Tuesday 25 June 2013

पन्ना एवं नीलम क़ी उत्पत्ति कथा एवं उपयोगिता

पन्ना (Emerald)

यह रत्न बुध ग्रह से सम्बंधित दोष के निवारण हेतु प्रयुक्त होता है. यह मात्र दो ही तरह का होता है. एक गहरा हरा एवं एक हल्का हरा. यह कार्बन एवं जलाश्म का यौगिक होता है. औषधि के रूप में इसका सीधा प्रभाव फेफड़ा एवं श्रोणी मेखला (Pelvic Girdle) पर होता है. नसों में गांठ (Clot) पड़ जाने पर इससे इलाज़ किया जाता है. इस प्रकार यह स्मरण शक्ति क़ी वृद्धि एवं आयु वृद्धि में बहुत सहायक होता है. पौराणिक मतानुसार इसे यमराज ने अपनी बहन यमुना क़ी कालीय नाग के ज़हर से रक्षा के लिए कवच रूप में प्रदान किया था. मिश्र देश के पश्चिमी तट पर इसकी उत्पत्ती मानी जाती है. पुराणों के अनुसार बुध का जन्म भी मिश्र देश जिसका प्राचीन नाम कुलिककेतु है, में हुआ था. इस रत्न का परीक्षण भी हीरा के समान ही होता है. यह एक तरह का शीतविष भी है. कहा जाता है यमराज ने इसे उपहार के रूप में वासुकी से प्राप्त किया था. इसका एक नाम तार्क्ष्य भी है.
यद्यपि यह रत्न बुध के लिए प्रयुक्त होता है. किन्तु यदि बुध किसी भी प्रकार मंगल से सम्बन्ध बनाता है तो पन्ना का कोई भी प्रभाव नहीं होगा. किन्तु यदि बुध ग्रह केतु के साथ या दृष्ट है तो इसका प्रभाव सौ गुणा बढ़ जाता है. राहू या शनि के साथ बुध क़ी युति या दृष्टि हो तो पन्ना धारण न करें. शेष ग्रहों से युति होने पर पन्ना प्रभावी होता है. इसे हमेशा सोने क़ी अंगूठी में ही धारण करना चाहिए. दाहिने हाथ क़ी सबसे छोटे अंगुली में इसे बुध वार को धारण करते है. आश्विन, मार्गशीर्ष, वैशाख माह, कृतिका, चित्रा, मूल एवं धनिष्ठा नक्षत्रो में इसे धारण न करें. इसके लिए सबसे श्रेष्ठ नक्षत्र पुनर्वसु है. किन्तु उस नक्षत्र में कोई अन्य पाप ग्रह न हो. पन्ना का शुभ प्रभाव चौबीस ghante में ही बुध क़ी अन्सात्मक युति या भोग के आधार पर प्रकट हो जाता है. इसी तरह इसका अशुभ प्रभाव भी प्रकट होता है. किन्तु यदि इसका विपरीत प्रभाव हुआ तो पांचवें वर्ष में लगभग परिवार का प्रत्येक सदस्य गंभीर वीमारी से ग्रस्त हो जाता है. और उसके बाद अगले सत्रह वर्षो तक निरंतर उपद्रव होते रहते है. इसके अशुभ प्रभाव को टालने के लिए वर्तुल नग धारण करना चाहिए.
नीलम (Sapphire)

इसका एक नाम नील कान्त मणि भी है. ब्राज़ील देश से इसकी उत्पत्ती मानी जाती है. भारत में अनंत नाग (काश्मीर) का नीलम उत्तम माना जाता है. यह फास्फोरस एवं ब्रोमिन का यौगिक होता है. यह एक अत्यंत घातक रासायनिक यौगिक है. यह जितने समय में शुभ प्रभाव दिखाता है. उससे सौ गुणा कम समय में अपना अशुभ प्रभाव प्रकट कर देता है. इसकी उत्पत्ती नेल्लोरा हिल (जर्मनी) माना जाता है. पौराणिक मतानुसार एक बार किसी कारण वश हनुमान जी एवं शनि देव में विवाद उत्पन्न हो गया. शनि देव को यह गर्व था कि एक तो वह देव ग्रह है जिसे यज्ञ में अधिकार मिला हुआ है. दूसरे वह हनुमान जी के गुरु एवं उनके आराध्य देव सूर्य के पुत्र है. अतः उनका स्थान हनुमान जी से ऊंचा है. हनुमान जी को इससे कोई नाराजगी नहीं थी. न उन्हें इसका कोई आत्मा हीन भाव ही था. उनके इस सीधापन से शनि देव और ज्यादा चिढ जाते थे. यद्यपि भगवान सूर्य देव इस रहस्य को जानते थे. किन्तु शनि देव को वह इस लिए कुछ नहीं कहते थे कि उनकी पत्नी तथा शनि देव क़ी माता छाया उग्र विवाद खडा कर देती थी. एक बार शनि देव को कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने उस राम मंदिर को ही ढहा दिया जिसमें हनुमान जी नित्य ही पूजा करने जाया करते थे. हनुमान जी मंदिर पहुंचे. उनको बहुत दुःख हुआ. उन्होंने जैसे तैसे कर के भगवान क़ी मूर्ती को खडा करना चाहा. शनि देव बोले कि यहाँ मेरे मनोरंजन का कक्ष बनेगा. यहाँ कोई मंदिर नहीं बनेगा. हनुमान जी फिर भी झगड़ा पसंद नहीं किये. उन्होंने भगवान क़ी प्रतिमा उठायी और चलते बने. शनि देव गरज कर बोले कि यहाँ कि कोई भी चीज कही नहीं जायेगी. और उन्होंने प्रतिमा छिनना चाहा. इसी झगड़े में वह प्रतिमी गिर कर टूट गयी. अब हनुमान जी आग बबूला होकर शनिदेव को अपनी पूंछ में लपेट कर पटकना शुरू किया. इतना पटके इतना पटके कि शनिदेव मूर्छित होने लगे. फिर शनिदेव हनुमान जी को रोक कर बोले कि हे हनुमान! मेरी आप से कोई दुश्मनी नहीं है. आप जिस क़ी पूजा करते है. वह मेरा ही वंशज है. मुझे अपने कुल के पूजा और सम्मान प्रदर्शन से भला क्यों विरोध हो सकता है? यह मेरी एक तरह से आप के धैर्य एवं भक्ति क़ी परिक्षा थी. मै आज बहुत ही प्रसन्न हूँ. जो चाहो वर मांग लो. हनुमान जी बोले कि हे शनि देव! यदि आप मुझ पर प्रसन्न है तो आज के बाद किसी भी प्राणी को किसी तरह क़ी पूजा पाठ में विघ्न न उपस्थित करें. शनिदेव बोले कि ऐसा ही हो. फिर उन्होंने कहा कि इसके अलावा मै एक और वरदान देना चाहता हूँ. जो तुम मांग नहीं सकते. या फिर तुम्हें इसकी आवश्यकता भी नहीं है. क्योकि तुम एक निःस्पृह भगवान भक्त हो. मै तुम्हे वरदान देता हूँ कि जो भी व्यक्ति तुम्हारी पूजा करेगा उसे मेरे अर्थात शनि क़ी कोई भी पीड़ा नहीं होगी. इधर झगड़े में हनुमान जी क़ी पूंछ से बहुत से बाल टूट कर बिखर गए थे. शनि देव ने कहा कि ये सारे बाल जो मेरे शरीर के काले रंग से रगड़ कर नीले पड़ गए है वे सब शक्ति शाली पत्थर बन जायेगे जो शनि कृत पीड़ा के समूल निवारण में सफल होगे. इस पत्थर का नाम नीलकान्तमणि पडा. जिसे आज नीलम कहा जाता है. यह कथा बालव उपाख्यान में दिया गया है. शुद्ध नीलम के सात गुण होते है. जो नीलम एक सी छाया वाला हो, अपने आकार क़ी तुलना में २१० गुणा भारी हो, चिकना हो, स्वच्छ हो, आकार में पिंड स्वरुप हो, मृदु, दीप्त तथा तेज युक्त हो इन सात गुणों से युक्त नीलम ही शुद्ध होता है. 50 ग्राम गाय के दूध एवं 10 ग्राम फिटकारी के घोल में डालने पर यदि घोल का रंग नीला पड़ जाय वही नीलम अंगूठी में धारण करना चाहिए. यह चिकित्सकीय मतानुसार अर्श (पिल्स) नाशक, बाँझ पण दोष नाशक एवं अर्बुद या संक्रमित विद्रधि या भगंदर क़ी अचूक औषधि है. यह सदा ही दाहिने हाथ क़ी मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए. किन्तु जिस व्यक्ति के परिवार में कोई भी व्यक्ति दमा (Asthama) का रोगी हो उस परिवार में नीलम किसी को भी धारण नहीं करना चाहिए. बल्कि “गोकर्ण मणि” धारण करनी चाहिए. दाहिने हाथ क़ी बीच वाली बड़ी अंगुली के शिरो पर्व पर जितनी रेखाएं हो उतने ही रत्ती वजन का नीलम होना चाहिए. इसे सदा सोने क़ी ही अंगूठी में धारण करना चाहिए. अश्विनी, भरणी, ज्येष्ठा, अनुराधा, मघा एवं पुनर्वसु नक्षत्र में कभी भी नीलम न धारण करें. अश्विन, फाल्गुन एवं चैत्र महीने में न धारण करें. शनिवार के अलावा किसी भी दिन इसे धारण न करें. यदि कुंडली में शनि चन्द्रमा से बारहवें या दूसरे बैठा हो तो अवशया नीलम धारण करें. यदि राहू या केतु से ग्रस्त शनि हो तो सान्द्र नीलम होना चाहिए. मंगल के कारण शनि दोष युक्त हो तो तनु नीलम धारण करें. सूर्य के कारण शनि दोष युक्त हो तो पालित नीलम धारण करें. यदि कुंडली में शनि के कारण कोई शुभ भाव दूषित हो रहा हो तो नाभ नीलम धारण करें. यही शास्त्र सम्मत है.

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