Monday 22 April 2013

संतान दोष के ज्योतिषीय कारण, उपाय

हर विवाहित स्त्री चाहती हैं कि उसका भी कोई अपना हो जो उसे मां कहकर पुकारे। सामान्यत: अधिकांश महिलाएं भाग्यशाली होती हैं जिन्हें यह सुख प्राप्त हो जाता है।फिर भी काफी महिलाएं ऐसी हैं जो मां बनने के सुख से वंचित हैं। यदि पति-पत्नी दोनों ही स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम हैं फिर भी उनके यहां संतान उत्पन्न नहीं हो रही है।
ऐसे में संभव है कि ज्योतिष संबंधी कोई अशुभ फल देने वाला ग्रह उन्हें इस सुख से वंचित रखे हुए है। यदि पति स्वास्थ्य और ज्योतिष के दोषों से दूर है तो स्त्री की कुंडली में संतान संबंधी कोई रुकावट हो सकती है।

ज्योतिष के अनुसार संतान उत्पत्ति में रुकावट पैदा करने वाले योग-

- जब पंचम भाव में का स्वामी सप्तम में तथा सप्तमेश सभी क्रूर ग्रह से युक्त हो तो वह स्त्री मां नहीं बन पाती।
- पंचम भाव यदि बुध से पीडि़त हो या स्त्री का सप्तम भाव में शत्रु राशि या नीच का बुध हो तो स्त्री संतान उत्पन्न नहीं कर पाती।
- पंचम भाव में राहु हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो, सप्तम भाव पर मंगल और केतु की नजर हो, तथा शुक्र अष्टमेश हो तो संतान पैदा करने में समस्या उत्पन्न होती हैं।
- सप्तम भाव में सूर्य नीच का हो अथवा शनि नीच का हो तो संतानोत्पत्ती में समस्या आती हैं।

संतान प्राप्ति हेतु क्या करें ज्योतिषीय उपाय-


यदि किसी युवती की कुंडली यह ग्रह योग हैं तो इन बुरे ग्रह योग से बचने के लिए उन्हें यह उपाय करने चाहिए:

पहला उपाए: संतान गोपाल मंत्र के सवा लाख जप शुभ मुहूर्त में शुरू करें। साथ ही बालमुकुंद (लड्डूगोपाल जी) भगवान की पूजन करें। उनको माखन-मिश्री का भोग लगाएं। गणपति का स्मरण करके शुद्ध घी का दीपक प्रज्जवलित करके निम्न मंत्र का जप करें। मंत्र- ऊं क्लीं देवकी सूत गोविंदो वासुदेव जगतपते देहि मे, तनयं कृष्ण त्वामहम् शरणंगता: क्लीं ऊं।।
दूसरा उपाए: सपत्नीक कदली (केले) वृक्ष के नीचे बालमुकुंद भगवान की पूजन करें। कदली वृक्ष की पूजन करें, गुड़, चने का भोग लगाएं। 21 गुरुवार करने से संतान की प्राप्ती होती है।
तीसरा उपाए: 11 प्रदोष का व्रत करें, प्रत्येक प्रदोष को भगवान शंकर का रुद्राभिषेक करने से संतान की प्राप्त होती है।
चौथा उपाए: गरीब बालक, बालिकाओं को गोद लें, उन्हें पढ़ाएं, लिखाएं, वस्त्र, कापी, पुस्तक, खाने पीने का खर्चा दो वर्ष तक उठाने से संतान की प्राप्त होती है।
पांचवां उपाए: आम, बील, आंवले, नीम, पीपल के पांच पौधे लगाने से संतान की प्राप्ति होती है।

कुछ अन्य प्रभावी उपाय ---

- हरिवंश पुराण का पाठ करें।
- गोपाल सहस्रनाम का पाठ करें।
- पंचम-सप्तम स्थान पर स्थित क्रूर ग्रह का उपचार करें।
- दूध का सेवन करें।
- सृजन के देवता भगवान शिव का प्रतिदिन विधि-विधान से पूजन करें।
- किसी बड़े का अनादर करके उसकी बद्दुआ ना लें।
- पूर्णत: धार्मिक आचरण रखें।
- गरीबों और असहाय लोगों की मदद करें। उन्हें खाना खिलाएं, दान करें।
- किसी अनाथालय में गुप्त दान दें।

दुर्लभ होते हैं 15 से 21 मुखी तक के रुद्राक्ष

15 To 21 Mukhi Rudraksh
पन्द्रहमुखी से लेकर इक्कीसमुखी तक के रूद्राक्ष का मिलना दुर्लभ होते हैं। किन्तु इन रूद्राक्षों के बारे में जानकारी होना जरूरी है। इन रुद्राक्षों में से किसी को भी अगर आप धारण करते हैं, तो आपके जीवन में सुख समृद्धि चारों तरफ से आती है।
पन्द्रमुखी- यह रूद्राक्ष भगवान पशुपति का स्वरूप माना गया है। इसको धारण करने से जाने-अनजाने में किये गये पापों का नाश होता है, और धार्मिक कार्यो की ओर मन अग्रसर होता है,जिससे धन, पद, प्रतिष्ठा एंव परिवार में सुख व शान्ति का वातावरण बना रहता है।
सोलहमुखी- यह रूद्राक्ष भगवान हरिशंकर का साक्षात स्वरूप है। इस रूद्राक्ष को धारण करने से चोरी, शत्रुओं व नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है तथा सुख व शान्ति बनी रहती है। जिस परिवार में सोलहमुखी रूद्राक्ष का नियमित पूजन व अर्चन होता है, उस घर में चोरी, डकैती, अपहरण, अकालमृत्यु, अग्निकाण्ड व बुरी नजर आदि का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।
सत्रहमुखी- यह रूद्राक्ष साक्षात सीता और राम का स्वरूप माना जाता है। इसे धारण करने वाले मनुष्य की आन्तरिक व अध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होती है। शरीर को निरोगी एंव शक्तिशाली बनाता है एंव जायदाद, वाहन व गुप्त धन की प्राप्ति होती है।
अठारहमुखी- यह रूद्राक्ष कालभैरव का स्वरूप माना जाता है। इस रूद्राक्ष को पहने से विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों से छुटकारा मिलता है। यह रूद्राक्ष स्त्रियों के लिए विशेष लाभकारी होता है। जैसे- स्त्री रोग, गर्भपात व सन्तान प्राप्ति में बाधा दूर करके सकारात्मक परिणाम दिलाता है।
उन्नीसमुखी- यह रूद्राक्ष भगवान नारायण का प्रतीक माना जाता है। इसे धारण करने से किसी भी प्रकार की व्यवसाय में आने वाली बाधा दूर होती है तथा व्यापार में प्रगतिशीलता परिलक्षित होती है। कोर्ट-कचहरी आदि से सम्बन्धित लम्बित मामलों में विजय प्राप्त होती है एंव घरेलू झगड़ों में कमी आती है।
बीसमुखी- यह रूद्राक्ष ब्रह्रमा का प्रतीक माना गया है। इस रूद्राक्ष को धारण करने से साधक वर्ग की कुण्डलनी जाग्रत होती है एंव धारक को घटना व परिघटना का पूर्वानुमान महसूस होने लगता है। नवग्रहों के सभी प्रकार के दुष्प्रभावों को नष्ट करने में बीसमुखी रूद्राक्ष सक्षम होता है।
इक्कीसमुखी- यह रूद्राक्ष साक्षात भगवान कुबेर का स्वरूप माना गया है, किन्तु इसका मिल-पाना अतिदुर्लभ है। यह भौतिक जगत के विभिन्न प्रकार के सुखों को प्रदान करने में सक्षम है। इसे धारण करने से साहस, बल, बुद्धि, विद्या, धन, प्रतिष्ठा, व्यवसाय, नौकरी आदि में सफलता मिलती है।

कुंडली ना होने पर क्या करें


कुछ लोगों के पास जन्म कुंडली इत्यादि की जानकारी नहीं होती वे लोग अपने कार्यक्षेत्र के अनुसार भी रुद्राक्ष का लाभ उठा सकते हैं । कार्य की प्रकृति के अनुरूप रुद्राक्ष-धारण करना कैरियर के सर्वांगीण विकास हेतु शुभ एवं फलदायी होता है। 



Saturday 20 April 2013

दो शब्द ...........................

बीजासेन ज्योतिष एक प्रयास है आम आदमी को ज्योतिष द्वारा निःशुल्क परामर्श प्रदान करने का ताकि उसे गृह सम्बंधित समस्या में राहत मिल सके |
यहाँ उपस्थित विचार किसी एक व्यक्ति विशेष के ना होकर कई महान सन्त , ज्योतिषी व नेट से लिए हो सकते है यदि किसी को भी आपत्ति हो तो वह सूचित करे उस पर तुरंत विचार कर निर्णय लिया जावेगा |


जय माता जी की