम पूज्य हैं। वे मंगलमूर्ति हैं, मंगल के प्रतीक, मंगल करने वाले। गणेश को लाल रंग के फूल प्रिय हैं। लाल रंग मंगल का प्रतीक है। गणेश पूजा में तुलसी दल का निषेध है लेकिन दुर्वा चढ़ाई जाती है। गणेश विराट व्यक्तित्व वाले हैं लेकिन जिस तरह चूहा उनका वाहन है वैसे ही दुर्वा उन्हें प्रिय है। यह इस बात का प्रतीक है कि जितना बड़ा व्यक्तित्व होगा वह बहुत छोटे के प्रति भी अपनत्व का भाव रखेगा। विराट व्यक्तित्व वाले गणेश को घास के तिनकों के रूप में दुर्वा इसी भाव में प्रिय है।

शिव: सफेद फूल

शिव को कनेर, और कमल के अलावा लाल रंग के फूल प्रिय नहीं हैं। सफेद रंग के फूलों से शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं। कारण शिव कल्याण के देवता हैं। सफेद शुभ्रता का प्रतीक रंग है। जो शुभ्र है, सौम्य है, शाश्वत है वह श्वेत भाव वाला है। यानि सात्विक भाव वाला। पूजा में शिव को आक और धतूरा के फूल अत्यधिक प्रिय हैं। इसका कारण शिव वनस्पतियों के देवता हैं। अन्य देवताओं के लिए जो फूल त्याज्य हैं, वे शिव को प्रिय हैं। उन्हें मौलसिरी चढ़ाने का उल्लेख मिलता है। शिव को केतकी और केवड़े के फूल चढ़ाने का निषेध किया गया है।

विष्णु: पीले फूल

विष्णु पीतांबरधारी हैं। पीला रंग उन्हें प्रिय है। सामान्यतया विष्णु पूजा में सभी रंगों के फूल अर्पित किए जाते हैं लेकिन पीतांबरप्रिय होने के कारण पीले रंग का फूल अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। कमल का फूल विष्णु को बहुत प्रिय है।

देवी: लाल और सफेद फूल

लक्ष्मी को लाल और पीले, दुर्गा को लाल और सरस्वती को सफेद रंग के फूल अर्पित करने की परंपरा है। लक्ष्मी सौभाग्य की प्रतीक है अत: लाल रंग प्रिय है। विष्णु की पत्नी होने से वे पीले रंग के फूल से भी प्रसन्न होती हैं। दुर्गा शक्ति की प्रतीक है। लाल रंग शौर्य का रंग है। अत: वे लाल रंग के फूल से प्रसन्न होती हैं। सरस्वती ज्ञान और संगीत की देवी है। शुभ्रता की प्रतीक। उन्हें सफेद रंग के कमल पुष्प अर्पित किए जाते हैं।

भगवान गणेश को गुड़हल
का लाल फूल विशेष रूप से प्रिय होता है। इसके अलावा चाँदनी, चमेली या
पारिजात के फूलों की माला बनाकर पहनाने से भी गणेश जी प्रसन्न होते हैं

धन प्राप्ति हेतु

पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल पोटली बना लें। इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर आलमारी, तिजोरी, भण्डार में कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है। इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।

  कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करके देखें-
किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रुई धुनने वाले से थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।

  जिस किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें। कहीं से नागकेसर के फूल प्राप्त कर, किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पाँच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही से धोकर पवित्र कर सकते हो। तो यथाशक्ति करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरन्तर करते रहें। इस पूजा में एक दिन का भी नागा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर आपकी पूजा खण्डित हो जायेगी। आपको फिर किसी पूर्णिमा के दिन पड़नेवाले सोमवार को प्रारम्भ करने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इस एक माह के लगभग जैसी भी श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना बन पड़े, करें। भगवान को चढ़ाए प्रसाद के ग्रहण करने के उपरान्त ही कुछ खाएँ। अन्तिम दिन चढ़ाए गये फूल तथा बिल्वपत्रों में से एक अपने साथ श्रद्धाभाव से घर ले आएँ। इन्हें घर, दुकान, फैक्ट्री कहीं भी पैसे रखने के स्थान में रख दें। धन-सम्पदा अर्जित कराने में नागकेसर के पुष्प चमत्कारी प्रभाव दिखलाते हैं।

नागकेसर को तंत्र के अनुसार एक बहुत ही शुभ वनस्पति माना गया है। काली मिर्च के समान गोल या कबाब चीनी की भांति दाने में डंडी लगी हुई गेरू के रंग का यह गोल फूल होता है। इसकी गिनती पूजा- पाठ के लिए पवित्र पदार्थो में की जाती है।तंत्र के अनुसार नागकेसर एक धनदायक वस्तु है। नीचे लिखे इस धन प्राप्ति के प्रयोग को अपनाकर आप भी धनवान बन सकते हैं।
- किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें।- किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पांच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, दही, शक्कर, घी, गंगाजल, आदि से धोकर पवित्र करें। - पांच बिल्व पत्र और नागकेशर के फूल की संख्या हर बार एक ही रखना चाहिए।- अगली पूर्णिमा तक निरंतर चढ़ाते रहे।- आखिरी दिन चढ़ाये गये फूल तथा बिल्व पत्रों में से एक अपने घर ले आए। धन सम्पदा अर्जित करवाने में नागकेशर फूल चमत्कारी प्रभाव दिखाते हैं।

वशीकरण प्रयोग

होली की रात्रि में किया गया वशीकरण कभी बेकार नहीं जाता है , वैसे वशीकरण के लिए ज्येष्ठा, उत्तरसाढ़ा , अनुराधा , रोहिणी, मूल , अश्लेशा नक्षत्र और रविवार या शुक्रवार का दिन होना चाहिए , या सर्वासिद्धि योग में वशीकरण प्रयोग किया जा सकता है ,
नोट :- किशी गलत कामना वश किया गया प्रयोग जातक को उल्टा भी पड़ सकता है , इसलिए इसका गलत प्रयोग ना करे ,

पति -पत्नी में मतभेद हो तो ये उपाय करे :- शुक्रवार के दिन एक शहद की छोटी शीशी लेकर शीशी के अन्दर (पति/पत्नी) अपना छोटे आकर का फोटो डाले और रात को बिस्तर के निचे ही दबा कर रखे ,,
मंत्र :- ॐ नमो कामख्या देव्याय ((पति/पत्नी) )मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा,..
उपाय कैसे करे :- होली के दिन जिसे अपने अनुकूल करना हो, उसके नाम से इस मंत्र का 1100 जाप करे
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अगर बीमार व्यक्ति ज्यादा गम्भीर हो, तो जौ का 125 पाव (सवा पाव) आटा लें। उसमें साबुत काले तिल मिला कर रोटी बनाएं। अच्छी तरह सेंके, जिससे वे कच्ची न रहें। फिर उस पर थोड़ा सा तिल्ली का तेल और गुड़ डाल कर पेड़ा बनाएं और एक तरफ लगा दें। फिर उस रोटी को बीमार व्यक्ति के ऊपर से 7 बार वार कर किसी भैंसे को खिला दें। पीछे मुड़ कर न देखें और न कोई आवाज लगाए। भैंसा कहाँ मिलेगा, इसका पता पहले ही मालूम कर के रखें। भैंस को रोटी नहीं खिलानी है, केवल भैंसे को ही श्रेष्ठ रहती है। शनि और मंगलवार को ही यह कार्य करें।
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 किसी पुरानी मूर्ति के ऊपर घास उगी हो तो शनिवार को मूर्ति का पूजन करके, प्रात: उसे घर ले आएं। उसे छाया में सुखा लें। जिस कमरे में रोगी सोता हो, उसमें इस घास में कुछ धूप मिला कर किसी भगवान के चित्र के आगे अग्नि पर सांय, धूप की तरह जलाएं और मन्त्र विधि से ´´ ॐ माधवाय नम:। ॐ अनंताय नम:। ॐ अच्युताय नम:।´´ मन्त्र की एक माला का जाप करें। कुछ दिन में रोगी स्वस्थ हो जायेगा। दान-धर्म और दवा उपयोग अवश्य करें। इससे दवा का प्रभाव बढ़ जायेगा।

लगातार धनहानि होने पर :

आप यह प्रयोग कर सकते हो। यह प्रयोग देखने मे तो साधरण हैं परंतु प्रभाव अचूक हैं। रविवार की रात्रि मे ही यह प्रयोग किया जा सकता हैं। पहले आप एक लोटा ले उसमे जल भर दे। अब इस लोटे मे थोडा सा दूध डाले। इस लोटे को किसी चीज से ढक दे। अब इस लोटे को सिरहने रखकर सो जाए। सोमवार सुबह के समय पहले स्नान कर ले फिर इस लोटे को किसी कीकर/बबूल के वृक्ष के पास ले जाओ और प्रेम से कीकर को अर्पित कर दो। बिना पीछे देखे घर आ जाओ। सात सोमवार ऐसा करने से निश्चित ही धन की हर समस्या दूर हो जाती हैं और धन की वजह से कोई कार्य नही रुकता। यह प्रयोग अजमाया हैं और प्रमाणित हैं। विपरित परिस्थीति मे सहायक है। क्योकि कीकर के पेड पर भूत का निवास होता हैं। सोमवार चन्द्र का दिवस हैं। भूत प्रेत कही ना कही चन्द्र से सम्बन्ध रखते हैं। इसलिए बार बार ऐसा करने से भूत प्रेत उस व्यक्ति के सहायक बनकर उसकी दुखोः को कम करने मे अपना सहयोग प्रदान करते हैं। यह बहुत ही शक्तिशाली होते हैं और इनको प्रसन्न करने मे अधिक समय नही लगता हैं। यदि कोई सोमवार छुट गया तो गिनती दोबारा से शुरु हो जायेगी।

Tuesday 29 October 2013

रावण सहिंता के किस्मत चमकाने वाले दुर्लभ अति दुर्लभ तांत्रिक उपाय .....................

नागेश्वर तंत्रः

नागेश्वर को प्रचलित भाषा में ‘नागकेसर’ कहते हैं। काली मिर्च के समान गोल, गेरु के रंग का यह गोल फूल घुण्डीनुमा होता है। पंसारियों की दूकान से आसानी से प्राप्त हो जाने वाली नागकेसर शीतलचीनी (कबाबचीनी) के आकार से मिलता-जुलता फूल होता है। यही यहाँ पर प्रयोजनीय माना गया है।
१॰ किसी भी पूर्णिमा के दिन बुध की होरा में गोरोचन तथा नागकेसर खरीद कर ले आइए। बुध की होरा काल में ही कहीं से अशोक के वृक्ष का एक अखण्डित पत्ता तोड़कर लाइए। गोरोचन तथा नागकेसर को दही में घोलकर पत्ते पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाएँ। जैसी भी श्रद्धाभाव से पत्ते पर बने स्वस्तिक की पूजा हो सके, करें। एक माह तक देवी-देवताओं को धूपबत्ती दिखलाने के साथ-साथ यह पत्ते को भी दिखाएँ। आगामी पूर्णिमा को बुध की होरा में यह प्रयोग पुनः दोहराएँ। अपने प्रयोग के लिये प्रत्येक पुर्णिमा को एक नया पत्ता तोड़कर लाना आवश्यक है। गोरोचन तथा नागकेसर एक बार ही बाजार से लेकर रख सकते हैं। पुराने पत्ते को प्रयोग के बाद कहीं भी घर से बाहर पवित्र स्थान में छोड़ दें।
२॰ किसी शुभ-मुहूर्त्त में नागकेसर लाकर घर में पवित्र स्थान पर रखलें। सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करें और प्रतिमा पर चन्दन-पुष्प के साथ नागकेसर भी अर्पित करें। पूजनोपरान्त किसी मिठाई का नैवेद्य शिवजी को अर्पण करने के बाद यथासम्भव मन्त्र का भी जाप करें ‘ॐ नमः शिवाय’। उपवास भी करें। इस प्रकार २१ सोमवारों तक नियमित साधना करें। वैसे नागकेसर तो शिव-प्रतिमा पर नित्य ही अर्पित करें, किन्तु सोमवार को उपवास रखते हुए विशेष रुप से साधना करें। अन्तिम अर्थात् २१वें सोमवार को पूजा के पश्चात् किसी सुहागिनी-सपुत्रा-ब्राह्मणी को निमन्त्रण देकर बुलाऐं और उसे भोजन, वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर आदर-पूर्वक विदा करें।
इक्कीस सोमवारों तक नागकेसर-तन्त्र द्वारा की गई यह शिवजी की पूजा साधक को दरिद्रता के पाश से मुक्त करके धन-सम्पन्न बना देती है।
३॰ पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल पोटली बना लें। इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर आलमारी, तिजोरी, भण्डार में कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है। इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।

४॰ कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करके देखें-
किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रुई धुनने वाले से थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।

५॰ जिस किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें। कहीं से नागकेसर के फूल प्राप्त कर, किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पाँच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही से धोकर पवित्र कर सकते हो। तो यथाशक्ति करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरन्तर करते रहें। इस पूजा में एक दिन का भी नागा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर आपकी पूजा खण्डित हो जायेगी। आपको फिर किसी पूर्णिमा के दिन पड़नेवाले सोमवार को प्रारम्भ करने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इस एक माह के लगभग जैसी भी श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना बन पड़े, करें। भगवान को चढ़ाए प्रसाद के ग्रहण करने के उपरान्त ही कुछ खाएँ। अन्तिम दिन चढ़ाए गये फूल तथा बिल्वपत्रों में से एक अपने साथ श्रद्धाभाव से घर ले आएँ। इन्हें घर, दुकान, फैक्ट्री कहीं भी पैसे रखने के स्थान में रख दें। धन-सम्पदा अर्जित कराने में नागकेसर के पुष्प चमत्कारी प्रभाव दिखलाते हैं।

मार्जारी तंत्र :

मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली सिंह परिवार का जीव है। केवल आकार का अंतर इसे सिंह से पृथक करता है, अन्यथा यह सर्वांग में, सिंह का लघु संस्करण ही है। मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली की दो श्रेणियाँ होती हैं- पालतू और जंगली। जंगली को वन बिलाव कहते हैं। यह आकार में बड़ा होता है, जबकि घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ छोटी होती हैं। वन बिलाव को पालतू नहीं बनाया जा सकता, किन्तु घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ पालतू हो जाती हैं। अधिकाशतः यह काले रंग की होती हैं, किन्तु सफेद, चितकबरी और लाल (नारंगी) रंग की बिल्लियाँ भी देखी जाती हैं।
घरों में घूमने वाली बिल्ली (मादा) भी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कराने में सहायक होती है, किन्तु यह तंत्र प्रयोग दुर्लभ और अज्ञात होने के कारण सर्वसाधारण के लिए लाभकारी नहीं हो पाता। वैसे यदि कोई व्यक्ति इस मार्जारी यंत्र का प्रयोग करे तो निश्चित रूप से वह लाभान्वित हो सकता है।
गाय, भैंस, बकरी की तरह लगभग सभी चौपाए मादा पशुओं के पेट से प्रसव के पश्चात्‌ एक झिल्ली जैसी वस्तु निकलती है। वस्तुतः इसी झिल्ली में गर्भस्थ बच्चा रहता है। बच्चे के जन्म के समय वह भी बच्चे के साथ बाहर आ जाती है। यह पॉलिथीन की थैली की तरह पारदर्शी लिजलिजी, रक्त और पानी के मिश्रण से तर होती है। सामान्यतः यह नाल या आँवल कहलाती हैं।
इस नाल को तांत्रिक साधना में बहुत महत्व प्राप्त है। स्त्री की नाल का उपयोग वन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्रियों के लिए परम हितकर माना गया है। वैसे अन्य पशुओं की नाल के भी विविध उपयोग होते हैं। यहाँ केवल मार्जारी (बिल्ली) की नाल का ही तांत्रिक प्रयोग लिखा जा रहा है, जिसे सुलभ हो, इसका प्रयोग करके लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकता है।
जब पालतू बिल्ली का प्रसव काल निकट हो, उसके लिए रहने और खाने की ऐसी व्यवस्था करें कि वह आपके कमरे में ही रहे। यह कुछ कठिन कार्य नहीं है, प्रेमपूर्वक पाली गई बिल्लियाँ तो कुर्सी, बिस्तर और गोद तक में बराबर मालिक के पास बैठी रहती हैं। उस पर बराबर निगाह रखें। जिस समय वह बच्चों को जन्म दे रही हो, सावधानी से उसकी रखवाली करें। बच्चों के जन्म के तुरंत बाद ही उसके पेट से नाल (झिल्ली) निकलती है और स्वभावतः तुरंत ही बिल्ली उसे खा जाती है। बहुत कम लोग ही उसे प्राप्त कर पाते हैं।
अतः उपाय यह है कि जैसे ही बिल्ली के पेट से नाल बाहर आए , उस पर कपड़ा ढँक दें। ढँक जाने पर बिल्ली उसे तुरंत खा नहीं सकेगी। चूँकि प्रसव पीड़ा के कारण वह कुछ शिथिल भी रहती है, इसलिए तेजी से झपट नहीं सकती। जैसे भी हो, प्रसव के बाद उसकी नाल उठा लेनी चाहिए। फिर उसे धूप में सुखाकर प्रयोजनीय रूप दिया जाता है।
धूप में सुखाते समय भी उसकी रखवाली में सतर्कता आवश्यक है। अन्यथा कौआ, चील, कुत्ता आदि कोई भी उसे उठाकर ले जा सकता है। तेज धूप में दो-तीन दिनों तक रखने से वह चमड़े की तरह सूख जाएगी। सूख जाने पर उसके चौकोर टुकड़े (दो या तीन वर्ग इंच के या जैसे भी सुविधा हो) कर लें और उन पर हल्दी लगाकर रख दें। हल्दी का चूर्ण अथवा लेप कुछ भी लगाया जा सकता है। इस प्रकार हल्दी लगाया हुआ बिल्ली की नाल का टुकड़ा लक्ष्मी यंत्र का अचूक घटक होता है।
तंत्र साधना के लिए किसी शुभ मुहूर्त में स्नान-पूजा करके शुद्ध स्थान पर बैठ जाएँ और हल्दी लगा हुआ नाल का सीधा टुकड़ा बाएँ हाथ में लेकर मुट्ठी बंद कर लें और लक्ष्मी, रुपया, सोना, चाँदी अथवा किसी आभूषण का ध्यान करते हुए 54 बार यह मंत्र पढ़ें- ‘मर्जबान उल किस्ता’।
इसके पश्चात्‌ उसे माथे से लगाकर अपने संदूक, पिटारी, बैग या जहाँ भी रुपए-पैसे या जेवर हों, रख दें। कुछ ही समय बाद आश्चर्यजनक रूप से श्री-सम्पत्ति की वृद्धि होने लगती है। इस नाल यंत्र का प्रभाव विशेष रूप से धातु लाभ (सोना-चाँदी की प्राप्ति) कराता है।

दूर्वा तंत्र :

दूर्वा अर्थात्‌ दूब एक विशेष प्रकार की घास है। आयुर्वेद , तंत्र और अध्यात्म में इसकी बड़ी महिमा बताई गई है। देव पूजा में भी इसका प्रयोग अनिवार्य रूप से होता है। गणेशजी को यह बहुत प्रिय है। साधक किसी दिन शुभ मुहूर्त में गणेशजी की पूजा प्रारंभ करे और प्रतिदिन चंदन, पुष्प आदि के साथ प्रतिमा पर 108 दूर्वादल (दूब के टुकड़े) अर्पित करे। धूप-दीप के बाद गुड़ और गिरि का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। इस प्रकार प्रतिदिन दूर्वार्पण करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त हो सकती है। ऐसा साधक जब कभी द्रव्योपार्जन के कार्य से कहीं जा रहा हो तो उसे चाहिए कि गणेश प्रतिमा पर अर्पित दूर्वादलों में से 5-7 दल प्रसाद स्वरूप लेकर जेब में रख ले। यह दूर्वा तंत्र कार्यसिद्धि की अद्‍भुत कुंजी है।

अश्व (वाहन) नाल तंत्र :

नाखून और तलवे की रक्षा के लिए लोग प्रायः घोड़े के पैर में लोहे की नाल जड़वा देते हैं, क्योंकि उन्हें प्रतिदिन पक्की सड़कों पर दौड़ना पड़ता है। यह नाल भी बहुत प्रभावी होती है। दारिद्र्य निवारण के लिए इसका प्रयोग अनेक प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है।
घोड़े की नाल तभी प्रयोजनीय होती है, जब वह अपने आप घोड़े के पैर से उखड़कर गिरी हो और शनिवार के दिन किसी को प्राप्त हो। अन्य दिनों में मिली नाल प्रभावहीन मानी जाती है। शनिवार को अपने आप, राह चलते कहीं ऐसी नाल दिख जाए, भले ही वह घोड़े के पैर से कभी भी गिरी हो उसे प्रणाम करके ‘ॐ श्री शनिदेवाय नमः’ का उच्चारण करते हुए उठा लेना चाहिए।
शनिवार को इस प्रकार प्राप्त नाल लाकर घर में न रखें, उसे बाहर ही कहीं सुरक्षित छिपा दें। दूसरे दिन रविवार को उसे लाकर सुनार के पास जाएँ और उसमें से एक टुकड़ा कटवाकर उसमें थोड़ा सा तांबा मिलवा दें। ऐसी मिश्रित धातु (लौह-ताम्र) की अंगूठी बनवाएँ और उस पर नगीने के स्थान पर ‘शिवमस्तु’ अंकित करा लें। इसके पश्चात्‌ उसे घर लाकर देव प्रतिमा की भाँति पूजें और पूजा की अलमारी में आसन पर प्रतिष्ठित कर दें। आसन का वस्त्र नीला होना चाहिए।
एक सप्ताह बाद अगले शनिवार को शनिदेव का व्रत रखें। सन्ध्या समय पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करें और तेल का दीपक जलाकर, शनि मंत्र ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ का जाप करें। एक माला जाप पश्चात्‌ पुनः अंगूठी को उठाएँ और 7 बार यही मंत्र पढ़ते हुए पीपल की जड़ से स्पर्श कराकर उसे पहन लें। यह अंगूठी बीच की या बगल की (मध्यमा अथवा अनामिका) उँगली में पहननी चाहिए। उस दिन केवल एक बार संध्या को पूजनोपरांत भोजन करें और संभव हो तो प्रति शनिवार को व्रत रखकर पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करते रहें। कम से कम सात शनिवारों तक ऐसा कर लिया जाए तो विशेष लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति को यथासंभव नीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए और कुछ न हो सके तो नीला रूमाल य अंगोछा ही पास में रखा जा सकता है।
इस अश्व नाल से बनी मुद्रिका को साक्षात्‌ शनिदेव की कृपा के रूप में समझना चाहिए। इसके धारक को बहुत थोड़े समय में ही धन-धान्य की सम्पन्नता प्राप्त हो जाती है। दरिद्रता का निवारण करके घर में वैभव-सम्पत्ति का संग्रह करने में यह अंगूठी चमत्कारिक प्रभाव दिखलाती है।

" दीपावली " के सिद्ध टोटके

आज चर्चा . . . " दीपावली " पर करने वाले कुछ उपायों की . . . , .
 = " दीपावली " के दिन " अपामार्ग " की जड़ लाये . . और पूजन के पश्चात अपनी दाहिनी भुजा में बाँध ले . . देखिये . . आपकी समस्याए . . .कैसे हल होने लगती है . . . .

 = " दीपावली " के दिन संध्याकाल में पीपल के पेड़ के नीचे साबुत उड़द के दाने और उस पर थोड़ा दही और सिंदूर डालकर चढ़ावे . . . तेल का दीपक जलावे . . .देखिये . . .आपको काफी धन लाभ होगा . . . .

= " दीपावली " के दिन " पांच अभिमंत्रित कोडियों पर हल्दी का तिलक लगाकर " अपने ऊपर से आठ बार उसारकर किसी भिखारी को कुछ पैसो के साथ दान कर दे . . .आपको नौकरी मिलने की समस्या का अंत तुरंत हो जाएगा . . .

= " दीपावली " के दिन प्रातः काल पीपल पेड़ में गुड मिश्रित जल चढ़ावे . . .और दीपक जलावे . . .दीपक में दो लौंग डालना मत भूलियेगा . . . देखिये . . आपकी आर्थिक समस्याओं का अंत . . तुरंत कैसे होता है . . . . .

 = " दीपावली " के दिन जलकुम्भी लाकर पीले कपडे में बांधकर रसोई घर में रख दे . . देखिये . . आपके घर में खाने - पिने की चीजों में कभी कमी नहीं होंगी . . .

= " दीपावली " के दिन अपनी तिजोरी में थोड़े काली गुंजा के दाने ज़रूर डाले . . देखिये . . आपकी तिजोरी में कैसे धन बढ़ता है . . . .

 = " दीपावली " के दिन से प्रतिदिन " श्री सूक्त " का पाठ नियमित करना शुरू करे . . " माँ लक्ष्मी " आपके घर में स्थायी रहना शुरू कर देंगी . . .
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दिवाली व धनतेरस पर समृद्धि प्राप्ति के उपाय

दीपावली और धनतेरस के त्योहार का विशेष महत्व है। इन दोनों त्योहारों पर धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन समृद्धि प्राप्ति के लिए किया गया कोई भी उपाय ज्यादा फलदायी होता है। इस बार धनत्रयोदशी और दीपावली पर समृद्धि प्राप्ति के लिए इन उपायों को भी करके देखें.

 हथेलियों के दर्शन हैं शुभ :
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 प्रातःकाल उठकर सर्वप्रथम अपनी हथेलियों के दर्शन की आदत डालें। यह एक शुभ क्रिया है। इसे करने से आपको शुभ ऊर्जा प्राप्त होगी।

 चमगादड़ वाले पेड़ की टहनी रखना शुभ :
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 धनतेरस को ऐसे पेड़ की टहनी तोड़ कर लाएं, जिस पर चमगादड़ रहते हों। इसे अपने बैठने की जगह के पास रखें, लाभ होगा।

 गाय का भोजन जरूर निकालें :
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 धनतेरस और दीपावली के दिन रसोई में जो भी भोजन बना हो, सर्वप्रथम उसमें से गाय के लिए कुछ भाग अलग कर दें। यदि नित्य यह करें तो सर्वश्रेष्ठ है।

 मंदिर में लगाएं केले के पौधे :
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 दीपावली के दिन किसी भी मंदिर में केले के दो पौधे लगाएं। इन पौधों की समय-समय पर देखभाल करते रहें। इनके बगल में कोई सुगंधित फूल का पौधा लगाएं। केले का पौधा जैसे-जैसे बड़ा होगा, आपके आर्थिक लाभ की राह प्रशस्त होगी।

 दक्षिणावर्ती शंख में लक्ष्मी मंत्र का जाप :
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 दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के बाद दक्षिणावर्ती शंख में लक्ष्मी मंत्र का जाप करते हुए चावल के अक्षत दाने व लाल गुलाब की पंखुडियां डालें। ऐसा करने से समृद्धि का योग बनेगा।

 लक्ष्मी को अर्पित करें लौंग :
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 दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के बाद लक्ष्मी या किसी भी देवी को लौंग अर्पित करें। यह प्रक्रिया दीपावली के बाद भी चलने दें। आर्थिक लाभ होता रहेगा।

 श्वेत वस्तुओं का करें दान :
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 धनत्रयोदशी पर श्वेत पदार्थों जैसे चावल, कपड़े, आटा आदि का दान करने से आर्थिक लाभ का योग बनता है।

 सूर्यास्त के बाद न करें झाड़ू-पोंछा :
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 शाम को सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू-पोंछा न करें। यह समृद्धि के लिए शुभ नहीं है।

 गरीब की आर्थिक सहायता करें :
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 दीपावली पर किसी गरीब, दुखी, असहाय रोगी को आर्थिक सहायता दें। ऐसा करने से आपकी उन्नती होगी।

 किन्नर को धन करें दान :
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 दिवाली के दिन किसी हिजड़े को धन दान करें और उससे उसमें से कुछ पैसे वापस अनुरोध करके प्राप्त कर लें। उन पैसे को श्वेत वस्त्र में लपेट कर कैश बॉक्स में रख लें, लाभ होगा।

दीपावली की रात कहाँ - कहाँ दीपक लगाने से होगी महालक्ष्मी प्रसन्न .................................

शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि दीपावली रात देवी महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। अत: इस रात को देवी को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न उपाय बताए गए हैं।
 यदि संभव हो तो रात के समय किसी श्मशान में दीपक जरूर लगाएं। पैसा प्राप्त करने के लिए यह एक चमत्कारी टोटका है।

धन प्राप्ति की कामना करने वाले व्यक्ति को दीपावली की रात मुख्य दरवाजे की चौखट के दोनों ओर दीपक अवश्य लगाना चाहिए।

घर के आंगन में भी दीपक लगाना चाहिए। ध्यान रखें यह दीपक बुझना नहीं चाहिए। कभी भी घरमें क्लेश और रोग नहीं होंगे |

हमारे घर के आसपास वाले चौराहे पर रात के समय दीपक लगाना चाहिए। ऐसा करने पर पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।

घर के पूजन स्थल में दीपक लगाएं, जो पूरी रात बुझना नहीं चाहिए। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

किसी बिल्व पत्र के पेड़ के नीचे दीपावली की शाम दीपक लगाएं। बिल्व पत्र भगवान शिव का प्रिय वृक्ष है। अत: यहां दीपक लगाने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है।

पीपल के पेड़ के नीचे दीपावली की रात एक दीपक अवश्य लगाकर आएं। ऐसा करने पर आपकी धन से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाएंगी।

धनतेरस पर कैसे मनायें कुबेर को ?

प्रयोग-1 कुबेर साधना

 अ ऊँ नमो कुबेराय वैश्रवणाय अक्षय।

 समृद्धि देहि कनक धारायै नम:।।

 प्रयोग विधि- दीपावली की रात्रि से पूर्व त्रयोदशी तिथि से सात हजार रोज मंत्र जाप दीपावली तक (21 हजार जाप स्वर्ण मिश्रित रुद्राक्ष माला से धूप दीप अगरबत्ती जला कर श्रद्धा भाव से करें।

 सिद्ध कुबेर यंत्र को थाली में चावल के ऊपर प्रतिष्ठित कर रखें। रोली, केसर, फल-फूल से पूजा करें। चावल सफेद पोटली में बांधकर तिजोरी में रखें यंत्र भी तिजोरी में रखें।

 लाभ- गोल्ड रत्न ज्वैलरी के काम करने वालों के लिये यह साधना वरदान है। गया धन वापिस आता है। भूमि विवाद दूर होते है। अखण्ड धन लक्ष्मी, राज्य कृपा प्रमोशन की प्राप्ति होती है।

(यदि आप जप करने में सक्षम नहीं है तो हमसे संपर्क करे  | हम आपके नाम से सिद्ध किया हुआ प्राण प्रतिष्ठित कुबेर यन्त्र आपको उपलब्ध करा सकते है )

 प्रयोग-2    कुबेर पूजन नवनिधि दाता कुबेर

 ऊँ श्रीं ऊँ ह्रीं श्रीं ह्रीं

 क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:।।

 मनुष्यों, यक्षों गंधर्वों तथा राक्षसों के लिये तथा देवों के लिये भी कुबेर पूजनीय है। कुबेर के पिता विश्रवा तथा माता इडविडा हैं। इनकी सौतेली माता का नाम कैकसी था।

 कुबेर की पत्नी का नाम श्रद्धा तथा दोनों पुत्रों के नाम ‘नल कुबेर’ व ‘नील ग्रीव’ है। कैलाश पर्वत पर स्थित अलकापुरी इनकी राजधानी है। परंतु सर्वप्रथम इनका मूल निवास त्रिकूट पर्वत स्थित विश्वकर्मा द्वारा निर्मित स्वर्ण नगरी लंका थी।

 जैसे देवताओं के राजा इंद्र हैं।– गुरु बृहस्पति है। इसी प्रकार निखिल ब्राह्मांडों के धनाधिपति धनाध्यक्ष कुबेर है। महाभारत में कहा गया है कि महाराज कुबेर के साथ भार्गव-शुक्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र भी दिखाई पड़ते हैं। इन तीनों की कृपा के बिना धन-वैभव की प्राप्ति नहीं होती है।

 प्रयोग-3,      ब्राह्मांडों के धनाध्यक्ष अपार धन प्रदाता श्रीकुबेर मंत्र साधना


 यदि कोई व्यक्ति पिछली सात पीढ़ियों से धनाभाव दरिद्रता व अपयश से पीड़ित है तो निम्न मंत्र प्रयोग से जन्मों की दरिद्रता दूर होती है। घर में अपार धन, ऐश्वर्य, संपदा, भवन, आभूषण, रत्न, वाहन, भूखंड व प्रतिष्ठा की प्राप्ति निश्चित होती है।

 भगवान शंकर की पूजा करने के बाद रावण को शूल पाणि शिव ने इस मंत्र का ज्ञान कराया था। इस मंत्र की 11 माला जाप 11 दिन तक नियम से करें। जाप के बाद हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण भोजन आवश्यक होता है।

 धूप-दीप जलाकर, फल-फूल व मिष्ठान से भोग लगाकर, श्री कुबेर यंत्र पर चंदन (लाल) कुंकुम का तिलक लगाकर निम्न मंत्र जाप रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए। एक माला ऊँ गं गमपत्यै नम: का जाप करें।

 कुबेर मंत्र

 विनियोग

 ऊँ अस्य श्री कुबेर मंत्रस्य विश्रवा ऋषि:, बृहती

 छन्द: शिवसखा धनाध्यक्ष देवता, अखंड धन

 लाभ प्राप्यर्थे जपे विनियोग:

 ध्यान

 मनुजवाह्म विमानवर स्थितं

 गरुडरत्न निभं निधिनायकम्।

 शिवसखं मुकुटादि विभूषितं

 वरगदे दधतं भज तुन्दिलनम्।।

 प्रार्थना मंत्र

 देवि प्रियश्च नाथस्य कोषाध्यक्ष महामते।

 ध्यायेSहं प्रभुं श्रेष्ठं कुबेर धनदायकम्।।

 क्षमस्व मम दौरात्म्यं कृपासिंधो सुर:प्रिय:।

 धनदोSसि धनंदेहि अपराधांश्च नाशय।।

 महाराज कुबेर त्वं भूयो भूयो नमाम्यहम्।

 दीनोपि चदया यस्त जायतुं वै महाधन:।।

 मंत्र

 ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय

 धनधान्य अधिपतये धनधान्य

 समृद्धिं में देहि दापय स्वाहा।।

 विषेश-

 यह मंत्र शिवजी के मंदिर में या बेलपत्र के पेड़ के नीचे बैठकर जपने से सिद्धि शीघ्र मिलती है। एक लाख जप करने से इसका पुरश्चरण होता है। दशांश हवन तिल व देसी घी से होता है।

Sunday 27 October 2013

रावण सहिंता के कुछ चमत्कारी एवं तुरंत प्रभावशाली उपाय

१. व्यवसाय ठीक तरह से न चलने पर .................................

यदि आपको यह शंका हो कि किसी व्यक्ति ने आपके व्यवसाय को बाँध दिया है या उसकी नजर आपकी दुकान को लग गई है, तो उस व्यक्ति का नाम काली स्याही से भोज-पत्र पर लिखकर पीपल वृक्ष के पास भूमि खोदकर दबा देना चाहिए तथा इस प्रयोग को करते समय १॰ कच्चा सूत लेकर उसे शुद्ध केसर में रंगकर अपनी दुकान पर बाँध देना चाहिए ।
२॰ हुदहुद पक्षी की कलंगी रविवार के दिन प्रातःकाल दुकान पर लाकर रखने से व्यवसाय को लगी नजर समाप्त होती है और व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है ।
३॰ कभी अचानक ही व्यवसाय में स्थिरता आ गई हो, तो निम्नलिखित मंत्र का प्रतिदिन ग्यारह माला जप करने से व्यवसाय में अपेक्षा के अनुरुप वृद्धि होती है । मंत्रः- “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवती माहेश्वरी अन्नपूर्णा स्वाहा ।”
४॰ यदि कोई शत्रु आपसी जलन या द्वेष, व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के कारण आप पर तंत्र-मंत्र का कोई प्रयोग करके आपके व्यवसाय में बाधा डाल रहा हो, तो ईसे में नीचे लिखे सरल शाबर मंत्र का प्रयोग करके आप अपनी तथा अपने व्यवसाय की रक्षा कर सकते हैं । सर्वप्रथम इस मंत्र की दस माला जपकर हवन करें । मंत्र सिद्ध हो जाने पर रविवार या मंगलवार की रात इसका प्रयोग करें ।
मंत्रः- “उलटत वेद पलटत काया, जाओ बच्चा तुम्हें गुरु ने बुलाया, सत नाम आदेश गुरु का ।”
रविवार या मंगलवार की रात को 11 बजे के बाद घर से निकलकर चौराहे की ओर जाएँ, अपने साथ थोड़ी-सी शराब लेते जाएँ । मार्ग में सात कंकड़ उठाते जाएँ । चौराहे पर पहुँचकर एक कंकड़ पूर्व दिशा की ओर फेंकते हुए उपर्युक्त मंत्र पढ़ें, फिर एक दक्षिण, फिर क्रमशः पश्चिम, उत्तर, ऊपर, नीचे तथा सातवीं कंकड़ चौराहे के बीच रखकर उस शराब चढ़ा दें । यह सब करते समय निरन्तर उक्त मन्त्र का उच्चारण करते रहें । फिर पीछे पलट कर सीधे बिना किसी से बोले और बिना पीछे मुड़कर देखे अपने घर वापस आ जाएँ ।
घर पर पहले से द्वार के बाहर पानी रखे रहें । उसी पानी से हाथ-पैर धोकर कुछ जल अपने ऊपर छिड़क कर, तब अन्दर जाएँ । एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि आते-जाते समय आपके घर का कोई सदस्य आपके सामने न पड़े और चौराहे से लौटते समय यदि आपको कोई बुलाए या कोई आवाज सुनाई दे, तब भी मुड़कर न देखें ।
५॰ यदि आपके लाख प्रयत्नों के उपरान्त भी आपके सामान की बिक्री निरन्तर घटती जा रही हो, तो बिक्री में वृद्धि हेतु किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के गुरुवार के दिन से निम्नलिखित क्रिया प्रारम्भ करनी चाहिए -
व्यापार स्थल अथवा दुकान के मुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल से धोकर स्वच्छ कर लें । इसके उपरान्त हल्दी से स्वस्तिक बनाकर उस पर चने की दाल और गुड़ थोड़ी मात्रा में रख दें । इसके बाद आप उस स्वस्तिक को बार-बार नहीं देखें । इस प्रकार प्रत्येक गुरुवार को यह क्रिया सम्पन्न करने से बिक्री में अवश्य ही वृद्धि होती है । इस प्रक्रिया को कम-से-कम 11 गुरुवार तक अवश्य करें ।
 नोट :- सारे प्रयोग किसी सिद्ध पुरुष या गुरु की देखरेख में ही संपन्न करे | अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि के साथ साथ कुछ गलत भी घटित हो सकता है

रावण सहिंता कहती है कि बंधी दुकान को कैसे खोले

२. दूकान बंधी होने पर  .................................

कभी-कभी देखने में आता है कि खूब चलती हुई दूकान भी एकदम से ठप्प हो जाती है । जहाँ पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ती थी, वहाँ सन्नाटा पसरने लगता है । यदि किसी चलती हुई दुकान को कोई तांत्रिक बाँध दे, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, अतः इससे बचने के लिए निम्नलिखित प्रयोग करने चाहिए -
१॰ दुकान में लोबान की धूप लगानी चाहिए ।
२॰ शनिवार के दिन दुकान के मुख्य द्वार पर बेदाग नींबू एवं सात हरी मिर्चें लटकानी चाहिए ।
३॰ नागदमन के पौधे की जड़ लाकर इसे दुकान के बाहर लगा देना चाहिए । इससे बँधी हुई दुकान खुल जाती है ।
४॰ दुकान के गल्ले में शुभ-मुहूर्त में श्री-फल लाल वस्त्र में लपेटकर रख देना चाहिए ।
५॰ प्रतिदिन संध्या के समय दुकान में माता लक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए ।
६॰ दुकान अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान की दीवार पर शूकर-दंत इस प्रकार लगाना चाहिए कि वह दिखाई देता रहे ।
७॰ व्यापारिक प्रतिष्ठान तथा दुकान को नजर से बचाने के लिए काले-घोड़े की नाल को मुख्य द्वार की चौखट के ऊपर ठोकना चाहिए ।
८॰ दुकान में मोरपंख की झाडू लेकर निम्नलिखित मंत्र के द्वारा सभी दिशाओं में झाड़ू को घुमाकर वस्तुओं को साफ करना चाहिए । मंत्रः- “ॐ ह्रीं ह्रीं क्रीं”
९॰ शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के सम्मुख मोगरे अथवा चमेली के पुष्प अर्पित करने चाहिए ।
१०॰ यदि आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान में चूहे आदि जानवरों के बिल हों, तो उन्हें बंद करवाकर बुधवार के दिन गणपति को प्रसाद चढ़ाना चाहिए ।
११॰ सोमवार के दिन अशोक वृक्ष के अखंडित पत्ते लाकर स्वच्छ जल से धोकर दुकान अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर टांगना चाहिए । सूती धागे को पीसी हल्दी में रंगकर उसमें अशोक के पत्तों को बाँधकर लटकाना चाहिए ।
नोट :- सारे प्रयोग किसी सिद्ध पुरुष या गुरु की देखरेख में ही संपन्न करे | अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि के साथ साथ कुछ गलत भी घटित हो सकता है

Saturday 12 October 2013

परम शक्तिशाली सिद्ध गोमती चक्र (दीपावली प्रयोग )

१॰ यदि इस  सिद्ध गोमती चक्र को लाल सिन्दूर की डिब्बी में घर में रखे, तो घर में सुख-शान्ति बनी रहती है ।
२॰ यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो, तो दो  सिद्ध गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर से घुमाकर आग में डाल दे, तो घर से भूत-प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है ।

३॰ यदि घर में बिमारी हो या किसी का रोग शान्त नहीं हो रहा हो तो एक  सिद्ध गोमती चक्र लेकर उसे चाँदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पाये पर बाँध दें, तो उसी दिन से रोगी का रोग समाप्त होने लगता है ।

४॰ व्यापार वृद्धि के लिए दो  सिद्ध गोमती चक्र लेकर उसे बाँधकर ऊपर चौखट पर लटका दें, और ग्राहक उसके नीचे से निकले, तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है ।

५॰ प्रमोशन नहीं हो रहा हो, तो एक  सिद्ध गोमती चक्र लेकर शिव मन्दिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें, और सच्चे मन से प्रार्थना करें । निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जायेंगे ।
६॰ पति-पत्नी में मतभेद हो तो तीन  सिद्ध गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में “हलूं बलजाद” कहकर फेंक दें, मतभेद समाप्त हो जायेगा ।
७॰ पुत्र प्राप्ति के लिए पाँच  सिद्ध गोमती चक्र लेकर किसी नदी या तालाब में “हिलि हिलि मिलि मिलि चिलि चिलि हुं ” पाँच बार बोलकर विसर्जित करें ।
८॰ यदि बार-बार गर्भ नष्ट हो रहा हो, तो दो  सिद्ध गोमती चक्र लाल कपड़े में बाँधकर कमर में बाँध दें ।
९॰ यदि शत्रु अधिक हो तथा परेशान कर रहे हो, तो तीन  सिद्ध गोमती चक्र लेकर उन पर शत्रु का नाम लिखकर जमीन में गाड़ दें ।
१०॰ कोर्ट-कचहरी में सफलता पाने के लिये, कचहरी जाते समय घर के बाहर  सिद्ध गोमती चक्र रखकर उस पर अपना दाहिना पैर रखकर जावें ।
११॰ भाग्योदय के लिए तीन  सिद्ध गोमती चक्र का चूर्ण बनाकर घर के बाहर छिड़क दें ।
१२॰ राज्य-सम्मान-प्राप्ति के लिये दो  सिद्ध गोमती चक्र किसी ब्राह्मण को दान में दें ।
१३॰ तांत्रिक प्रभाव की निवृत्ति के लिये बुधवार को चार  सिद्ध गोमती चक्र अपने सिर के ऊपर से उबार कर चारों दिशाओं में फेंक दें ।
१४॰ चाँदी में जड़वाकर बच्चे के गले में पहना देने से बच्चे को नजर नहीं लगती तथा बच्चा स्वस्थ बना रहता है ।
१५॰ दीपावली के दिन पाँच  सिद्ध गोमती चक्र पूजा-घर में स्थापित कर नित्य उनका पूजन करने से निरन्तर उन्नति होती रहती है ।
१६॰ रोग-शमन तथा स्वास्थ्य-प्राप्ति हेतु सात  सिद्ध गोमती चक्र अपने ऊपर से उतार कर किसी ब्राह्मण या फकीर को दें ।
१७॰ 11  सिद्ध गोमती चक्रों को लाल पोटली में बाँधकर तिजोरी में अथवा किसी सुरक्षित स्थान पर सख दें, तो व्यापार उन्नति करता जायेगा ।

(सिर्फ सिद्ध किये हुए गोमती चक्र ही प्रयोग में ले | बिना जाग्रत किये हुए गोमती चक्र अपना प्रभाव नहीं दिखाते | और दुस्परिनाम भी दे सकते है  | यदि आप को आवश्यकता है तो आप हमसे संपर्क कर सकते है | )

Your Vehicle & Colour - आपका वाहन और रंग

आपके वाहन का रंग और अंक यदि आपके मूलांक के अनुसार हो तो वह अघिक उपयुक्त रहेगा।
 वाहन के अंक [नंबर] तथा रंग के शुभत्व का निर्धारण अंक ज्योतिष के मूलांक के स्वामी तथा ज्योतिष शास्त्र में वर्णित उस मूलांक स्वामी के नैसर्गिक मित्र ग्रहों के स्वामित्व वाले अंकों के आधार पर किया जाना हितकर होता है। किसी व्यक्ति की जन्म तारीख ही उसका मूलांक होती है जैसे 19 तारीख को जन्मे व्यक्ति का मूलांक 1+9= 10 अर्थात् एक होगा। वाहन अंक जानने के लिए वाहन के रजिस्ट्रेशन नंबरों को जोड़कर इकाई में परिवर्तित करते हैं जैसे 5674 नंबर का अंक बनेगा- 5+6+7+4= 22= 2+2= 4। एक से नौ मूलांक तक के व्यक्तियों के लिए वाहन अंक तथा उसके रंग का शुभत्व इस प्रकार जानें-

 मूलांक-1: जिनका जन्म किसी भी मास की 1, 10, 19 अथवा 28 तारीख को हुआ हो, तो उनका मूलांक एक होगा। इनके लिए 1, 2, 3 व 9 अंक वाले वाहन शुभ रहेंगे इनके लिए सुनहला, सफेद, पीला, ताम्रवर्ण, हल्का भूरा तथा क्रीमिश रंग शुभ रहेंगे। काला तथा नीला रंग शुभ नहीं।
 मूलांक- 2: जिनका जन्म किसी भी मास की 2, 11, 20, 29 तारीख को हुआ हो उनके लिए 1, 2 तथा 5 अंक वाले वाहन शुभ रहेंगे। इन्हें सफेद, क्रीम, अंगूरी तथा हल्का हरा रंग शुभकारक है।
 मूलांक- 3: जिनका जन्म किसी भी मास की 3, 12, 21 व 30 तारीख हो हुआ है। उनके लिए 1, 2, 3 व 9 अंक वाले वाहन शुभ होते हैं। इनके लिए पीला, हल्का गुलाबी, क्रीमिश, सफेद रंग शुभ है।
 मूलांक- 4: किसी भी माह की 4, 13, 22 तथा 31 तारीख को जन्मे व्यक्तियों का मूलांक 4 होता होता है। इनके लिए 4, 5, 6, 7 व 8 अंक वाले वाहन शुभ श्रेयस्कर रहेंगे इनके लिए धूप-छांव, हरा, सफेद, खाकी, भूरा, नीला तथा काला रंग श्रेष्ठ रहेगा।
 मूलांक- 5: जिनका जन्म 5, 14 तथा 23 तारीख को हुआ है । इनके लिए अंक 1, 5 तथा 6 वाले वाहन शुभ हैं। हरा, सूआ पंखी, मूंगिया, ताम्रवर्ण, क्रीमिश तथा चमकीले रंग वाले वाहन शुभ रहेंगे।
 मूलांक- 6: जिनका जन्म किसी मास की 6, 15, 24 तारीख को हुआ हो उनका मूलांक 6 होगा । इनके लिए 5, 6 व 8 अंक वाले वाहन शुभ श्रेयस्कर रहेंगे। इनके लिए हल्का नीला, आसमानी, हल्का खाकी, भूरा तथा हल्का गुलाबी रंग श्रेष्ठ रहेगा।
 मूलांक- 7: जिनका जन्म 7, 16, 25 तारीख को हुआ हो उनका मूलांक स्वामी केतु है। इन्हें 4, 5, 6, 7 तथा 8 जोड़ वाले अंक के वाहन शुभ रहेंगे। इनके लिए शुभ रंग धूप-छांव, हरा, सफेद, नीला तथा काला है।
 मूलांक- 8: दिनांक 8, 17 तथा 26 को जन्मे व्यक्तियों के लिए 5, 6 तथा 8 अंक वाले वाहन शुभ श्रेयस्कर रहेंगे। इन्हें गहरे रंग नीले, काले तथा हरे, काकरोजी, स्लेटी आदि शुभ रंग श्रेयस्कर हैं।
 मूलांक- 9: किसी भी माह की तारीख 9, 18, 27 को जन्मे व्यक्तियों का मूलांक स्वामी मंगल होगा। इन्हें 1, 2 व 3 अंक वाले वाहन शुभ हैं। इनके लिए शुभ रंग गुलाबी, गहरा लाल, मैरून नारंगी, पीले या इनसे संबंधित दो रंगों से मिलाकर बने रंग शुभ रहेंगे।
 जिन व्यक्तियों के पास पहले से जिस किसी भी अंक या रंग का वाहन है तथा वे उनके लिए शुभ श्रेयस्कर है तो उन्हें उसी को शुभ अंक और रंग मानना चाहिए। उपयुक्त अंक और रंग पर वह विचार नहीं करें।
 मेष राशि- मेष राशि की महिलाएं लालिमायुक्त, सफेद, क्रीमी तथा मेहरून रंग की नेल पॉलिश प्रयोग में लाएं।
 वृष राशि- लाल, सफेद, गेहूंआ या गुलाबी रंग या इनसे मिश्रित रंगों की नेल पॉलिश लगाएं।
 मिथुन- आपके लिए हरी, फिरोजी, सुनहरा सफेद या सफेद रंग की नेल पॉलिश उपयुक्त रहेगी।
 कर्क- श्वेत व लाल या इनसे मिश्रित रंग अथवा लालिमायुक्त सफेद रंग की नेल पॉलिश का प्रयोग उपयोगी रहेगा।
 सिंह- गुलाबी, सफेद, गेरूआ, फिरोजी तथा लालिमायुक्त सफेद रंग उपयुक्त है।
 कन्या- आप हरे, फिरोजी व सफेद रंग की नेल पॉलिश लगाएं।
 तुला- जामुनी, सफेद, गुलाबी, नीली, ऑफ व्हाइट एवं आसमानी रंग की नेल पॉलिश अनुकूल रहेगी।
 वृश्चिक- सुनहरी सफेद, मेहरून, गेरूआ, लाल, चमकीली गुलाबी या इन रंगों से मिश्रित रंग की नेल पॉलिश लगाएं।
 धनु- पीला, सुनहरा, चमकदार सफेद, गुलाबी या लालिमायुक्त पीले रंग की पॉलिश लगाएं।
 मकर- सफेद, चमकीला सफेद, हल्का सुनहरी, मोरपंखी, बैंगनी तथा आसमानी रंग की नेल पॉलिश उपयुक्त है।
 कुंभ- जामुनी, नीला, बैंगनी, आसमानी तथा चमकीला सफेद रंग उत्तम रहेगा।
 मीन- पीला, सुनहरा, सफेद, बसंती रंगों का प्रयोग करें। सदा अनुकूल प्रभाव देंगे।
 ऊपर बताए गए रंग राशि स्वामी तथा उनके मित्र ग्रहों के रंगों के अनुकूल हैं।

छोटी बड़ी वाहन दुर्घटनाओं को टालने के प्रभावशाली उपाय

१. यह एक ऎसा सरल उपाय है जिसकेप्रयोग आप सुनिश्चित लाभ की अपेक्षा कर सकते हैं। इस प्रयोग के अन्तर्गत गुरूपुष्य नक्षत्र में शुभ मुहूर्त में निकाली गई अपामार्ग नामक पौधे की जड ले लें। इस पौधे को लटजीरा,आंधाझाडा इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता है। इस जड को एक फिटकरी के टुकडे एवं एक कोयले के टुकडे के साथ एक काले वस्त्र में बांधकर उससे वाहन के चारों ओर दाहिने घूमते हुये 7 चक्कर लगायें। यह एक प्रकार का उसारा करने के समान है। इसके पश्चात इस पोटली को वाहन मे कहीं रख दें। ऎसा करने से वाहन दुरात्माओं से रक्षित रहता है तथा उसकी दुर्घटनाओं से भी रक्षा होती है।

सिद्ध करें काली हल्दी, अपार दौलत मिलेगी

तंत्र शास्त्र में काली हल्दी का उपयोग अनेक क्रियाओं में किया जाता है लेकिन इसके पहले इसे सिद्ध करना पड़ता है। इसकी विधि इस प्रकार है-

- धन प्राप्ति के लिए काली हल्दी यानी हरिद्रा तंत्र की साधना शुक्ल या कृष्ण पक्ष की किसी भी अष्टमी से शुरु की जा सकती है। इसके लिए पूजा सूर्योदय के समय ही की जाती है।

- सुबह सूर्यादय से पहले उठकर स्नान कर पवित्र हो जाएं।

- स्वच्छ वस्त्र पहनकर सूर्योदय होते ही आसन पर बैठें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। ऐसा स्थान चुनें, जहां से सूर्यदर्शन में बाधा न आती हो।

- इसके बाद काली हल्दी की गाँठ का पूजन धूप-दीप से पूजा करें। उदय काल के समय सूर्यदेव को प्रणाम करें। आपके समक्ष रखी काली हल्दी की गाँठ को नमन कर भगवान सूर्यदेव के मंत्र 'ओम ह्रीं सूर्याय नम:' का 108 बार माला से जप करें।

- यह प्रयोग नियमित करें ।



- पूजा के साथ-साथ अष्टमी तिथि को यथासंभव उपवास रखें व ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

- हरिद्रा तंत्र की नियम-संयम से साधना व्रती को मनोवांछित और अनपेक्षित धन लाभ होता है। रुका धन प्राप्त हो जाता है। परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस तरह एक हरिद्रा यानि हल्दी घर की दरिद्रता को दूर कर देती है।

Monday 30 September 2013

जड़ी बूटी के चमत्कारिक प्रयोग

जड़ी-बूटी के सम्मोहन कारक प्रयोग डॉ साहब की कलम से
 तंत्र-विद्या में ऐसे कितने ही प्रयोगों का वर्णन है जो प्रबल सम्मोहन शक्ति से संपन्न माने जाते हैं। ध्यान रहे कि दुर्भावना अथवा मात्र कौतूहल के लिए कोई साधना नहीं की जानी चाहिये। तंत्र-मंत्र के प्रयोगों में निजहित की अपेक्षा लोकहित को वरीयता देना श्रेयस्कर होता है। सम्मोहन के प्रभाव: सम्मोहन के प्रभाव में मरीज को क्याहोता है? सबसे पहले उसका सचेतन मन काम करने से हट जाता है और उसके अचेतन मन की दुनिया साकार हो उठती है। डॉक्टर  के पूछने पर मरीज अपने अचेतन मन में छिपी बातों को बताने लगता है। इस प्रकार डाॅक्टर मरीज की बीमारी के उन मनोवैज्ञानिक कारणों को जान पाता है जो उसके अचेतन मन में छिपे हुए होते हैं। मनोवैज्ञानिक  डॉक्टर बीमारियों के इलाज में सम्मोहन का प्रयोग करते हैं। आपरेशन से पहले मरीज के भयभीत होने पर सम्मोहन द्वारा उसके मन को शांति दी जाती है। प्रसूति के समय होने वाली पीड़ा को भी सम्मोहन द्वारा कम किया जा सकता है। बिना किसी शारीरिक नुक्स के हकलाना, लगातार हिचकी आना, उल्टी होना, घबराहट के कारण भूख न लगना आदि ऐसी बीमारियां हैं, जिन्हें दूर करने में सम्मोहन ने बहुत सहायता की है। मानसिक तनाव कम करने में भी यह सहायक सिद्ध हुआ है। अतः डाॅक्टर जितने अरसे के लिए चाहे, मरीज में सम्मोहन पैदा कर सकता है फिर जगाने का सुझाव देकर निद्रा तोड़ भी सकता है। एक या दो घंटे के बाद सम्मोहन का असर जाता रहता है और मरीज खुद ही जाग जाता है। मानवीय विद्युत का यही प्रवाह या प्रभाव परस्पर के आकर्षण में अपना सहयोग देता है। उभरती हुई अवस्था में यही प्रवाह व प्रभाव शरीर के आकर्षण की भूमिका बनकर सामने आता है। उस समय उसका सदुपयोग होने से मनुष्य में ओजस्विता, तेजस्विता, वर्चस्वता आदि गुणों का समुचित विकास होने लगता है। यदि वह विकास नियमित रूप से बढ़ता रहे तो मनुष्य अनेक महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु उस विकास की अनियमितता उसके गुणों में वृद्धि या हानि का कारण भी बन सकती है। यदि वृद्धि होती है तो कोई न कोई असामान्यता परिलक्षित होने लगती है। भीम, अर्जुन, भीष्म, हनुमान, मां काली आदि के महाबली होने का रहस्य विद्युत ऊर्जा की वृद्धि समझनी चाहिये। इसके विपरीत इस ऊर्जा अथवा प्रवाह की हानि मनुष्य को निर्बल और हीन बनाने का कारण बनती है। इस कारण ही मनुष्य अपने अंदर हीन भावना अनुभव करने लगता है जिससे साहस और उत्साह में कमी हो जाती है। इस प्रकार विद्युत शक्ति की न्यूनाधिकता मनुष्य को हीन और श्रेष्ठ बनाने में कारण होती है। शरीर के अंग-प्रत्यंग में विद्युत ऊर्जा की उत्पत्ति में सहायक अनेक उपकरणों के साथ ही रासायनिक पदार्थों की भी कमी नहीं है। रक्त संचार की वह क्रिया इन सभी को संचरणशील रखती है और बिजली उत्पादन का कार्य भी अनवरत चलता रहता है। तांत्रिक प्रयोग सम्मोहन का तांत्रिक प्रयोग हर किसी को करने की अनुमति नहीं है। सम्मोहन के प्रयोग कोई चमत्कार नहीं है। कोई भी व्यक्ति इसे सीख- समझ सकता है परंतु उसी को सीखने की अनुमति मिलनी चाहिए जो द्विज-देव-गुरु भक्त हो और जन कल्याण कार्य करने की भावनाओं से युक्त हो।  सम्मोहन गुटिका: तुलसी की पत्तियां छाया में सुखाकर उन्हें भांग के बीज और असगंध मिलाकर गाय के दूध में पीस लें। भली-भांति पिस जाने पर मिट्टी की गोलियां बना लें। गोली बहुत छोटी-एक -एक रत्ती की होनी चाहिये। गोलियों पर उपरोक्त मंत्र की एकमाला फेरकर उन्हें सिद्ध कर लें और सेवन करें। नियमित रूप से प्रातःकाल एक गोली खाई जा सकती है। इस गोली के प्रयोग से सम्मोहन का प्रभाव उत्पन्न होता है। सम्मोहन कारक टीका सिंदूर, सफेद दूब, नागरबेल का पत्ता मिलाकर पीसें। इस लेप को मंत्र द्वारा शुद्ध करके टीके की भांति लगाने से सम्मोहन प्रभाव उत्पन्न होता है। हरताल और असगंध को केले के रस में पीस कर लेप बनाएं और मंत्र द्वारा शुद्ध कर लें। इस लेप का तिलक लगाने से सम्मोहन का चमत्कार प्रत्यक्ष अनुभव होता है। घी, कुआ व मेढासिंगी और जलभांगरा पीसकर मंत्र द्वारा सिद्ध कर लें। यह सम्मोहन के लिए श्रेष्ठ तिलक है। मदार की जड़ सिंदूर और केले का रस एक साथ पीसकर लेप बनाया जाये, उपरोक्त मंत्र द्वारा प्रभावित करने के बाद इसका प्रयोग सम्मोहन का अद्भुत चमत्कार दिखाता है। सम्मोहन शक्ति का अंजन - मक्खन, अजारस, श्वेतार्क मूल एक साथ पीस लें तथा मंत्र द्वारा शुद्ध-सिद्ध कर लें। यह मंत्र सिद्ध लेप अंजन की भांति आंखों में लगाने से सम्मोहक दृष्टि उत्पन्न करता है। सम्मोहन शक्ति के अन्य प्रयोग: लाल अपामार्ग की टहनी से 6 मास तक दातून करने पर वाणी में सम्मोहन और वचन सिद्धि का प्रभाव उत्पन्न होता है। इसी पौधे की जड़ ले आयें, उसकी भस्म बनाकर दूध के साथ पीने से संतानोत्पत्ति की स्थिति बनती है। स्त्री पुरुष दोनों को पीना चाहिये। इसके बीजों का चावल निकाले। उन चावलों की खीर खाने से भूख मर जाती है। सफेद लटजीरे की जड़ किसी शुभ-मुहूर्त में लाकर पास रखें। यह कल्याणकारी होती है। इसकी जड़ किसी शुभ-मुहूर्त में लाकर पीसें और तिलक करें इस तिलक में वशीकरण की शक्ति होती है। बहेड़ा और अपामार्ग (श्वेत) की जड़ंे लेकर शत्रु के घर में डालने से उसका परिवार उच्चाटन ग्रस्त हो जाता है। विच्छू के डंक मारने पर इसकी पत्ती पीसकर लगा दें विष उत्तर जायेगा। इसकी लकड़ी भी बिच्छू का विष दूर कर देती है। इसकी जड़ का लेप शस्त्र प्रहार से रक्षा करता है। सोंठ की माला पहनने से ज्वर उतर जाता है। श्वेत कनेर की जड़ को दायें हाथ में बांधने से ज्वर शांत हो जाता है। सफेद मदार की जड़ धारण करने से नजर और प्रेत बाधा दूर हो जाती है। सहदेवी पौधे की जड़ के सात टुकड़े करके कमर में बांधने से अतिसार रोग मिट जाता है। सफेद धुंधची की जड़ घिसकर सूंघने और उसे कान पर बांधने से आधा शीशी का दर्द मिट जाता है। सेहुंड की जड़ दांतों तले दबाने से दंतकीट नष्ट हो जाते हैं। लोबान की जड़ गले में बांधने से खांसी दूर हो जाती है। सफेद धुंधुची की जड़ सिर के नीचे रखने से अनिद्रा रोग मिट जाता है। तिल्ली का रोग दूर करने के लिए गले में प्याज की माला पहनना लाभदायक है। कमल के बीज और चावल बकरी के दूध में पीसकर खीर बनायें। यह खीर खाने वालों को चार दिन तक भूख नहीं लगती। सत्यानाशी की जड़ पान में खिलाने से बिच्छू का जहर उतर जाता है। शिरीष वृक्ष के फूलों की माला पहनकर भोजन करने से खुराक बढ़ जाती है

Saturday 28 September 2013

कुछ उपयोगी टोटके


छोटे-छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं, पर उनकी विधिवत् जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं। यहाँ  उपयोगी टोटकों की विधिवत् जानकारी दी जा रही है। घर में सदा अन्न का भंडार बना रहे आश्लेषा नक्षत्र में बरगद वृक्ष का एक पत्ता तोड़ कर लायें। उस पत्ते को गंगाजल से छींटा मारकर धूप देकर प्रार्थना करें कि हे अन्नपूर्णा देवी मेरे घर में सदा अन्न का भंडार भरा रहे कभी इसकी कमी न हो। उस पत्ते को चावल या गेहूं के अंदर दबा कर रख देने से कभी कमी नहीं होगी। इसका प्रयोग बहुत आसान है और इसका प्रभाव रामबाण की तरह है। - शुक्ल पक्ष में जिस दिन पुष्य नक्षत्र हो तब श्वेत गुंजा की जड़ को लाकर उसे धूप दीप से पूजा कर घर में रखने से घर में चोरी होने का भय नहीं रहता है। - सुदर्शन की जड़ हो या अपामार्ग की जड़ हो अथवा घुंघची जड़ हो इनको किसी ताबीज में रख कर दाहिनी भुजा में बांध लेने से हथियार व शस्त्र से शरीर की रक्षा हो जाती है। उक्त मंत्र से 21 बार जाप करके बांधें (ऊँ दुर्गे दुर्गे रक्षिणी स्वाहा)। फसल की सुरक्षा के लिए सफेद सरसों तथा बालू को एक साथ मिलाकर खेत के चारों ओर जल देने से खेत में चूहों से, कीड़ों से एवं टिड्डी आदि से फसल की रक्षा होती है। टोने-टोटके को बेअसर करने के लिए - पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में बहेड़े का पत्ता लाकर घर में रख देने से शत्रु द्वारा घातक टोटके बेअसर हो जाते हैं। तंत्र मंत्र सभी से रक्षा होती रहती है। यह बहुत ही उपयोगी पत्ता है। नींद में भय दूर करने के उपाय - मघा नक्षत्र में पीपल की जड़ को लाकर उसे शुद्ध जल से धोकर धूप देकर अपने तकिया में रखने से कभी सोने में भय नहीं लगता न खराब स्वप्न आते हैं। संतान प्राप्ति हेतु - जो स्त्री निःसंतान है जिसको बांझ भी बोलते हैं उसे पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में आम की जड़ को गाय के दूध में घिसकर पिलाने से उसे संतान हो जाती है। इस नक्षत्र में यह प्रयोग करती रहें। इसी प्रकार उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ को लाकर स्त्री अपने पास में किसी लाल कपड़े में बांध कर शरीर पर धारण करे तो जो दोष होता है वह शांत हो जाता है। तब संतान हो जाती है। भूत-प्रेत दोष को समाप्त करने के लिए - हस्त नक्षत्र में चंपा की जड़ को कच्चे दूध व गंगा जल से पवित्र करके गले में ताबीज में भरकर धारण करें तो यह दोष समाप्त हो जाता है। गोरापन व सुंदरता हेतु - स्वाति नक्षत्र मं मोगरा की जड़ लेकर भैंस के दूध में घिसकर पीने से रंग में परिवर्तन व मुख सुंदर होता है। शत्रुता समाप्त करने हेतु - अनुराधा नक्षत्र में चमेली की जड़ को लाकर गले में ताबीज में भरकर पहनने से शत्रु मित्र बन जाता है।

बृहस्पति की महिमा


बृहस्पति, ऋषि अंगीरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित थे। सभी प्रकार की कठिनाइयों के रहते हुए भी वे देवताओं के लिए सभी धार्मिक व पवित्र कर्मकांड, यज्ञादि कुशलतापूर्वक करने में सक्षम थे। दैत्य, देवताओं को कष्ट देना चाहते थे। उनके यज्ञादि में बाधा डालकर उन्हें निराधार करना चाहते थे, इन परिस्थितियों में बृहस्पति अपने शक्तिशाली मंत्रों के द्वारा दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते थे। दैत्य उनके भय से देवताओं के निकट आने का प्रयास नहीं कर पाते थे। बृहस्पति ने असाध्य आराधना द्वारा भगवान शंकर को प्रसन्न किया। भगवान शंकर ने प्रसन्न हो उन्हें देवगुरु का पद तथा ग्रह का स्थान प्रदान किया। बृहस्पति के जन्म की कथा बहुत ही सरल और स्पष्ट है। इसमें कुछ भी नाटकीय और उत्तेजक नहीं है जो बृहस्पति की उपलब्धियों को रेखांकित करे। बृहस्पति एक ऐसा व्यक्तित्व है जो अपनी पूर्ण क्षमता से ध्यान, निरीक्षण द्वारा संसार को समझना चाहते हैं, वह इसके लिए किसी दूसरे पर निर्भर न रहकर अपने स्वयं के अनुभव से ही यह सब जानने को आतुर रहते हैं। वह अथक प्रयास द्वारा सभी स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करने को प्रयासरत हैं। यदि उस ज्ञान का वास्तव में कोई महत्व है तो वह कहीं भी और किसी से भी ज्ञान प्राप्ति में नहीं हिचकते। बृहस्पति का तो समस्त व्यक्तित्व ही विभिन्न मार्ग से ज्ञान प्राप्त करने तथा सभी ऋषियों को पूर्णता के साथ पूरी गहराई तक समझने पर ही निर्भर है। यह एक बहुत ही लंबा और जटिल मार्ग है तथा इसमें बहुत बार गहरे अंधकार से होकर गुजरना पड़ता है, जहां दूर-दूर तक भविष्य में भी कोई प्रकाश की किरण दृष्टिगोचर नहीं होती। विकास का क्रम मुख्यतः दो सिद्धांतों पर निर्भर करता है। यदि किसी को हर प्रकार की कठिनाई के रहते हुए भी पहाड़ की चोटी पर चढ़ाई करनी है अथवा धारा के विपरीत जाकर नदी के उद्गम तक के मार्ग को खोजना है और वह अपनी पूर्ण क्षमता और साहस के साथ उस कार्य में लग जाता है जिससे मार्ग में पड़ने वाली प्रत्येक कठिनाई उसके व्यक्तित्व को नये आयाम प्रदान करती है तथा लक्ष्य की प्राप्ति उसके व्यक्तित्व में लक्ष्यसिद्धि का आयाम जोड़कर महत्वपूर्ण बना देती है। संस्कृत में बृहस्पति को गुरु भी कहते हैं। ज्ञान का स्रोत भी असीम है तथा उसकी सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। किंतु फिर भी कुछ सरलता के लिए इसे हम दो दिशाओं में विभाजित करते हैं। एक है सांसारिक ज्ञान जिससे न्याय के लिए एक विशेष प्रकार की मानसिक तैयारी की आवश्यकता रहती है तथा दूसरा है आध्यात्मिक अथवा आत्मज्ञान जो अन्य अनुभूति के मार्ग पर चलकर ही पाया जा सकता है। सांसारिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए बृहस्पति ने सभी प्रकार के शास्त्रों और विद्याओं का गहन अध्ययन किया तथा आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए अपने भीतर की ज्ञान यात्रा कर परम सत्य का ज्ञान अर्जित किया। शिष्य तो सदा ही अपनी सभी जिज्ञासाओं के लिए गुरु की ओर देखते हैं तथा उसमें अपनी सभी जिज्ञासाओं और समस्याओं का उत्तर व मार्गदर्शन चाहते हैं, फिर देवताओं के गुरु हैं जो स्वयं ही ज्ञान के पुंज हैं। ज्ञानी जनों की जिज्ञासाओं को सहज ही शांत नहीं किया जा सकता, वह तो सदा ही उचित मार्गदर्शन की खोज में रहते हैं, अतः बृहस्पति का कार्य सरल नहीं है। उन्हें सर्वोच्च गुरु होने के लिए ज्ञान के क्षेत्र में सदा अग्रसर रहना पड़ता है तथा सभी प्रकार के ज्ञान के संग्रह में सदा संलग्न रहना होता है। जन्मकंुडली के विभिन्न भावों में बृहस्पति का प्रभावः प्रथम भाव यदि प्रथम भाव में बृहस्पति हो तो जातक को दीर्घायु प्रदान करता है। वह धनी, न्यायप्रिय, शांत, शांतिप्रिय तथा शासन द्वारा सुविधा पाने वाला होता है। यदि बृहस्पति बाधित अथवा नीच राशि में हो तो जातक शारीरिक रोग वाला तथा अधिक भोजन करने की आदत के कारण मोटा होना, जुए का शौकीन तथा कामुक आनंद में रुचि रखने वाला होता है। वहीं उच्च का बृहस्पति व्यक्ति को विद्व ान, परिवार में उन्नति करने वाला, लोभ रहित, उदारमना, धार्मिक तथा समाज में सम्मानपूर्वक स्थान पाने वाला होता है। आत्मविश्वासी, धैर्यवान तथा जीवन के आठवें वर्ष में सम्मान अथवा प्रोत्साहन पाने वाला होता है। द्वितीय भाव द्वितीय भाव का बृहस्पति व्यक्ति को संपत्तिवान, स्वादिष्ट व्यंजनों का प्रेमी, कुशल वक्ता, अधिकार में आनंद लेने वाला तथा सौभाग्यशाली बनाता है। प्रसन्नचित्त, पारिवारिक सुखों का भागी, जीवन के अधिकारिक पद पाने वाला तथा निजी प्रयास द्वारा अच्छा धन कमाने वाला होता है। परंतु यदि बृहस्पति बाधित हो तो ऋणी तथा जीवन साथी से सुख न पाने वाला होता है। आयु का 27वां वर्ष जीवन में विशेष महत्व रखता है। तृतीय भाव बृहस्पति के तृतीय भाव में होने पर व्यक्ति साहसी, जीवन साथी के प्रभाव में, पड़ोस से मधुर संबंध तथा अनेक मित्रों वाला होता है। अध् िाक परिश्रम के बिना भी जीवन में सौभाग्य का भागी होता है। शास्त्रों में रुचि रखने वाला तथा विभिन्न तीर्थयात्राओं पर जाने वाला होता है। बाधित बृहस्पति भाई-बहनों से सुख में कमी तथा जीवन में विभिन्न बाधाओं का कारक होता है। आयु के 20वें वर्ष का जीवन में विशेष महत्व होता है। चतुर्थ भाव यदि बृहस्पति जातक की कुण्डली में चतुर्थ भाव में हो तो वह प्रख्यात, भाग्यवान, सम्मानित, शांतिप्रिय तथा युद्ध और विवाद में विजयी होता है। वृद्धावस्था वैभवपूर्ण, बहुत संपदा बनाने वाला परदेश में भाग्योदय तथा अतिधार्मिक होता है किंतु बृहस्पति के बाधित होने पर मातृ पक्ष द्वारा समस्याओं का भागी तथा मानसिक शांति से दूर रहता है। यदि बृहस्पति उच्च का हो तो बहुत धन संपत्ति वाला तथा पिता से अधिक प्रसिद्ध होता है। आयु का 22वां वर्ष जीवन में परिवर्तनकारी होता है। पंचम भाव पंचम भाव में बृहस्पति जातक को आज्ञाकारी संतान, बुद्धिमत्ता, सौभाग्य तथा वैभवपूर्ण जीवन प्रदान करता है। बाधित बृहस्पति संतान के विषय में चिंता, रहस्यवाद में रुचि, सट्टेबाज तथा जीवन में अपने भाग को न पाने वाला बनाता है। वहीं नीच का बृहस्पति व्यक्ति को नास्तिक भी बना सकता है। उसकी माता की आयु को पांचवें व सातवें वर्ष में कष्ट का भागी बनाता है। षष्टम् भाव षष्टम् भाव में बृहस्पति जातक को विरोधियों पर विजयी, कामुक, आलसी तथा मोटापे की ओर अग्रसर बनाता है। वह अपरिचित नगरों और देशों में घूमता है। सामान्यतः अच्छा स्वास्थ्य का लाभ उठाने वाला तथा निजी प्रयास से धनार्जन करने वाला होता है किंतु भाग्य नौकरी में ही चमकता है। जीवन में वाहन सुख, लाटरी व सट्टे में रुचि रखता है। माता से पूर्ण सुख का लाभ नहीं मिलता। शिक्षा में बाधा तथा जीवन साथी के कारण अपनों से दूर रहता है। आयु के 40वें वर्ष में विरोधियों का सामना तथा धन की हानि की संभावना रहती है। सप्तम भाव सप्तम् भाव में बृहस्पति जातक को बुद्धिमान और समझदार जीवन साथी प्रदान करता है। पिता व गुरु से नहीं बन पाती। वह अच्छे स्वभाव का तथा ज्ञानी जनों से नित संबंध रखने वाला होता है। सुंदर स्थान में रहने वाला, अपने बड़ों के हित में लगने वाला तथा विवाह के बाद भाग्योदय होता है। न्यायिक सेवा में वह बहुत ख्याति प्राप्त करता है। पिता से सदा बेहतर करता है। शासन से समर्थन प्राप्त करता है। जीवन में सुंदर वस्तु तथा तीर्थयात्रा में रुचि लेने वाला होता है। सामान्यतः उच्च का बृहस्पति, जल्दी विवाह तथा उसके बाद भाग्योदय का कारक होता है। अष्टम भाव अष्टम् भाव में बृहस्पति गुप्त विद्याओं के ज्ञान तथा ध्यान उपासना के लिए उत्तम होता है। जातक अपच का रोगी तथा विभिन्न व्याधियों से पीड़ित हो सकता है। आर्थिक स्थिति से असंतोष, विनम्र, आलसी, दुखी तथा संयमी और उदासीन लोगों की संगत करने वाला होता है। यदि बृहस्पति उच्च का हो तो पैतृक धन तथा अप्रत्याशित रूप से लाभ होने को नकारा नहीं जा सकता। किंत नीच का बृहस्पति कमजोर स्वास्थ्य प्रदान करता है। जीवन के 21वें वर्ष में वह शारीरिक कष्ट से पीड़ित हो सकता है। नवम भाव नवम् भाव जातक को धार्मिक, विश्वासपात्र तथा ज्ञानी जनों द्वारा सम्मानित करवाता है। वह बुद्धि मान, राष्ट्रवादी, गणित व अध्यात्म में रुचि रखने वाला, तीर्थ भ्रमण का प्रेमी तथा विदेश में वास करने वाला हो सकता है। बृहस्पति के कमजोर होने पर भी बुरे कामों से दूर रहने वाला। जीवन के 16वें से 23वें वर्ष के बीच भाग्योदय होता है। वह धार्मिक, ज्योतिष में रुचि रखने वाला, विश्वसनीय, अपने धर्म के प्रति निष्ठावान, कुशल वक्ता तथा वाद-विवाद में सदा विजयी होने वाला होता है। दशम भाव दशम् भाव में बृहस्पति जातक को ज्ञानवान, उदार हृदय, धार्मिक, विद्रोही को जीतने वाला तथा जीवन के लक्ष्य पर ध्यान रखने वाला बनाता है। वह प्रसिद्ध, भाग्यवान, सम्मानित तथा समाज में उच्च स्थान का भागी होता है तथा शासन अथवा धार्मिक संस्थान द्वारा सम्मानित किया जाता है। न्याय के क्षेत्र से जुड़े होने पर प्रसिद्ध न्यायविद् होता है किंतु सदा यात्रा करने वाला तथा पुत्र के कारण दुख का भागी होता है। आयु के 10वें अथवा 29वें वर्ष में भाग्य की विशेष कृपा उसे प्राप्त होती है। एकादश भाव एकादश भाव में बृहस्पति अन्य ग्रहों को जातक के हित में कार्य करने का कारक होता है। वह गुणवान मित्रों और विद्वानों की संगति करने वाला होता है। सभी से आदर पाने वाला, उदार, कलाओं में रुचि रखने वाला, ऐशोआराम का शौकीन तथा सरकार द्वारा सम्मानित किया जाता है। संतान के जन्म के बाद भाग्योदय होता है। अति बुद्धिमान तथा जीवन में बहुत कमाने वाला होता है। वह धार्मिक होता है तथा जीवन का 24वां वर्ष उसके लिए विशेष भाग्यशाली होता है। द्वादश भाव द्वादश भाव में बृहस्पति व्यक्ति को भ्रमित, कम अक्ल, भ्रमणशील, नास्तिक व क्रूर हृदय बना देता है। वह धार्मिक रीतियों पर अपव्यय करता है तथा धन संग्रह नहीं कर पाता। वह महत्वाकांक्षी, प्रदर्शन प्रेमी होता है तथा निकट संबंधियों से उसकी नहीं बन पाती। विवाह भी तनाव और उलझनों का कारण होता है किंतु आयु के 30वें वर्ष में मित्रों की सहायता से भाग्योदय होता है। उच्च का बृहस्पति जातक को आत्मज्ञान के मार्ग पर सहायक होता है।

Tuesday 25 June 2013

पन्ना एवं नीलम क़ी उत्पत्ति कथा एवं उपयोगिता

पन्ना (Emerald)

यह रत्न बुध ग्रह से सम्बंधित दोष के निवारण हेतु प्रयुक्त होता है. यह मात्र दो ही तरह का होता है. एक गहरा हरा एवं एक हल्का हरा. यह कार्बन एवं जलाश्म का यौगिक होता है. औषधि के रूप में इसका सीधा प्रभाव फेफड़ा एवं श्रोणी मेखला (Pelvic Girdle) पर होता है. नसों में गांठ (Clot) पड़ जाने पर इससे इलाज़ किया जाता है. इस प्रकार यह स्मरण शक्ति क़ी वृद्धि एवं आयु वृद्धि में बहुत सहायक होता है. पौराणिक मतानुसार इसे यमराज ने अपनी बहन यमुना क़ी कालीय नाग के ज़हर से रक्षा के लिए कवच रूप में प्रदान किया था. मिश्र देश के पश्चिमी तट पर इसकी उत्पत्ती मानी जाती है. पुराणों के अनुसार बुध का जन्म भी मिश्र देश जिसका प्राचीन नाम कुलिककेतु है, में हुआ था. इस रत्न का परीक्षण भी हीरा के समान ही होता है. यह एक तरह का शीतविष भी है. कहा जाता है यमराज ने इसे उपहार के रूप में वासुकी से प्राप्त किया था. इसका एक नाम तार्क्ष्य भी है.
यद्यपि यह रत्न बुध के लिए प्रयुक्त होता है. किन्तु यदि बुध किसी भी प्रकार मंगल से सम्बन्ध बनाता है तो पन्ना का कोई भी प्रभाव नहीं होगा. किन्तु यदि बुध ग्रह केतु के साथ या दृष्ट है तो इसका प्रभाव सौ गुणा बढ़ जाता है. राहू या शनि के साथ बुध क़ी युति या दृष्टि हो तो पन्ना धारण न करें. शेष ग्रहों से युति होने पर पन्ना प्रभावी होता है. इसे हमेशा सोने क़ी अंगूठी में ही धारण करना चाहिए. दाहिने हाथ क़ी सबसे छोटे अंगुली में इसे बुध वार को धारण करते है. आश्विन, मार्गशीर्ष, वैशाख माह, कृतिका, चित्रा, मूल एवं धनिष्ठा नक्षत्रो में इसे धारण न करें. इसके लिए सबसे श्रेष्ठ नक्षत्र पुनर्वसु है. किन्तु उस नक्षत्र में कोई अन्य पाप ग्रह न हो. पन्ना का शुभ प्रभाव चौबीस ghante में ही बुध क़ी अन्सात्मक युति या भोग के आधार पर प्रकट हो जाता है. इसी तरह इसका अशुभ प्रभाव भी प्रकट होता है. किन्तु यदि इसका विपरीत प्रभाव हुआ तो पांचवें वर्ष में लगभग परिवार का प्रत्येक सदस्य गंभीर वीमारी से ग्रस्त हो जाता है. और उसके बाद अगले सत्रह वर्षो तक निरंतर उपद्रव होते रहते है. इसके अशुभ प्रभाव को टालने के लिए वर्तुल नग धारण करना चाहिए.
नीलम (Sapphire)

इसका एक नाम नील कान्त मणि भी है. ब्राज़ील देश से इसकी उत्पत्ती मानी जाती है. भारत में अनंत नाग (काश्मीर) का नीलम उत्तम माना जाता है. यह फास्फोरस एवं ब्रोमिन का यौगिक होता है. यह एक अत्यंत घातक रासायनिक यौगिक है. यह जितने समय में शुभ प्रभाव दिखाता है. उससे सौ गुणा कम समय में अपना अशुभ प्रभाव प्रकट कर देता है. इसकी उत्पत्ती नेल्लोरा हिल (जर्मनी) माना जाता है. पौराणिक मतानुसार एक बार किसी कारण वश हनुमान जी एवं शनि देव में विवाद उत्पन्न हो गया. शनि देव को यह गर्व था कि एक तो वह देव ग्रह है जिसे यज्ञ में अधिकार मिला हुआ है. दूसरे वह हनुमान जी के गुरु एवं उनके आराध्य देव सूर्य के पुत्र है. अतः उनका स्थान हनुमान जी से ऊंचा है. हनुमान जी को इससे कोई नाराजगी नहीं थी. न उन्हें इसका कोई आत्मा हीन भाव ही था. उनके इस सीधापन से शनि देव और ज्यादा चिढ जाते थे. यद्यपि भगवान सूर्य देव इस रहस्य को जानते थे. किन्तु शनि देव को वह इस लिए कुछ नहीं कहते थे कि उनकी पत्नी तथा शनि देव क़ी माता छाया उग्र विवाद खडा कर देती थी. एक बार शनि देव को कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने उस राम मंदिर को ही ढहा दिया जिसमें हनुमान जी नित्य ही पूजा करने जाया करते थे. हनुमान जी मंदिर पहुंचे. उनको बहुत दुःख हुआ. उन्होंने जैसे तैसे कर के भगवान क़ी मूर्ती को खडा करना चाहा. शनि देव बोले कि यहाँ मेरे मनोरंजन का कक्ष बनेगा. यहाँ कोई मंदिर नहीं बनेगा. हनुमान जी फिर भी झगड़ा पसंद नहीं किये. उन्होंने भगवान क़ी प्रतिमा उठायी और चलते बने. शनि देव गरज कर बोले कि यहाँ कि कोई भी चीज कही नहीं जायेगी. और उन्होंने प्रतिमा छिनना चाहा. इसी झगड़े में वह प्रतिमी गिर कर टूट गयी. अब हनुमान जी आग बबूला होकर शनिदेव को अपनी पूंछ में लपेट कर पटकना शुरू किया. इतना पटके इतना पटके कि शनिदेव मूर्छित होने लगे. फिर शनिदेव हनुमान जी को रोक कर बोले कि हे हनुमान! मेरी आप से कोई दुश्मनी नहीं है. आप जिस क़ी पूजा करते है. वह मेरा ही वंशज है. मुझे अपने कुल के पूजा और सम्मान प्रदर्शन से भला क्यों विरोध हो सकता है? यह मेरी एक तरह से आप के धैर्य एवं भक्ति क़ी परिक्षा थी. मै आज बहुत ही प्रसन्न हूँ. जो चाहो वर मांग लो. हनुमान जी बोले कि हे शनि देव! यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो आज के बाद किसी भी प्राणी को किसी तरह क़ी पूजा पाठ में विघ्न न उपस्थित करें. शनिदेव बोले कि ऐसा ही हो. फिर उन्होंने कहा कि इसके अलावा मै एक और वरदान देना चाहता हूँ. जो तुम मांग नहीं सकते. या फिर तुम्हें इसकी आवश्यकता भी नहीं है. क्योकि तुम एक निःस्पृह भगवान भक्त हो. मै तुम्हे वरदान देता हूँ कि जो भी व्यक्ति तुम्हारी पूजा करेगा उसे मेरे अर्थात शनि क़ी कोई भी पीड़ा नहीं होगी. इधर झगड़े में हनुमान जी क़ी पूंछ से बहुत से बाल टूट कर बिखर गए थे. शनि देव ने कहा कि ये सारे बाल जो मेरे शरीर के काले रंग से रगड़ कर नीले पड़ गए है वे सब शक्ति शाली पत्थर बन जायेगे जो शनि कृत पीड़ा के समूल निवारण में सफल होगे. इस पत्थर का नाम नीलकान्तमणि पडा. जिसे आज नीलम कहा जाता है. यह कथा बालव उपाख्यान में दिया गया है. शुद्ध नीलम के सात गुण होते है. जो नीलम एक सी छाया वाला हो, अपने आकार क़ी तुलना में २१० गुणा भारी हो, चिकना हो, स्वच्छ हो, आकार में पिंड स्वरुप हो, मृदु, दीप्त तथा तेज युक्त हो इन सात गुणों से युक्त नीलम ही शुद्ध होता है. 50 ग्राम गाय के दूध एवं 10 ग्राम फिटकारी के घोल में डालने पर यदि घोल का रंग नीला पड़ जाय वही नीलम अंगूठी में धारण करना चाहिए. यह चिकित्सकीय मतानुसार अर्श (पिल्स) नाशक, बाँझ पण दोष नाशक एवं अर्बुद या संक्रमित विद्रधि या भगंदर क़ी अचूक औषधि है. यह सदा ही दाहिने हाथ क़ी मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए. किन्तु जिस व्यक्ति के परिवार में कोई भी व्यक्ति दमा (Asthama) का रोगी हो उस परिवार में नीलम किसी को भी धारण नहीं करना चाहिए. बल्कि “गोकर्ण मणि” धारण करनी चाहिए. दाहिने हाथ क़ी बीच वाली बड़ी अंगुली के शिरो पर्व पर जितनी रेखाएं हो उतने ही रत्ती वजन का नीलम होना चाहिए. इसे सदा सोने क़ी ही अंगूठी में धारण करना चाहिए. अश्विनी, भरणी, ज्येष्ठा, अनुराधा, मघा एवं पुनर्वसु नक्षत्र में कभी भी नीलम न धारण करें. अश्विन, फाल्गुन एवं चैत्र महीने में न धारण करें. शनिवार के अलावा किसी भी दिन इसे धारण न करें. यदि कुंडली में शनि चन्द्रमा से बारहवें या दूसरे बैठा हो तो अवशया नीलम धारण करें. यदि राहू या केतु से ग्रस्त शनि हो तो सान्द्र नीलम होना चाहिए. मंगल के कारण शनि दोष युक्त हो तो तनु नीलम धारण करें. सूर्य के कारण शनि दोष युक्त हो तो पालित नीलम धारण करें. यदि कुंडली में शनि के कारण कोई शुभ भाव दूषित हो रहा हो तो नाभ नीलम धारण करें. यही शास्त्र सम्मत है.

Saturday 22 June 2013

मर्यादा पुरूषोत्तम राम और असुर सम्राट रावण की जन्मकुंडली का विश्लेषण

भगवान श्रीराम और असुर सम्राट रावण की जन्म कुंडली में काफी समानताएं होते हुए भी ग्रहों के शुभाशुभ प्रभाव ने दोनों में से एक को मर्यादा पुरूषोत्तम बनाया, जबकि दूसरा [रावण] आसुरी प्रवृत्तियों का पर्याय बनकर बुराई का प्रतीक बन गया।
भगवान राम व असुर सम्राट रावण का जन्म लग्न चर राशि का है। श्रीराम की कुंडली में चारों केंद्रों में उच्च के ग्रह होकर पंच महापुरूष योग का निर्माण कर रहे हैं। बृहस्पति से हंस योग, शनि से शश योग, मंगल से रूचक योग का निर्माण हो रहा है। रावण की कुंडली में भी पंच महापुरूष बन रहे हैं। श्रीराम के पांच ग्रह उच्च के हैं, तो रावण की कुंडली में भी पांच ग्रह उच्च के हैं।

भगवान श्री रामचंद्र जी की  जन्मकुंडली 
लंकापति रावन की जन्मकुंडली

श्रीराम की जन्मकुंडली एवं जीवन चक्र राम का जन्म कर्क लग्न में हुआ था। कर्क लग्न व्यक्ति के सत्कर्मी, निष्कलंक और यशस्वी होने का परिचायक है। कर्क लग्न के साथ-साथ यदि लग्नेश चंद्र भी लग्न में हो, तो जातक समृद्ध, सुसंस्कृत, न्यायप्रिय, सत्यनिष्ठ, क्षमाशील और विद्वान होता है। वह भाग्यशाली तथा जीवन में उच्च स्थान को प्राप्त करने वाला होता है। उसे देश-विदेश में सम्मान की प्राप्ति होती है। कर्क लग्न में चंद्र के साथ गुरु भी इसी भाव में स्थित हो, तो व्यक्ति सत्यनिष्ठ व न्यायप्रिय है और उसका व्यवहार मृदु होता है। कर्क राशि में गुरु के उच्चस्थ होने के कारण जातक जीवन-मूल्यों की प्रतिष्ठा बनाये  रखने के लिए कोई भी बलिदान कर सकता है। ऐसा व्यक्ति ऐसी अदृश्य ढाल से युक्त होता है जिसे खरौंच तक भी नहीं लगती। वह आत्म सम्मान को विश्व की सकल संपदा से भी अधिक समझता है। इसी कर्क लग्न में अवतरित भगवान राम में ये सारे गुण विद्यमान थे। इसीलिए वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहलाए। भगवान राम की कुंडली में मंगल के सप्तम भाव में उच्चस्थ होने के कारण उनका विवाह माता सीता जैसी दिव्य कन्या से हुआ। कुंडली में मंगल स्थित राशि मकर का स्वामी शनि भी उच्चस्थ है तथा शनि स्थित राशि का स्वामी शुक्र भी उच्चस्थ है। शुक्र पत्नी का प्रतिनिधि ग्रह है। अतः भगवान राम का माता सीता जैसी दिव्य कन्या से विवाह होना स्वाभाविक है। भगवान राम की जन्म कुंडली में मंगल सप्तम भाव में होने से मंगलीक है। किंतु उसके उच्च राशिस्थ होने से उसका दोष निष्प्रभावी तो रहा किंतु सप्तम् भाव एवं उसके कारकेश शुक्र पर राहु की दृष्टि और केतु की स्थिति तथा सप्तम् भाव में विध्वंसक मंगल की स्थिति के कारण पत्नी वियोग का दुख झेलना पड़ा। शनि, मंगल व राहु की दशम् भाव एवं सूर्य पर दृष्टि पिता की मृत्यु का कारण बनी। शनि की चतुर्थ भाव में स्थिति और चंद्र एवं चंद्र राशि कर्क पर दृष्टि के कारण माताओं को वैधव्य देखना पड़ा। छोटे भाई का प्रतिनिधि ग्रह मंगल सप्तम् भाव में उच्च का है और उस पर गुरु की दृष्टि है, जिसके फलस्वरूप छोटे भाइयों ने भगवान राम की पत्नी अर्थात माता सीता को माता का आदर दिया। उच्च के ग्रह से हंस योग, शनि से शश योग, मंगल से रुचक योग और चंद्र के लग्न में होने के फलस्वरूप गजकेसरी योग है। गुरु और चंद्र के प्रबल होने के कारण यह गजकेसरी योग अत्यंत प्रबल है। पुनर्वसु के अंतिम चरण में होने से चंद्र स्वक्षेत्री  है। अतः भगवान श्री राम के सामने जो भी कठिनाइयां आईं उनका उन्होंने सफलतापूर्वक सामना किया। पांच ग्रहों के उच्च के होने के कारण भगवान अवतारी पुरुष हुए। चंद्र और लग्न के बली गुरु से प्रभावित होने के कारण भगवान ने मर्यादाओं का पालन किया। महर्षि वाल्मीकी के भगवान राम के जन्मचक्र के वर्णन में राहु, केतु एवं बुध की स्थिति का ज्ञान नहीं होता। किंतु भगवान राम के जीवन चरित्र के अनुसार अनुमान लगाया जा सकता है कि ये ग्रह किस भाव एवं किस राशि में होंगे। भगवान राम अत्यंत प्रतापी हुए। इससे पता चलता है कि उनकी जन्मकुंडली में राहु की स्थिति तृतीय भाव कन्या राशि में होगी क्योंकि तृतीय भाव का राहु जातक को पराक्रमी एवं प्रतापी बनाता हैं। इसके अनुसार केतु नवम् भाव में उच्च के शुक्र से युत है। इसी शुक्र के कारण भगवान राम के पराक्रमी एवं प्रतापी बनने में उनकी पत्नी माता सीता माध्यम एवं कारण बनीं। पंचमेश मंगल के पंचम से तीसरे स्थान पर होने के कारण भगवान राम के पुत्र भी अत्यंत पराक्रमी हुए। बुध एवं शुक्र कभी भी सूर्य से 28 अंश से अधिक दूरी पर नहीं जाते इसलिए दोनों को सूर्य के साथ अथवा इर्द-गिर्द ही माना जाएगा। भगवान राम के जीवन चरित्र के अनुसार शुक्र को नवम् भाव के मीन राशि में होना उपयुक्त माना जाएगा। बुध निर्बल ग्रह है। किंतु बृषभ राशि में होने पर वह निर्बल नहीं रह जाता क्योंकि बृषभ राशि का स्वामी शुक्र बुध का मित्र है जो उच्च राशिस्थ है और जिस राशि में वह है उसका स्वामी गुरु भी लग्न में उच्च राशिस्थ है। यहीं पर ग्रहों की शृंखला समाप्त होती है। इसके अलावा बुध द्वादश भाव का स्वामी है और द्वादश भाव से द्वादश होने के कारण अति बली है। अत्यंत बली बुध की राशि कन्या में राहु की स्थिति ने ही भगवान राम को पराक्रमी बनाया। लग्नेश भाग्येश का योग और उन पर पंचमेश, सप्तमेश और दशमेश की दृष्टि से प्रबल राजयोग बना। उच्च का सुखेश शुक्र भाग्य स्थान में है और उस पर भाग्येश गुरु की दृष्टि है। इन्हीं योगों के कारण भगवान चक्रवर्ती सम्राट बने। चतुर्थेश शुक्र के उच्च होने के कारण भगवान राम सांसारिक हुए। चतुर्थ भाव से शनि की दृष्टि लग्न स्थित गुरु पर होने के कारण वह वैरागी हुए अर्थात् सत्ता  के अधिकारी होते हुए भी वह वैरागी राजा सिद्ध हुए। चंद्रमा पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण में है जिसके कारण उनका जन्म गुरु की 16 वर्षों की महादशा में हुआ। पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण में जन्म होन के कारण गुरु की महादशा शेष अधिक से अधिक चार वर्ष रही होगी। तत्पश्चात् शनि की महादशा 19 वर्ष की आई जो 23 वर्ष की आयु तक चली। पुराणों के अनुसार भगवान श्री राम का विवाह 18 वर्ष की आयु में हुआ। उस समय सप्तमेश शनि की महादशा और अंतर्दशा स्वामी गोचर का गुरु सप्तम् स्थान में था। पुराणों के अनुसार 27 वर्ष की आयु में भगवान को चैदह वर्षों का बनवास हुआ और उनके वियोग में उनके पिता महाराज दशरथ का स्वर्गवास हुआ। उस समय भगवान श्री राम बुध की महादशा के प्रभाव में थे। बुध तृतीयेश एवं व्ययेश होने के कारण कष्टकारक था। गोचर में सिंह का शनि दूसरे भाव में था। यह साढ़े साती का अंतिम चरण था। गुरु चंद्रमा से चैथी राशि तुला में था। यह बुध तृतीयेश षष्ठेश पिता के भाव से होकर दूसरे भाव में था। अतः पिता के लिए मारक था और भगवान राम तथा कुटुंब के लिए कष्टकारक था। बुध की दशा में ही सीताहरण हुआ। व्ययेश की दशा में शय्या सुख का नाश होता है और कष्टकारक यात्रा होती है। केतु के नवम् भाव में स्वक्षेत्री होने के कारण लंका विजय करके पुनः अयोध्या के सम्राट बने। जैमिनि ज्योतिष के अनुसार लग्नेश और अष्टमेश यदि चर राशि के होते हैं तो जातक दीर्घायु होता है। भगवान श्री राम का लग्नेश चंद्र चर राशि का है तथा अष्टमेश शनि भी तुला राशि में चर राशि का है। लग्न में गुरु व चंद्र के बली होने के फलस्वरूप भगवान ने अमित आयु प्राप्त की और इसका सदुपयोग भी किया। इस प्रकार ग्रहों की शुभाशुभ स्थिति के फलस्वरूप मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अनेक कष्ट झेले, रावण जैसे शत्रु पर विजय प्राप्त की और राम राज्य की स्थापना की।


लंकापति रावण की जन्मकुंडली का विश्लेषण - लकापति रावण की कुंडली का विवेचन इस प्रकार है। रावण की जन्म कुंडली में लग्नेश सूर्य के लग्न में स्थित होने तथा नैसर्गिक शुभ ग्रह गुरु के भी लग्न में होने के कारण लग्न अति बलवान था। लग्न बलवान हो, तो व्यक्ति सुखी और समृद्ध होता है। उसका आत्मबल भी उच्च कोटि का था। लग्नस्थ सूर्य पर क्रूर ग्रह मंगल की दृष्टि होने के कारण वह अहंकारी और तानाशाह प्रवत्ति  का था। कुंडली के द्वितीय भाव में लाभेश और धनेश बुध की उसकी अपनी ही स्वयं की राशि में स्थिति के कारण धनयोग का निर्माण हो रहा है। इस कारण वह अतुलित धन सम्पत्ति का स्वामी था। तृतीय भाव का स्वामी शुक्र दशम भाव में है, और यहां उसकी राशि तुला में केतु और स्त्री भाव का स्वामी शनि बैठे हैं। इसी कारण वह बहुत विलासप्रिय रहा होगा। भ्रातृ भाव त्रत्तीय  स्थान प्रथकतावादी ग्रह उच्च का शनि केतु के साथ स्थित है। एक अन्य पृथकतावादी ग्रह है और दूसरा विच्छेदात्मक ग्रह राहु की दृष्टि भ्रातृ भाव पर है। इस कारण रावण को अपने ही भाई विभीषण के विरोध का सामना करना पड़ा और वह उसका शत्रु बन गया। पंचमेश गुरु के पंचम से नवम् भाव में और जन्मकुंडली के लग्न स्थान में स्थित होने तथा लग्न से अपने ही भाव,विद्या , बुद्धि, संतान को पूर्ण दृष्टि से देखने के कारण वह अनेक पुत्रों वाला, विद्यावान, बुद्धिमान और शास्त्रज्ञ था। लग्न में लग्नेश सूर्य और पंचमेश की युति गुरु ने रावण को प्रख्यात ज्योतिषाचार्य बनाया। गुरु की दूसरी राशि अष्टम में होने के कारण तथा अष्टमेश गुरु अष्टम स्थान से षष्ठ स्थान में स्थित है और पंचम भाव पर शनि की दृष्टि है। यह सारी स्थिति अंत में रावण की विद्या-बुद्धि के विनाश कारण बनी। अतः विनाशकाल के समय उसकी बुद्धि विपरीत हो गई थी। भाग्य भाव नवम स्थान में राहु की उपस्थिति के कारण रावण का भाग्य बलवान था। मंगल की राशि मेष में स्थित राहु पर उच्च के शनि की पूर्ण दृष्टि है। इस कारण वह सफल राजनीतिज्ञ व कूटनीतिज्ञ बना तथा इसी योग के कारण उसमें नेतृत्व करने की अपूर्व क्षमता भी थी। नवम् भाव का कारक गुरु है। यह भाव धर्म भाव भी कहलाता है। ऐसे स्थान में पापग्रह राहु के स्थित होने से रावण भगवान् राम का विरोधी था। राज्येश शुक्र के राज्य भाव   दसम  स्थान में होने के कारण रावण का शासन पक्ष बहुत मजबूत था। इसलिए दीर्घकाल तक उसने विशाल राज्य का पूर्ण सुख भोगा। लग्नेश और पंचमेश का युति संबंध भी राज योग का निर्माण करता है। रावण के जन्म चक्र में ग्रहों का राजा सूर्य लग्नेश होकर स्वयं लग्न में पंचमेश गुरु के साथ बैठा है। राशि मकर थी। यह वैश्य राशि है और इसका स्वामी शनि शूद्र वर्ण का ग्रह है। अतः रावण सत्गुणी ब्राह्मण नहीं था। वह रजोगुण प्रधान था। आयु भाव का स्वामी (अष्टमेश) गुरु लग्नेश सूर्य के साथ देह भाव में स्थित है मारकेश बुध मारक भाव में स्थित है। सप्तमेश शनि के पराक्रम भाव में और गुरु के केंद्र स्थान में होने से कक्षा वृद्धि हो रही है। रावण की जन्मकुंडली के लग्न में स्थिर राशि और अष्टम में द्विस्वभाव राशी होने से दीर्घ आयु योग है। कक्ष्या वृद्धि होने के कारण यह परम आयु योग बन गया है। इस योग के कारण ही रावण लगभग 10,000 वर्ष तक जीवित रहा।त्रेतायुग में मनुष्य की अधिकतम आयु दस हजार वर्ष ही थी  रावण के पतन का कारण षष्ठ भाव में चंद्र और मंगल की युति है। षष्ठ भाव को शत्रु स्थान भी कहा जाता है। यहां व्ययेश चंद्र के साथ मंगल स्थित है। सिंह लग्न के लिए मंगल जिस भाव में स्थित होता है, उसकी वृद्धि करता है। चंद्र स्त्री ग्रह है और रावण की कुंडली में व्ययेश भी है, इसलिए एक स्त्री अर्थात सीताजी उसके साम्राज्य के पतन और उसकी मृत्यु का कारण बनीं। शत्रु भाव में मंगल की उच्च राशि मकर तथा अष्टम भाव में गुरु की राशि होने के कारण मर्यादा पुरुषोŸाम भगवान श्रीराम के हाथों रावण की मृत्यु हुई। एक प्रकार से यह ब्रह्म सामीप्य मुक्ति है। राम ने रावण की नाभि में स्थित अमृत में अग्निबाण मारा था। चंद्र अमृत और मंगल अग्नि बाण का प्रतीक है। धनेश के प्रबल त्रिषडायेश होकर कुटुंब भावस्थ होने के कारण धन, कुटुंब, पुत्रादि की हुई। रावण ब्राह्मण था। किंतु ज्योतिष शास्त्र इसे स्वीकार्य नहीं करता क्योंकि सिंह लग्न वाला व्यक्ति रजोगुणी होता है। इस लग्न का स्वामी सूर्य क्षत्रिय वर्ण का है। यदि हम चंद्र राशि के आधार पर देखें तो रावण की राशि मकर थी। यह वैश्य राशि है और इसका स्वामी शनि शूद्र वर्ण का ग्रह है। अतः रावण सत्गुणी ब्राह्मण नहीं था। वह रजोगुण प्रधान था। कब हुआ था रावण का वध गहन अनुसंधान और गणना के अनुसार आज से लगभग 1 करोड़ 81लाख वर्ष पूर्व 24वें महायुग के त्रेता में भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था।  इस दिन दस सिर वाले दशानन रावण का वध हुआ था इसलिए इसका नाम दशहरा पड़ा। इस दिन भगवान राम ने भगवती विजया (अपराजिता देवी) का विधिवत् पूजन करके लंका पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए इस पर्व का नाम विजयादशमी पड़ा। विजयादशमी के दिन विजया देवी की पूजा होती है। विजया दशमी के दिन जब रामचंद्र जी लंका पर चढ़ाई करने जा रहे थे उस समय शमी वृक्ष ने उनकी विजय का उद्घोष किया था। समुद्र का पानी मीठा नहीं कर सका लंकेश्वर श्री वाल्मीकि रामायण कालीन पौराणिक इतिहास के अनुसार रावण लगभग दस हजार वर्षों तक जीवित रहा। उसमें अनंत शक्ति, शौर्य, प्रतिभा और ज्ञान था। किंतु उसने इतने दीर्घ जीवनकाल में अपनी असीमित शक्तियों का दुरुपयोग ही किया, मानव कल्याण हेतु उनका कभी सदुपयोग नहीं किया। मरते समय उसे इस बात का बहुत पश्चाताप और दुःख था। मरणासन्न अवस्था में उसने लक्ष्मण जी से कहा था कि वह स्वर्ग जाने हेतु सीढ़ियों का निर्माण करना, स्वर्ण जैसी बहुमूल्य धातु में सुगंध भरना तथा समुद्र के पानी का खारापन दूर करके उसे पीने योग्य बनाना चाहता था। किंतु उसने समय का सदुपयोग नहीं किया इसलिए मेरी ये इच्छाएं अधूरी रह गईं। मध्यप्रदेश के मंदसौर नगर में रावण की ससुराल थी। उसकी पटरानी मन्दोदरी मन्दसौर के राजा की पुत्री थी। इस कारण आज भी मन्दसौर जिले में रावण दहन नहीं किया जाता है। कुछ लोग यहां रावण की पूजा भी करते हैं। रावण ब्राह्मण होने के साथ-साथ शास्त्रों का ज्ञाता भी था। इसके बावजूद उसे हिन्दू धर्म में आदर्श पुरुष नहीं माना गया है। राम का शत्रु होने के कारण वह अपनी ही आत्मा का हनन करने वाला आत्मशत्रु भी था। श्रुति के अनुसार ऐसे व्यक्ति कोब्रह्मसायुज्यमुक्ति नहीं मिलती है।