Tuesday 29 October 2013

रावण सहिंता के किस्मत चमकाने वाले दुर्लभ अति दुर्लभ तांत्रिक उपाय .....................

नागेश्वर तंत्रः

नागेश्वर को प्रचलित भाषा में ‘नागकेसर’ कहते हैं। काली मिर्च के समान गोल, गेरु के रंग का यह गोल फूल घुण्डीनुमा होता है। पंसारियों की दूकान से आसानी से प्राप्त हो जाने वाली नागकेसर शीतलचीनी (कबाबचीनी) के आकार से मिलता-जुलता फूल होता है। यही यहाँ पर प्रयोजनीय माना गया है।
१॰ किसी भी पूर्णिमा के दिन बुध की होरा में गोरोचन तथा नागकेसर खरीद कर ले आइए। बुध की होरा काल में ही कहीं से अशोक के वृक्ष का एक अखण्डित पत्ता तोड़कर लाइए। गोरोचन तथा नागकेसर को दही में घोलकर पत्ते पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाएँ। जैसी भी श्रद्धाभाव से पत्ते पर बने स्वस्तिक की पूजा हो सके, करें। एक माह तक देवी-देवताओं को धूपबत्ती दिखलाने के साथ-साथ यह पत्ते को भी दिखाएँ। आगामी पूर्णिमा को बुध की होरा में यह प्रयोग पुनः दोहराएँ। अपने प्रयोग के लिये प्रत्येक पुर्णिमा को एक नया पत्ता तोड़कर लाना आवश्यक है। गोरोचन तथा नागकेसर एक बार ही बाजार से लेकर रख सकते हैं। पुराने पत्ते को प्रयोग के बाद कहीं भी घर से बाहर पवित्र स्थान में छोड़ दें।
२॰ किसी शुभ-मुहूर्त्त में नागकेसर लाकर घर में पवित्र स्थान पर रखलें। सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करें और प्रतिमा पर चन्दन-पुष्प के साथ नागकेसर भी अर्पित करें। पूजनोपरान्त किसी मिठाई का नैवेद्य शिवजी को अर्पण करने के बाद यथासम्भव मन्त्र का भी जाप करें ‘ॐ नमः शिवाय’। उपवास भी करें। इस प्रकार २१ सोमवारों तक नियमित साधना करें। वैसे नागकेसर तो शिव-प्रतिमा पर नित्य ही अर्पित करें, किन्तु सोमवार को उपवास रखते हुए विशेष रुप से साधना करें। अन्तिम अर्थात् २१वें सोमवार को पूजा के पश्चात् किसी सुहागिनी-सपुत्रा-ब्राह्मणी को निमन्त्रण देकर बुलाऐं और उसे भोजन, वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर आदर-पूर्वक विदा करें।
इक्कीस सोमवारों तक नागकेसर-तन्त्र द्वारा की गई यह शिवजी की पूजा साधक को दरिद्रता के पाश से मुक्त करके धन-सम्पन्न बना देती है।
३॰ पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल पोटली बना लें। इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर आलमारी, तिजोरी, भण्डार में कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है। इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।

४॰ कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करके देखें-
किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रुई धुनने वाले से थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।

५॰ जिस किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें। कहीं से नागकेसर के फूल प्राप्त कर, किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पाँच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही से धोकर पवित्र कर सकते हो। तो यथाशक्ति करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरन्तर करते रहें। इस पूजा में एक दिन का भी नागा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर आपकी पूजा खण्डित हो जायेगी। आपको फिर किसी पूर्णिमा के दिन पड़नेवाले सोमवार को प्रारम्भ करने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इस एक माह के लगभग जैसी भी श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना बन पड़े, करें। भगवान को चढ़ाए प्रसाद के ग्रहण करने के उपरान्त ही कुछ खाएँ। अन्तिम दिन चढ़ाए गये फूल तथा बिल्वपत्रों में से एक अपने साथ श्रद्धाभाव से घर ले आएँ। इन्हें घर, दुकान, फैक्ट्री कहीं भी पैसे रखने के स्थान में रख दें। धन-सम्पदा अर्जित कराने में नागकेसर के पुष्प चमत्कारी प्रभाव दिखलाते हैं।

मार्जारी तंत्र :

मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली सिंह परिवार का जीव है। केवल आकार का अंतर इसे सिंह से पृथक करता है, अन्यथा यह सर्वांग में, सिंह का लघु संस्करण ही है। मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली की दो श्रेणियाँ होती हैं- पालतू और जंगली। जंगली को वन बिलाव कहते हैं। यह आकार में बड़ा होता है, जबकि घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ छोटी होती हैं। वन बिलाव को पालतू नहीं बनाया जा सकता, किन्तु घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ पालतू हो जाती हैं। अधिकाशतः यह काले रंग की होती हैं, किन्तु सफेद, चितकबरी और लाल (नारंगी) रंग की बिल्लियाँ भी देखी जाती हैं।
घरों में घूमने वाली बिल्ली (मादा) भी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कराने में सहायक होती है, किन्तु यह तंत्र प्रयोग दुर्लभ और अज्ञात होने के कारण सर्वसाधारण के लिए लाभकारी नहीं हो पाता। वैसे यदि कोई व्यक्ति इस मार्जारी यंत्र का प्रयोग करे तो निश्चित रूप से वह लाभान्वित हो सकता है।
गाय, भैंस, बकरी की तरह लगभग सभी चौपाए मादा पशुओं के पेट से प्रसव के पश्चात्‌ एक झिल्ली जैसी वस्तु निकलती है। वस्तुतः इसी झिल्ली में गर्भस्थ बच्चा रहता है। बच्चे के जन्म के समय वह भी बच्चे के साथ बाहर आ जाती है। यह पॉलिथीन की थैली की तरह पारदर्शी लिजलिजी, रक्त और पानी के मिश्रण से तर होती है। सामान्यतः यह नाल या आँवल कहलाती हैं।
इस नाल को तांत्रिक साधना में बहुत महत्व प्राप्त है। स्त्री की नाल का उपयोग वन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्रियों के लिए परम हितकर माना गया है। वैसे अन्य पशुओं की नाल के भी विविध उपयोग होते हैं। यहाँ केवल मार्जारी (बिल्ली) की नाल का ही तांत्रिक प्रयोग लिखा जा रहा है, जिसे सुलभ हो, इसका प्रयोग करके लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकता है।
जब पालतू बिल्ली का प्रसव काल निकट हो, उसके लिए रहने और खाने की ऐसी व्यवस्था करें कि वह आपके कमरे में ही रहे। यह कुछ कठिन कार्य नहीं है, प्रेमपूर्वक पाली गई बिल्लियाँ तो कुर्सी, बिस्तर और गोद तक में बराबर मालिक के पास बैठी रहती हैं। उस पर बराबर निगाह रखें। जिस समय वह बच्चों को जन्म दे रही हो, सावधानी से उसकी रखवाली करें। बच्चों के जन्म के तुरंत बाद ही उसके पेट से नाल (झिल्ली) निकलती है और स्वभावतः तुरंत ही बिल्ली उसे खा जाती है। बहुत कम लोग ही उसे प्राप्त कर पाते हैं।
अतः उपाय यह है कि जैसे ही बिल्ली के पेट से नाल बाहर आए , उस पर कपड़ा ढँक दें। ढँक जाने पर बिल्ली उसे तुरंत खा नहीं सकेगी। चूँकि प्रसव पीड़ा के कारण वह कुछ शिथिल भी रहती है, इसलिए तेजी से झपट नहीं सकती। जैसे भी हो, प्रसव के बाद उसकी नाल उठा लेनी चाहिए। फिर उसे धूप में सुखाकर प्रयोजनीय रूप दिया जाता है।
धूप में सुखाते समय भी उसकी रखवाली में सतर्कता आवश्यक है। अन्यथा कौआ, चील, कुत्ता आदि कोई भी उसे उठाकर ले जा सकता है। तेज धूप में दो-तीन दिनों तक रखने से वह चमड़े की तरह सूख जाएगी। सूख जाने पर उसके चौकोर टुकड़े (दो या तीन वर्ग इंच के या जैसे भी सुविधा हो) कर लें और उन पर हल्दी लगाकर रख दें। हल्दी का चूर्ण अथवा लेप कुछ भी लगाया जा सकता है। इस प्रकार हल्दी लगाया हुआ बिल्ली की नाल का टुकड़ा लक्ष्मी यंत्र का अचूक घटक होता है।
तंत्र साधना के लिए किसी शुभ मुहूर्त में स्नान-पूजा करके शुद्ध स्थान पर बैठ जाएँ और हल्दी लगा हुआ नाल का सीधा टुकड़ा बाएँ हाथ में लेकर मुट्ठी बंद कर लें और लक्ष्मी, रुपया, सोना, चाँदी अथवा किसी आभूषण का ध्यान करते हुए 54 बार यह मंत्र पढ़ें- ‘मर्जबान उल किस्ता’।
इसके पश्चात्‌ उसे माथे से लगाकर अपने संदूक, पिटारी, बैग या जहाँ भी रुपए-पैसे या जेवर हों, रख दें। कुछ ही समय बाद आश्चर्यजनक रूप से श्री-सम्पत्ति की वृद्धि होने लगती है। इस नाल यंत्र का प्रभाव विशेष रूप से धातु लाभ (सोना-चाँदी की प्राप्ति) कराता है।

दूर्वा तंत्र :

दूर्वा अर्थात्‌ दूब एक विशेष प्रकार की घास है। आयुर्वेद , तंत्र और अध्यात्म में इसकी बड़ी महिमा बताई गई है। देव पूजा में भी इसका प्रयोग अनिवार्य रूप से होता है। गणेशजी को यह बहुत प्रिय है। साधक किसी दिन शुभ मुहूर्त में गणेशजी की पूजा प्रारंभ करे और प्रतिदिन चंदन, पुष्प आदि के साथ प्रतिमा पर 108 दूर्वादल (दूब के टुकड़े) अर्पित करे। धूप-दीप के बाद गुड़ और गिरि का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। इस प्रकार प्रतिदिन दूर्वार्पण करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त हो सकती है। ऐसा साधक जब कभी द्रव्योपार्जन के कार्य से कहीं जा रहा हो तो उसे चाहिए कि गणेश प्रतिमा पर अर्पित दूर्वादलों में से 5-7 दल प्रसाद स्वरूप लेकर जेब में रख ले। यह दूर्वा तंत्र कार्यसिद्धि की अद्‍भुत कुंजी है।

अश्व (वाहन) नाल तंत्र :

नाखून और तलवे की रक्षा के लिए लोग प्रायः घोड़े के पैर में लोहे की नाल जड़वा देते हैं, क्योंकि उन्हें प्रतिदिन पक्की सड़कों पर दौड़ना पड़ता है। यह नाल भी बहुत प्रभावी होती है। दारिद्र्य निवारण के लिए इसका प्रयोग अनेक प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है।
घोड़े की नाल तभी प्रयोजनीय होती है, जब वह अपने आप घोड़े के पैर से उखड़कर गिरी हो और शनिवार के दिन किसी को प्राप्त हो। अन्य दिनों में मिली नाल प्रभावहीन मानी जाती है। शनिवार को अपने आप, राह चलते कहीं ऐसी नाल दिख जाए, भले ही वह घोड़े के पैर से कभी भी गिरी हो उसे प्रणाम करके ‘ॐ श्री शनिदेवाय नमः’ का उच्चारण करते हुए उठा लेना चाहिए।
शनिवार को इस प्रकार प्राप्त नाल लाकर घर में न रखें, उसे बाहर ही कहीं सुरक्षित छिपा दें। दूसरे दिन रविवार को उसे लाकर सुनार के पास जाएँ और उसमें से एक टुकड़ा कटवाकर उसमें थोड़ा सा तांबा मिलवा दें। ऐसी मिश्रित धातु (लौह-ताम्र) की अंगूठी बनवाएँ और उस पर नगीने के स्थान पर ‘शिवमस्तु’ अंकित करा लें। इसके पश्चात्‌ उसे घर लाकर देव प्रतिमा की भाँति पूजें और पूजा की अलमारी में आसन पर प्रतिष्ठित कर दें। आसन का वस्त्र नीला होना चाहिए।
एक सप्ताह बाद अगले शनिवार को शनिदेव का व्रत रखें। सन्ध्या समय पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करें और तेल का दीपक जलाकर, शनि मंत्र ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ का जाप करें। एक माला जाप पश्चात्‌ पुनः अंगूठी को उठाएँ और 7 बार यही मंत्र पढ़ते हुए पीपल की जड़ से स्पर्श कराकर उसे पहन लें। यह अंगूठी बीच की या बगल की (मध्यमा अथवा अनामिका) उँगली में पहननी चाहिए। उस दिन केवल एक बार संध्या को पूजनोपरांत भोजन करें और संभव हो तो प्रति शनिवार को व्रत रखकर पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करते रहें। कम से कम सात शनिवारों तक ऐसा कर लिया जाए तो विशेष लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति को यथासंभव नीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए और कुछ न हो सके तो नीला रूमाल य अंगोछा ही पास में रखा जा सकता है।
इस अश्व नाल से बनी मुद्रिका को साक्षात्‌ शनिदेव की कृपा के रूप में समझना चाहिए। इसके धारक को बहुत थोड़े समय में ही धन-धान्य की सम्पन्नता प्राप्त हो जाती है। दरिद्रता का निवारण करके घर में वैभव-सम्पत्ति का संग्रह करने में यह अंगूठी चमत्कारिक प्रभाव दिखलाती है।

" दीपावली " के सिद्ध टोटके

आज चर्चा . . . " दीपावली " पर करने वाले कुछ उपायों की . . . , .
 = " दीपावली " के दिन " अपामार्ग " की जड़ लाये . . और पूजन के पश्चात अपनी दाहिनी भुजा में बाँध ले . . देखिये . . आपकी समस्याए . . .कैसे हल होने लगती है . . . .

 = " दीपावली " के दिन संध्याकाल में पीपल के पेड़ के नीचे साबुत उड़द के दाने और उस पर थोड़ा दही और सिंदूर डालकर चढ़ावे . . . तेल का दीपक जलावे . . .देखिये . . .आपको काफी धन लाभ होगा . . . .

= " दीपावली " के दिन " पांच अभिमंत्रित कोडियों पर हल्दी का तिलक लगाकर " अपने ऊपर से आठ बार उसारकर किसी भिखारी को कुछ पैसो के साथ दान कर दे . . .आपको नौकरी मिलने की समस्या का अंत तुरंत हो जाएगा . . .

= " दीपावली " के दिन प्रातः काल पीपल पेड़ में गुड मिश्रित जल चढ़ावे . . .और दीपक जलावे . . .दीपक में दो लौंग डालना मत भूलियेगा . . . देखिये . . आपकी आर्थिक समस्याओं का अंत . . तुरंत कैसे होता है . . . . .

 = " दीपावली " के दिन जलकुम्भी लाकर पीले कपडे में बांधकर रसोई घर में रख दे . . देखिये . . आपके घर में खाने - पिने की चीजों में कभी कमी नहीं होंगी . . .

= " दीपावली " के दिन अपनी तिजोरी में थोड़े काली गुंजा के दाने ज़रूर डाले . . देखिये . . आपकी तिजोरी में कैसे धन बढ़ता है . . . .

 = " दीपावली " के दिन से प्रतिदिन " श्री सूक्त " का पाठ नियमित करना शुरू करे . . " माँ लक्ष्मी " आपके घर में स्थायी रहना शुरू कर देंगी . . .
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दिवाली व धनतेरस पर समृद्धि प्राप्ति के उपाय

दीपावली और धनतेरस के त्योहार का विशेष महत्व है। इन दोनों त्योहारों पर धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन समृद्धि प्राप्ति के लिए किया गया कोई भी उपाय ज्यादा फलदायी होता है। इस बार धनत्रयोदशी और दीपावली पर समृद्धि प्राप्ति के लिए इन उपायों को भी करके देखें.

 हथेलियों के दर्शन हैं शुभ :
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 प्रातःकाल उठकर सर्वप्रथम अपनी हथेलियों के दर्शन की आदत डालें। यह एक शुभ क्रिया है। इसे करने से आपको शुभ ऊर्जा प्राप्त होगी।

 चमगादड़ वाले पेड़ की टहनी रखना शुभ :
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 धनतेरस को ऐसे पेड़ की टहनी तोड़ कर लाएं, जिस पर चमगादड़ रहते हों। इसे अपने बैठने की जगह के पास रखें, लाभ होगा।

 गाय का भोजन जरूर निकालें :
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 धनतेरस और दीपावली के दिन रसोई में जो भी भोजन बना हो, सर्वप्रथम उसमें से गाय के लिए कुछ भाग अलग कर दें। यदि नित्य यह करें तो सर्वश्रेष्ठ है।

 मंदिर में लगाएं केले के पौधे :
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 दीपावली के दिन किसी भी मंदिर में केले के दो पौधे लगाएं। इन पौधों की समय-समय पर देखभाल करते रहें। इनके बगल में कोई सुगंधित फूल का पौधा लगाएं। केले का पौधा जैसे-जैसे बड़ा होगा, आपके आर्थिक लाभ की राह प्रशस्त होगी।

 दक्षिणावर्ती शंख में लक्ष्मी मंत्र का जाप :
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 दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के बाद दक्षिणावर्ती शंख में लक्ष्मी मंत्र का जाप करते हुए चावल के अक्षत दाने व लाल गुलाब की पंखुडियां डालें। ऐसा करने से समृद्धि का योग बनेगा।

 लक्ष्मी को अर्पित करें लौंग :
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 दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के बाद लक्ष्मी या किसी भी देवी को लौंग अर्पित करें। यह प्रक्रिया दीपावली के बाद भी चलने दें। आर्थिक लाभ होता रहेगा।

 श्वेत वस्तुओं का करें दान :
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 धनत्रयोदशी पर श्वेत पदार्थों जैसे चावल, कपड़े, आटा आदि का दान करने से आर्थिक लाभ का योग बनता है।

 सूर्यास्त के बाद न करें झाड़ू-पोंछा :
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 शाम को सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू-पोंछा न करें। यह समृद्धि के लिए शुभ नहीं है।

 गरीब की आर्थिक सहायता करें :
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 दीपावली पर किसी गरीब, दुखी, असहाय रोगी को आर्थिक सहायता दें। ऐसा करने से आपकी उन्नती होगी।

 किन्नर को धन करें दान :
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 दिवाली के दिन किसी हिजड़े को धन दान करें और उससे उसमें से कुछ पैसे वापस अनुरोध करके प्राप्त कर लें। उन पैसे को श्वेत वस्त्र में लपेट कर कैश बॉक्स में रख लें, लाभ होगा।

दीपावली की रात कहाँ - कहाँ दीपक लगाने से होगी महालक्ष्मी प्रसन्न .................................

शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि दीपावली रात देवी महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। अत: इस रात को देवी को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न उपाय बताए गए हैं।
 यदि संभव हो तो रात के समय किसी श्मशान में दीपक जरूर लगाएं। पैसा प्राप्त करने के लिए यह एक चमत्कारी टोटका है।

धन प्राप्ति की कामना करने वाले व्यक्ति को दीपावली की रात मुख्य दरवाजे की चौखट के दोनों ओर दीपक अवश्य लगाना चाहिए।

घर के आंगन में भी दीपक लगाना चाहिए। ध्यान रखें यह दीपक बुझना नहीं चाहिए। कभी भी घरमें क्लेश और रोग नहीं होंगे |

हमारे घर के आसपास वाले चौराहे पर रात के समय दीपक लगाना चाहिए। ऐसा करने पर पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।

घर के पूजन स्थल में दीपक लगाएं, जो पूरी रात बुझना नहीं चाहिए। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

किसी बिल्व पत्र के पेड़ के नीचे दीपावली की शाम दीपक लगाएं। बिल्व पत्र भगवान शिव का प्रिय वृक्ष है। अत: यहां दीपक लगाने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है।

पीपल के पेड़ के नीचे दीपावली की रात एक दीपक अवश्य लगाकर आएं। ऐसा करने पर आपकी धन से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाएंगी।

धनतेरस पर कैसे मनायें कुबेर को ?

प्रयोग-1 कुबेर साधना

 अ ऊँ नमो कुबेराय वैश्रवणाय अक्षय।

 समृद्धि देहि कनक धारायै नम:।।

 प्रयोग विधि- दीपावली की रात्रि से पूर्व त्रयोदशी तिथि से सात हजार रोज मंत्र जाप दीपावली तक (21 हजार जाप स्वर्ण मिश्रित रुद्राक्ष माला से धूप दीप अगरबत्ती जला कर श्रद्धा भाव से करें।

 सिद्ध कुबेर यंत्र को थाली में चावल के ऊपर प्रतिष्ठित कर रखें। रोली, केसर, फल-फूल से पूजा करें। चावल सफेद पोटली में बांधकर तिजोरी में रखें यंत्र भी तिजोरी में रखें।

 लाभ- गोल्ड रत्न ज्वैलरी के काम करने वालों के लिये यह साधना वरदान है। गया धन वापिस आता है। भूमि विवाद दूर होते है। अखण्ड धन लक्ष्मी, राज्य कृपा प्रमोशन की प्राप्ति होती है।

(यदि आप जप करने में सक्षम नहीं है तो हमसे संपर्क करे  | हम आपके नाम से सिद्ध किया हुआ प्राण प्रतिष्ठित कुबेर यन्त्र आपको उपलब्ध करा सकते है )

 प्रयोग-2    कुबेर पूजन नवनिधि दाता कुबेर

 ऊँ श्रीं ऊँ ह्रीं श्रीं ह्रीं

 क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:।।

 मनुष्यों, यक्षों गंधर्वों तथा राक्षसों के लिये तथा देवों के लिये भी कुबेर पूजनीय है। कुबेर के पिता विश्रवा तथा माता इडविडा हैं। इनकी सौतेली माता का नाम कैकसी था।

 कुबेर की पत्नी का नाम श्रद्धा तथा दोनों पुत्रों के नाम ‘नल कुबेर’ व ‘नील ग्रीव’ है। कैलाश पर्वत पर स्थित अलकापुरी इनकी राजधानी है। परंतु सर्वप्रथम इनका मूल निवास त्रिकूट पर्वत स्थित विश्वकर्मा द्वारा निर्मित स्वर्ण नगरी लंका थी।

 जैसे देवताओं के राजा इंद्र हैं।– गुरु बृहस्पति है। इसी प्रकार निखिल ब्राह्मांडों के धनाधिपति धनाध्यक्ष कुबेर है। महाभारत में कहा गया है कि महाराज कुबेर के साथ भार्गव-शुक्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र भी दिखाई पड़ते हैं। इन तीनों की कृपा के बिना धन-वैभव की प्राप्ति नहीं होती है।

 प्रयोग-3,      ब्राह्मांडों के धनाध्यक्ष अपार धन प्रदाता श्रीकुबेर मंत्र साधना


 यदि कोई व्यक्ति पिछली सात पीढ़ियों से धनाभाव दरिद्रता व अपयश से पीड़ित है तो निम्न मंत्र प्रयोग से जन्मों की दरिद्रता दूर होती है। घर में अपार धन, ऐश्वर्य, संपदा, भवन, आभूषण, रत्न, वाहन, भूखंड व प्रतिष्ठा की प्राप्ति निश्चित होती है।

 भगवान शंकर की पूजा करने के बाद रावण को शूल पाणि शिव ने इस मंत्र का ज्ञान कराया था। इस मंत्र की 11 माला जाप 11 दिन तक नियम से करें। जाप के बाद हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण भोजन आवश्यक होता है।

 धूप-दीप जलाकर, फल-फूल व मिष्ठान से भोग लगाकर, श्री कुबेर यंत्र पर चंदन (लाल) कुंकुम का तिलक लगाकर निम्न मंत्र जाप रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए। एक माला ऊँ गं गमपत्यै नम: का जाप करें।

 कुबेर मंत्र

 विनियोग

 ऊँ अस्य श्री कुबेर मंत्रस्य विश्रवा ऋषि:, बृहती

 छन्द: शिवसखा धनाध्यक्ष देवता, अखंड धन

 लाभ प्राप्यर्थे जपे विनियोग:

 ध्यान

 मनुजवाह्म विमानवर स्थितं

 गरुडरत्न निभं निधिनायकम्।

 शिवसखं मुकुटादि विभूषितं

 वरगदे दधतं भज तुन्दिलनम्।।

 प्रार्थना मंत्र

 देवि प्रियश्च नाथस्य कोषाध्यक्ष महामते।

 ध्यायेSहं प्रभुं श्रेष्ठं कुबेर धनदायकम्।।

 क्षमस्व मम दौरात्म्यं कृपासिंधो सुर:प्रिय:।

 धनदोSसि धनंदेहि अपराधांश्च नाशय।।

 महाराज कुबेर त्वं भूयो भूयो नमाम्यहम्।

 दीनोपि चदया यस्त जायतुं वै महाधन:।।

 मंत्र

 ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय

 धनधान्य अधिपतये धनधान्य

 समृद्धिं में देहि दापय स्वाहा।।

 विषेश-

 यह मंत्र शिवजी के मंदिर में या बेलपत्र के पेड़ के नीचे बैठकर जपने से सिद्धि शीघ्र मिलती है। एक लाख जप करने से इसका पुरश्चरण होता है। दशांश हवन तिल व देसी घी से होता है।

Sunday 27 October 2013

रावण सहिंता के कुछ चमत्कारी एवं तुरंत प्रभावशाली उपाय

१. व्यवसाय ठीक तरह से न चलने पर .................................

यदि आपको यह शंका हो कि किसी व्यक्ति ने आपके व्यवसाय को बाँध दिया है या उसकी नजर आपकी दुकान को लग गई है, तो उस व्यक्ति का नाम काली स्याही से भोज-पत्र पर लिखकर पीपल वृक्ष के पास भूमि खोदकर दबा देना चाहिए तथा इस प्रयोग को करते समय १॰ कच्चा सूत लेकर उसे शुद्ध केसर में रंगकर अपनी दुकान पर बाँध देना चाहिए ।
२॰ हुदहुद पक्षी की कलंगी रविवार के दिन प्रातःकाल दुकान पर लाकर रखने से व्यवसाय को लगी नजर समाप्त होती है और व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है ।
३॰ कभी अचानक ही व्यवसाय में स्थिरता आ गई हो, तो निम्नलिखित मंत्र का प्रतिदिन ग्यारह माला जप करने से व्यवसाय में अपेक्षा के अनुरुप वृद्धि होती है । मंत्रः- “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवती माहेश्वरी अन्नपूर्णा स्वाहा ।”
४॰ यदि कोई शत्रु आपसी जलन या द्वेष, व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के कारण आप पर तंत्र-मंत्र का कोई प्रयोग करके आपके व्यवसाय में बाधा डाल रहा हो, तो ईसे में नीचे लिखे सरल शाबर मंत्र का प्रयोग करके आप अपनी तथा अपने व्यवसाय की रक्षा कर सकते हैं । सर्वप्रथम इस मंत्र की दस माला जपकर हवन करें । मंत्र सिद्ध हो जाने पर रविवार या मंगलवार की रात इसका प्रयोग करें ।
मंत्रः- “उलटत वेद पलटत काया, जाओ बच्चा तुम्हें गुरु ने बुलाया, सत नाम आदेश गुरु का ।”
रविवार या मंगलवार की रात को 11 बजे के बाद घर से निकलकर चौराहे की ओर जाएँ, अपने साथ थोड़ी-सी शराब लेते जाएँ । मार्ग में सात कंकड़ उठाते जाएँ । चौराहे पर पहुँचकर एक कंकड़ पूर्व दिशा की ओर फेंकते हुए उपर्युक्त मंत्र पढ़ें, फिर एक दक्षिण, फिर क्रमशः पश्चिम, उत्तर, ऊपर, नीचे तथा सातवीं कंकड़ चौराहे के बीच रखकर उस शराब चढ़ा दें । यह सब करते समय निरन्तर उक्त मन्त्र का उच्चारण करते रहें । फिर पीछे पलट कर सीधे बिना किसी से बोले और बिना पीछे मुड़कर देखे अपने घर वापस आ जाएँ ।
घर पर पहले से द्वार के बाहर पानी रखे रहें । उसी पानी से हाथ-पैर धोकर कुछ जल अपने ऊपर छिड़क कर, तब अन्दर जाएँ । एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि आते-जाते समय आपके घर का कोई सदस्य आपके सामने न पड़े और चौराहे से लौटते समय यदि आपको कोई बुलाए या कोई आवाज सुनाई दे, तब भी मुड़कर न देखें ।
५॰ यदि आपके लाख प्रयत्नों के उपरान्त भी आपके सामान की बिक्री निरन्तर घटती जा रही हो, तो बिक्री में वृद्धि हेतु किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के गुरुवार के दिन से निम्नलिखित क्रिया प्रारम्भ करनी चाहिए -
व्यापार स्थल अथवा दुकान के मुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल से धोकर स्वच्छ कर लें । इसके उपरान्त हल्दी से स्वस्तिक बनाकर उस पर चने की दाल और गुड़ थोड़ी मात्रा में रख दें । इसके बाद आप उस स्वस्तिक को बार-बार नहीं देखें । इस प्रकार प्रत्येक गुरुवार को यह क्रिया सम्पन्न करने से बिक्री में अवश्य ही वृद्धि होती है । इस प्रक्रिया को कम-से-कम 11 गुरुवार तक अवश्य करें ।
 नोट :- सारे प्रयोग किसी सिद्ध पुरुष या गुरु की देखरेख में ही संपन्न करे | अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि के साथ साथ कुछ गलत भी घटित हो सकता है

रावण सहिंता कहती है कि बंधी दुकान को कैसे खोले

२. दूकान बंधी होने पर  .................................

कभी-कभी देखने में आता है कि खूब चलती हुई दूकान भी एकदम से ठप्प हो जाती है । जहाँ पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ती थी, वहाँ सन्नाटा पसरने लगता है । यदि किसी चलती हुई दुकान को कोई तांत्रिक बाँध दे, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, अतः इससे बचने के लिए निम्नलिखित प्रयोग करने चाहिए -
१॰ दुकान में लोबान की धूप लगानी चाहिए ।
२॰ शनिवार के दिन दुकान के मुख्य द्वार पर बेदाग नींबू एवं सात हरी मिर्चें लटकानी चाहिए ।
३॰ नागदमन के पौधे की जड़ लाकर इसे दुकान के बाहर लगा देना चाहिए । इससे बँधी हुई दुकान खुल जाती है ।
४॰ दुकान के गल्ले में शुभ-मुहूर्त में श्री-फल लाल वस्त्र में लपेटकर रख देना चाहिए ।
५॰ प्रतिदिन संध्या के समय दुकान में माता लक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए ।
६॰ दुकान अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान की दीवार पर शूकर-दंत इस प्रकार लगाना चाहिए कि वह दिखाई देता रहे ।
७॰ व्यापारिक प्रतिष्ठान तथा दुकान को नजर से बचाने के लिए काले-घोड़े की नाल को मुख्य द्वार की चौखट के ऊपर ठोकना चाहिए ।
८॰ दुकान में मोरपंख की झाडू लेकर निम्नलिखित मंत्र के द्वारा सभी दिशाओं में झाड़ू को घुमाकर वस्तुओं को साफ करना चाहिए । मंत्रः- “ॐ ह्रीं ह्रीं क्रीं”
९॰ शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के सम्मुख मोगरे अथवा चमेली के पुष्प अर्पित करने चाहिए ।
१०॰ यदि आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान में चूहे आदि जानवरों के बिल हों, तो उन्हें बंद करवाकर बुधवार के दिन गणपति को प्रसाद चढ़ाना चाहिए ।
११॰ सोमवार के दिन अशोक वृक्ष के अखंडित पत्ते लाकर स्वच्छ जल से धोकर दुकान अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर टांगना चाहिए । सूती धागे को पीसी हल्दी में रंगकर उसमें अशोक के पत्तों को बाँधकर लटकाना चाहिए ।
नोट :- सारे प्रयोग किसी सिद्ध पुरुष या गुरु की देखरेख में ही संपन्न करे | अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि के साथ साथ कुछ गलत भी घटित हो सकता है

Saturday 12 October 2013

परम शक्तिशाली सिद्ध गोमती चक्र (दीपावली प्रयोग )

१॰ यदि इस  सिद्ध गोमती चक्र को लाल सिन्दूर की डिब्बी में घर में रखे, तो घर में सुख-शान्ति बनी रहती है ।
२॰ यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो, तो दो  सिद्ध गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर से घुमाकर आग में डाल दे, तो घर से भूत-प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है ।

३॰ यदि घर में बिमारी हो या किसी का रोग शान्त नहीं हो रहा हो तो एक  सिद्ध गोमती चक्र लेकर उसे चाँदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पाये पर बाँध दें, तो उसी दिन से रोगी का रोग समाप्त होने लगता है ।

४॰ व्यापार वृद्धि के लिए दो  सिद्ध गोमती चक्र लेकर उसे बाँधकर ऊपर चौखट पर लटका दें, और ग्राहक उसके नीचे से निकले, तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है ।

५॰ प्रमोशन नहीं हो रहा हो, तो एक  सिद्ध गोमती चक्र लेकर शिव मन्दिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें, और सच्चे मन से प्रार्थना करें । निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जायेंगे ।
६॰ पति-पत्नी में मतभेद हो तो तीन  सिद्ध गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में “हलूं बलजाद” कहकर फेंक दें, मतभेद समाप्त हो जायेगा ।
७॰ पुत्र प्राप्ति के लिए पाँच  सिद्ध गोमती चक्र लेकर किसी नदी या तालाब में “हिलि हिलि मिलि मिलि चिलि चिलि हुं ” पाँच बार बोलकर विसर्जित करें ।
८॰ यदि बार-बार गर्भ नष्ट हो रहा हो, तो दो  सिद्ध गोमती चक्र लाल कपड़े में बाँधकर कमर में बाँध दें ।
९॰ यदि शत्रु अधिक हो तथा परेशान कर रहे हो, तो तीन  सिद्ध गोमती चक्र लेकर उन पर शत्रु का नाम लिखकर जमीन में गाड़ दें ।
१०॰ कोर्ट-कचहरी में सफलता पाने के लिये, कचहरी जाते समय घर के बाहर  सिद्ध गोमती चक्र रखकर उस पर अपना दाहिना पैर रखकर जावें ।
११॰ भाग्योदय के लिए तीन  सिद्ध गोमती चक्र का चूर्ण बनाकर घर के बाहर छिड़क दें ।
१२॰ राज्य-सम्मान-प्राप्ति के लिये दो  सिद्ध गोमती चक्र किसी ब्राह्मण को दान में दें ।
१३॰ तांत्रिक प्रभाव की निवृत्ति के लिये बुधवार को चार  सिद्ध गोमती चक्र अपने सिर के ऊपर से उबार कर चारों दिशाओं में फेंक दें ।
१४॰ चाँदी में जड़वाकर बच्चे के गले में पहना देने से बच्चे को नजर नहीं लगती तथा बच्चा स्वस्थ बना रहता है ।
१५॰ दीपावली के दिन पाँच  सिद्ध गोमती चक्र पूजा-घर में स्थापित कर नित्य उनका पूजन करने से निरन्तर उन्नति होती रहती है ।
१६॰ रोग-शमन तथा स्वास्थ्य-प्राप्ति हेतु सात  सिद्ध गोमती चक्र अपने ऊपर से उतार कर किसी ब्राह्मण या फकीर को दें ।
१७॰ 11  सिद्ध गोमती चक्रों को लाल पोटली में बाँधकर तिजोरी में अथवा किसी सुरक्षित स्थान पर सख दें, तो व्यापार उन्नति करता जायेगा ।

(सिर्फ सिद्ध किये हुए गोमती चक्र ही प्रयोग में ले | बिना जाग्रत किये हुए गोमती चक्र अपना प्रभाव नहीं दिखाते | और दुस्परिनाम भी दे सकते है  | यदि आप को आवश्यकता है तो आप हमसे संपर्क कर सकते है | )

Your Vehicle & Colour - आपका वाहन और रंग

आपके वाहन का रंग और अंक यदि आपके मूलांक के अनुसार हो तो वह अघिक उपयुक्त रहेगा।
 वाहन के अंक [नंबर] तथा रंग के शुभत्व का निर्धारण अंक ज्योतिष के मूलांक के स्वामी तथा ज्योतिष शास्त्र में वर्णित उस मूलांक स्वामी के नैसर्गिक मित्र ग्रहों के स्वामित्व वाले अंकों के आधार पर किया जाना हितकर होता है। किसी व्यक्ति की जन्म तारीख ही उसका मूलांक होती है जैसे 19 तारीख को जन्मे व्यक्ति का मूलांक 1+9= 10 अर्थात् एक होगा। वाहन अंक जानने के लिए वाहन के रजिस्ट्रेशन नंबरों को जोड़कर इकाई में परिवर्तित करते हैं जैसे 5674 नंबर का अंक बनेगा- 5+6+7+4= 22= 2+2= 4। एक से नौ मूलांक तक के व्यक्तियों के लिए वाहन अंक तथा उसके रंग का शुभत्व इस प्रकार जानें-

 मूलांक-1: जिनका जन्म किसी भी मास की 1, 10, 19 अथवा 28 तारीख को हुआ हो, तो उनका मूलांक एक होगा। इनके लिए 1, 2, 3 व 9 अंक वाले वाहन शुभ रहेंगे इनके लिए सुनहला, सफेद, पीला, ताम्रवर्ण, हल्का भूरा तथा क्रीमिश रंग शुभ रहेंगे। काला तथा नीला रंग शुभ नहीं।
 मूलांक- 2: जिनका जन्म किसी भी मास की 2, 11, 20, 29 तारीख को हुआ हो उनके लिए 1, 2 तथा 5 अंक वाले वाहन शुभ रहेंगे। इन्हें सफेद, क्रीम, अंगूरी तथा हल्का हरा रंग शुभकारक है।
 मूलांक- 3: जिनका जन्म किसी भी मास की 3, 12, 21 व 30 तारीख हो हुआ है। उनके लिए 1, 2, 3 व 9 अंक वाले वाहन शुभ होते हैं। इनके लिए पीला, हल्का गुलाबी, क्रीमिश, सफेद रंग शुभ है।
 मूलांक- 4: किसी भी माह की 4, 13, 22 तथा 31 तारीख को जन्मे व्यक्तियों का मूलांक 4 होता होता है। इनके लिए 4, 5, 6, 7 व 8 अंक वाले वाहन शुभ श्रेयस्कर रहेंगे इनके लिए धूप-छांव, हरा, सफेद, खाकी, भूरा, नीला तथा काला रंग श्रेष्ठ रहेगा।
 मूलांक- 5: जिनका जन्म 5, 14 तथा 23 तारीख को हुआ है । इनके लिए अंक 1, 5 तथा 6 वाले वाहन शुभ हैं। हरा, सूआ पंखी, मूंगिया, ताम्रवर्ण, क्रीमिश तथा चमकीले रंग वाले वाहन शुभ रहेंगे।
 मूलांक- 6: जिनका जन्म किसी मास की 6, 15, 24 तारीख को हुआ हो उनका मूलांक 6 होगा । इनके लिए 5, 6 व 8 अंक वाले वाहन शुभ श्रेयस्कर रहेंगे। इनके लिए हल्का नीला, आसमानी, हल्का खाकी, भूरा तथा हल्का गुलाबी रंग श्रेष्ठ रहेगा।
 मूलांक- 7: जिनका जन्म 7, 16, 25 तारीख को हुआ हो उनका मूलांक स्वामी केतु है। इन्हें 4, 5, 6, 7 तथा 8 जोड़ वाले अंक के वाहन शुभ रहेंगे। इनके लिए शुभ रंग धूप-छांव, हरा, सफेद, नीला तथा काला है।
 मूलांक- 8: दिनांक 8, 17 तथा 26 को जन्मे व्यक्तियों के लिए 5, 6 तथा 8 अंक वाले वाहन शुभ श्रेयस्कर रहेंगे। इन्हें गहरे रंग नीले, काले तथा हरे, काकरोजी, स्लेटी आदि शुभ रंग श्रेयस्कर हैं।
 मूलांक- 9: किसी भी माह की तारीख 9, 18, 27 को जन्मे व्यक्तियों का मूलांक स्वामी मंगल होगा। इन्हें 1, 2 व 3 अंक वाले वाहन शुभ हैं। इनके लिए शुभ रंग गुलाबी, गहरा लाल, मैरून नारंगी, पीले या इनसे संबंधित दो रंगों से मिलाकर बने रंग शुभ रहेंगे।
 जिन व्यक्तियों के पास पहले से जिस किसी भी अंक या रंग का वाहन है तथा वे उनके लिए शुभ श्रेयस्कर है तो उन्हें उसी को शुभ अंक और रंग मानना चाहिए। उपयुक्त अंक और रंग पर वह विचार नहीं करें।
 मेष राशि- मेष राशि की महिलाएं लालिमायुक्त, सफेद, क्रीमी तथा मेहरून रंग की नेल पॉलिश प्रयोग में लाएं।
 वृष राशि- लाल, सफेद, गेहूंआ या गुलाबी रंग या इनसे मिश्रित रंगों की नेल पॉलिश लगाएं।
 मिथुन- आपके लिए हरी, फिरोजी, सुनहरा सफेद या सफेद रंग की नेल पॉलिश उपयुक्त रहेगी।
 कर्क- श्वेत व लाल या इनसे मिश्रित रंग अथवा लालिमायुक्त सफेद रंग की नेल पॉलिश का प्रयोग उपयोगी रहेगा।
 सिंह- गुलाबी, सफेद, गेरूआ, फिरोजी तथा लालिमायुक्त सफेद रंग उपयुक्त है।
 कन्या- आप हरे, फिरोजी व सफेद रंग की नेल पॉलिश लगाएं।
 तुला- जामुनी, सफेद, गुलाबी, नीली, ऑफ व्हाइट एवं आसमानी रंग की नेल पॉलिश अनुकूल रहेगी।
 वृश्चिक- सुनहरी सफेद, मेहरून, गेरूआ, लाल, चमकीली गुलाबी या इन रंगों से मिश्रित रंग की नेल पॉलिश लगाएं।
 धनु- पीला, सुनहरा, चमकदार सफेद, गुलाबी या लालिमायुक्त पीले रंग की पॉलिश लगाएं।
 मकर- सफेद, चमकीला सफेद, हल्का सुनहरी, मोरपंखी, बैंगनी तथा आसमानी रंग की नेल पॉलिश उपयुक्त है।
 कुंभ- जामुनी, नीला, बैंगनी, आसमानी तथा चमकीला सफेद रंग उत्तम रहेगा।
 मीन- पीला, सुनहरा, सफेद, बसंती रंगों का प्रयोग करें। सदा अनुकूल प्रभाव देंगे।
 ऊपर बताए गए रंग राशि स्वामी तथा उनके मित्र ग्रहों के रंगों के अनुकूल हैं।

छोटी बड़ी वाहन दुर्घटनाओं को टालने के प्रभावशाली उपाय

१. यह एक ऎसा सरल उपाय है जिसकेप्रयोग आप सुनिश्चित लाभ की अपेक्षा कर सकते हैं। इस प्रयोग के अन्तर्गत गुरूपुष्य नक्षत्र में शुभ मुहूर्त में निकाली गई अपामार्ग नामक पौधे की जड ले लें। इस पौधे को लटजीरा,आंधाझाडा इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता है। इस जड को एक फिटकरी के टुकडे एवं एक कोयले के टुकडे के साथ एक काले वस्त्र में बांधकर उससे वाहन के चारों ओर दाहिने घूमते हुये 7 चक्कर लगायें। यह एक प्रकार का उसारा करने के समान है। इसके पश्चात इस पोटली को वाहन मे कहीं रख दें। ऎसा करने से वाहन दुरात्माओं से रक्षित रहता है तथा उसकी दुर्घटनाओं से भी रक्षा होती है।

सिद्ध करें काली हल्दी, अपार दौलत मिलेगी

तंत्र शास्त्र में काली हल्दी का उपयोग अनेक क्रियाओं में किया जाता है लेकिन इसके पहले इसे सिद्ध करना पड़ता है। इसकी विधि इस प्रकार है-

- धन प्राप्ति के लिए काली हल्दी यानी हरिद्रा तंत्र की साधना शुक्ल या कृष्ण पक्ष की किसी भी अष्टमी से शुरु की जा सकती है। इसके लिए पूजा सूर्योदय के समय ही की जाती है।

- सुबह सूर्यादय से पहले उठकर स्नान कर पवित्र हो जाएं।

- स्वच्छ वस्त्र पहनकर सूर्योदय होते ही आसन पर बैठें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। ऐसा स्थान चुनें, जहां से सूर्यदर्शन में बाधा न आती हो।

- इसके बाद काली हल्दी की गाँठ का पूजन धूप-दीप से पूजा करें। उदय काल के समय सूर्यदेव को प्रणाम करें। आपके समक्ष रखी काली हल्दी की गाँठ को नमन कर भगवान सूर्यदेव के मंत्र 'ओम ह्रीं सूर्याय नम:' का 108 बार माला से जप करें।

- यह प्रयोग नियमित करें ।



- पूजा के साथ-साथ अष्टमी तिथि को यथासंभव उपवास रखें व ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

- हरिद्रा तंत्र की नियम-संयम से साधना व्रती को मनोवांछित और अनपेक्षित धन लाभ होता है। रुका धन प्राप्त हो जाता है। परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस तरह एक हरिद्रा यानि हल्दी घर की दरिद्रता को दूर कर देती है।