Sunday, 30 April 2017

मोती धारण करने से पहले यह अवश्य पढ़ें (मोती के लाभ और हानि )

शास्त्रीजी के अनुसार 

मोती कर्क लग्न का आजीवन रत्न है एवम भाग्येश रत्न पुखराज है। मोती रत्न चन्द्रमा की शांति एवम चन्द्रमा को बलवान बनाने के लिए धारण किया जाता है किसी व्यक्ति की कुंडली में चन्द्र बलिष्ठ एवम कमजोर हो सकता है। मान सागरीय के मतानुसार चन्द्रमा को रानी भी कहा गया है। बलिष्ठ चन्द्रमा से व्यकि को राज कृपा मिलती है , उसके राजकीय कार्यो में सफलता मिलती है , मन को हर्षित करता है, विभिन्न प्रकार की चिन्ताओ से मुक्त करता है | ज्योतिषाचार्य के अनुसार ज्योतिष् शास्त्र में चंद्रमा को ब्रह्मांड का मन कहा गया है. हमारे शरीर में भी चंद्रमा हमारे मन व मस्तिष्क का कारक है, विचारों की स्थिरता का प्रतीक है | मन ही मनुष्य का सबसे बड़ा दोस्त या दुश्मन है |माता लक्ष्मी के आशीर्वाद से भरपूर मोती रत्न पहनने से आप लक्ष्मी को अपने द्वार पर आमंत्रित करेंगे। अगर आप की कुंडली में चंद्रमा कमज़ोर है, तो उस को सबल बनाने में आप की मदद करेगा। इस के अलावा अनिद्रा व मधुमेह को नियंत्रण में लाने में भी यह मदद करता है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार मोती रत्न आप की याददाश्त को बल देता है। आप के मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है। इस के अलावा मोती यौन जीवन में शक्ति प्रदान करने के लिए भी जाना जाता है एवं आप के वैवाहिक जीवन को सुंदर बनाता है।
मोती चंद्रमा का रत्न है. कहा जाता है :- 
कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाती एक, गुण तीन
जैसी संगत बैठियें, तेसोई फल दीन || 
अर्थात स्वाती नक्षत्र के समय बरसात की एक बूंद घोघे के मुख में समाती है तब वह मोती बन जाता है. वही बूंद केले में जा कर कपूर और साँप के मूह में जा कर हाला हाल विष बनती है |
रसायनिक दृष्टि से इसमे , केल्षीयम, कार्बन और आक्सीज़न,यह तीन तत्व पाए जाते है. आयुर्वेद के अनुसार मोती में 90% चूना होता है, इसलिए कैल्शियम् की कमी के कारण जो रोग उत्पन्न होते है उनमें लाभ करता है. नेत्र रोग, स्मरण शक्ति को बढ़ाने के लिए, पाचन शक्ति को तेज़ करने के लिए व हृदय को बल देने के लिए मोती धारण करना चाहिए | ज्योतिषाचार्य के अनुसार सामान्यत: चंद्रमा क्षीण होने पर मोती पहनने की सलाह दी जाती है मगर हर लग्न के लिए यह सही नहीं है। ऐसे लग्न जिनमें चंद्रमा शुभ स्थानों (केंद्र या‍ त्रिकोण) का स्वामी होकर निर्बल हो,ऐसे में ही मोती पहनना लाभदायक होता है। अन्यथा मोती भयानक डिप्रेशन, निराशावाद और आत्महत्या तक का कारक बन सकता है।  
ज्योतिषाचार्य के अनुसार सामान्य तोर पर लोग मोती रत्न पहन लेते है , जब उनसे पूछा जाता है की यह रत्न आपने क्यों पहना तो 95 प्रतिशत लोगो का जबाब होता है की मुझे गुस्सा बहुत आता है , गुस्सा शांत रहे इसलिए पहना हैयह बिलकुल गलत है ! मोती रत्न चन्द्रमा ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है , और यह ग्रह आपकी जन्मकुंडली में शुभ भी हो सक्ता है और अशुभ भी ! यदि चंद्रमा शुभ ग्रहों के साथ शुभ ग्रहों की राशि में और शुभ भाव में बैठा होगा तो निश्चित ही मोती रत्न आपको फायदा पहुचाएगा ! इसके विपरीत अशुभ ग्रहों के साथ होने से शत्रु ग्रहों के साथ होने से मोती नुसकान भी पंहुचा सकता है |
जैसे मोती रत्न को यदि मेष लग्न का जातक धारण करे, तो उसे लाभ प्राप्त होगा। कारण मेष लग्न में चतुर्थ भाव का स्वामी चंद्र होता है। चतुर्थेश चंद्र लग्नेश मंगल का मित्र है। चतुर्थ भाव शुभ का भाव है, जिसके परिणामस्वरूप वह मानसिक शांति, विद्या सुख, गृह सुख, मातृ सुख आदि में लाभकारी होगा। यदि मेष लग्न का जातक मोती के साथ मूंगा धारण करे, तो लाभ में वृद्धि होगी। 
मोती धारण करने से व्यक्ति में सौम्यता व शीतलता का उदय होता है, मन एकाग्र होता है ओवर थिंकिंग, नेगेटिव थिंकिंग, मानसिक तनाव, एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी समस्याओं में मोती धारण करने से लाभ होता है इसके अलावा लंग्स से जुडी समस्या, अस्थमा, माइग्रेन, साइनस की समस्या, शीत रोग तथा मानसिक रोगों में भी मोती धारण करने से लाभ होता है तथा मानसिक अस्थिरता से व्यक्ति एकाग्रता की और बढ़ने लगता है स्थूल रूप में कहा जाये तो मोती धारण करने से पीड़ित या कमजोर चन्द्रमाँ  के सभी दुष्प्रभावों में लाभ व सकारात्मक परिवर्तन होता है। परंतु आब यहाँ सबसे विशेष बात यही है के प्रत्येक व्यक्ति को मोती धारण नहीं करना चाहिए मोती धारण करना सभी व्यक्तियों के लिए शुभ हो ऐसा बिलकुल भी आवश्यक नहीं है अधिकांश लोग की सोच होती है के मोती तो सौम्य प्रवर्ति का रत्न है और इसे धारण करने से तो मानसिक शांति मिलती है इसलिए हमें भी मोती धारण कर लेना चाहिए पर यहाँ यह बड़ी विशेष बात है के बहुतसी स्थितियों में मोती आपके लिए मारक रत्न का कार्य भी कर सकता है और मोती धारण करने पर बड़े स्वास्थ कष्ट, बीमारियां, दुर्घटनाएं और संघर्ष बढ़ सकता है इसलिए अपनी इच्छा से बिना किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह के मोती नहीं धारण करना चाहिए, वास्तव में कुंडली में चन्द्रमाँ कमजोर होने पर मोती धारण की सलाह केवल उन्ही व्यक्तियों को दी जाती है जिनकी कुंडली में चन्द्रमाँ शुभ कारक ग्रह होता है, क्योंकि मोती धारण करने से कुंडली में चन्द्रमाँ की शक्ति बहुत बढ़ जाती है और ऐसे में यदि चन्द्रमाँ कुंडली का अशुभ फल देने वाला ग्रह हुआ तो मोती पहनना व्यक्ति के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध होगा इसलिए किसी योग्य ज्योतिषी से अपनी कुंडली का विश्लेषण कराने के बाद की मोती धारण करना चाहिए और यदि चन्द्रमाँ आपकी कुंडली का शुभ कारक ग्रह है तो निःसंदेह मोती धारण से बहुत शुभ परिणाम प्राप्त होंगे
ज्योतिषाचार्य के अनुसार मोती, चन्द्र गृह का प्रतिनिधित्व करता है! कुंडली में यदि चंद्र शुभ प्रभाव में हो तो मोती अवश्य धारण करना चाहिए | चन्द्र मनुष्य के मन को दर्शाता है, और इसका प्रभाव पूर्णतया हमारी सोच पर पड़ता है| हमारे मन की स्थिरता को कायम रखने में मोती अत्यंत लाभ दायक सिद्ध होता है| इसके धारण करने से मात्री पक्ष से मधुर सम्बन्ध तथा लाभ प्राप्त होते है! मोती धारण करने से आत्म विश्वास में बढहोतरी भी होती है | हमारे शरीर में द्रव्य से जुड़े रोग भी मोती धारण करने से कंट्रोल किये जा सकते है जैसे ब्लड प्रशर और मूत्राशय के रोग , लेकिन इसके लिए अनुभवी ज्योतिष की सलाह लेना अति आवशयक है, क्योकि कुंडली में चंद्र अशुभ होने की स्तिथि में मोती नुक्सान दायक भी हो सकता है | पागलपन जैसी बीमारियाँ भी कुंडली में स्थित अशुभ चंद्र की देंन होती है , इसलिए मोती धारण करने से पूर्व यह जान लेना अति आवशयक है की हमारी कुंडली में चंद्र की स्थिति क्या है ? छोटे बच्चो के जीवन से चंद्र का बहुत बड़ा सम्बन्ध होता है क्योकि नवजात शिशुओ का शुरवाती जीवन , उनकी कुंडली में स्थित शुभ या अशुभ चंद्र पर निर्भर करता है! यदि नवजात शिशुओ की कुंडली में चन्द्र अशुभ प्रभाव में हो तो बालारिष्ठ योग का निर्माण होता है | फलस्वरूप शिशुओ का स्वास्थ्य बार बार खराब होता है, और परेशानिया उत्त्पन्न हो जाती है , इसीलिए कई ज्योतिष और पंडित जी अक्सर छोटे बच्चो के गले में मोती धारण करवाते है | कुंडली में चंद्रमा के बलि होने से न केवल मानसिक तनाव से ही छुटकारा मिलता है वरन् कई रोग जैसे पथरी, पेशाब तंत्र की बीमारी, जोड़ों का दर्द आदि से भी राहत मिलती है।   
ज्योतिषाचार्य ने बताया की स्त्रियो के नथुनी में मोती धारण करने से लज्जा लावारण अखंड सोभाग्य की प्राप्ति होती है और पति पत्नी में प्रेम प्रसंग या प्रेमिका को पाने के लिए मोती रत्न धारण करने से प्रेम परवान चढ़ाता है। मोती रत्न धारण करने से उदर रोग भी ठीक होता है जिस जातक का बलिष्ठ चन्द्रमा हो , सुख और समृद्धि प्रदान कर रहा हो , माता की लम्बी आयु वाले व्यक्तिओ को चन्द्र की वास्तुओ का दान नही लेना चाहिए | द्रव्य से जुड़े व्यावसायिक और नोकरी पेशा लोगों को मोती अवश्य धारण करना चाहिए , जैसे दूध और जल पेय आदि के व्यवसाय से जुड़े लोग , लेकिन इससे पूर्व कुंडली अवश्य दिखाए |
ज्योतिषाचार्य के मुताबिक इसके साथ साथ वृषभ लग्न के जातकों को मोती से हमेशा दूरी बनाए रखना चाहिए, क्योंकि इस लग्न के जातकों के लिए मोती शुभता प्रदान नहीं करता है। मोती यूं तो शांति का कारक माना गया है लेकिन मोती को भी बगैर ज्योतिषीय सलाह से बिल्कुल भी धारण नहीं करना चाहिए। इसी तरह मिथुन लग्न वालों के लिए भी मोती अशुभ है तो वहीं सिंह लग्न के लिए भी मोती का प्रभाव अशुभ रूप से ही सामने आता है। 
ज्योतिष् शास्त्र के अनुसार रत्नों का हमारे जीवन पर विशेष महत्व रहता है. कोई भी रत्न हमारे जीवन पर किसी न किसी रूप में प्रभाव डालता है. यदि वह शुभ ग्रह का हो तो जीवन सुखमय व परिपूर्ण लगने लगता है और यदि वह ग्रह अशुभ हो तो जीवन में कठिनाइयां बढ़ती जाती है |
अमावस्या के दिन जन्में जातक मोती धारण करेंगे तो उन्हें शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
–  राहू के साथ ग्रहण योग निर्मित होने पर मोती अवश्य ग्रहण धारण करना चाहिए।
कुंडली में चंद्र छठे अथवा आठवें भाव में हो तो मोती पहनने से सकारात्मकता का संचार होता है।
कारक अथवा लग्नेश चंद्र नीच का हो तो मोती पहनें।
इसके अलावा धनु लग्न में जन्में व्यक्ति को भी मोती पहनने से हमेशा हानि ही सामने आती हे तो वहीं ऐसी ही अनिष्टकारी स्थिति कुंभ लग्न वालों के लिए भी कही जाती है। मोती के साथ न तो हीरा  धारण करना चाहिए और न ही पन्ना या नीलम या फिर गोमेद मोती के साथ अनुकुलता प्रदान करता है। क्योंकि उपरोक्त सभी रत्न मोती के विपरित स्वभाव वाले है।यदि चंद्रमा कमज़ोर स्थिति में हो मनुष्य में बैचेनी, दिमागी अस्थिरता, आत्मविश्वास की कमी होती है और इसी कमी के चलते वह बार-बार अपना लक्ष्य बदलता रहता है. जिस के कारण सदैव असफलता ही हाथ लगती है. चंद्रमा आलस्य, कफ, दिमागी असंतुलन, मिर्गी, पानी की कमी, आदि रोग उत्पन्न करता है . यह पानी का प्रतिनिधि ग्रह है. मोती की उत्पत्ति भी पानी में और पानी के द्वारा ही होती है |चंद्रमा यदि आपकी कुंडली के अनुसार शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति शारीरिक रूप से पुष्ट, सुंदर, विनोद प्रिय , सहनशील, भावनाओं की कद्र करने वाला, सच्चा होता है|
ज्योतिषाचार्य के अनुसार यदि आप चंद्र देव का रत्न मोती धारण करना चाहते है, तो 5 से 8 कैरेट के मोती को चाँदी की अंगूठी में जड्वाकर किसी भी शुक्लपक्ष के प्रथम सोमवार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी को दूध, गंगा जल, शक्कर और शहद के घोल में डाल दे | उसके बाद पाच अगरबत्ती चंद्रदेव के नाम जलाये और प्रार्थना करे की हे चन्द्र देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न, मोती धारण कर रहा हूँ , कृपया करके मुझे आशीर्वाद प्रदान करे, तत्पश्चात अंगूठी को निकाल कर ॐ सों सोमाय नम:मंत्र का 108 बार जप करते हुए अंगूठी को शिवजी के चरणों से लगाकर कनिष्टिका  ऊँगली में धारण करे | यथा संभव मोती धारण करने से पहले किसी ब्राह्मण ज्योतिषी से अपनी कुंडली में चंद्रमा की शुभता का अशुभता के बारे में पूरी जानकारी लेनी चाहिए. मोती रत्न शुक्ल पक्ष के सोमवार या किसी विशेष महूर्त के दिन ब्राह्मण के द्वारा शुद्धीकरण व प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही धारण करना चाहिए |
वैसे मोती अपना प्रभाव  जिस दिन मोती धारण किया जाता है उस दिन से 4 दिन के अंदर-अंदर वह अपना प्रभाव देना शुरू कर देता है और औसतन 2 साल एक महीना व 27 दिन में पूरा प्रभाव देता है तत्पश्चात निष्क्रिय होता है। अत: समय पूर्ण होने पर मोती बदलते रहें।वैसे मोती अपना प्रभाव 4 दिन में देना आरम्भ कर देता है, और लगभग 2 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है फिर निष्क्रिय हो जाता है |2 वर्ष के पश्चात् पुनः नया मोती धारण करे |अच्छे प्रभाव प्राप्त करने के लिए साऊथ सी का 5 से 8 कैरेट का मोती धारण करे | मोती का रंग सफ़ेद और कोई काला दाग नहीं होना चाहिए | किन्हीं विशेष परिस्थितियों में मोती बदलने में असमर्थ हों तो उसी अंगूठी को गुनगुने पानी में चुटकी भर शुद्ध नमक डालकर अंगूठी की ऋणात्मक शक्ति को खत्म करें। फिर शुद्ध होने पर अंगूठी को शिवालय लेकर जाएं शिवलिंग पर उसको छुआएं तथा मंदिर में खड़े होकर ही उसे धारण कर लें।
मोती को चाँदी की अंगूठी में बनवाकर सीधे हाथ की कनिष्ठा या अनामिका उंगली में धारण कर सकते हैं इसके अतिरिक्त सफ़ेद धागे या चांदी की चेन के साथ लॉकेट के रूप में गले में भी धारण कर सकते हैं मोती को सोमवार के दिन प्रातः काल सर्व प्रथम गाय के कच्चे दूध व गंगाजल से अभिषेक करके धुप दीप जलाकर चन्द्रमाँ के मन्त्र का तीन माला जाप करना चाहिए फिर पूर्व या उत्तर दिशा की और मुख करके मोती धारण कर लेना चाहिए।
मोती धारण मन्त्र ॐ सोम सोमाय नमः


घड़ी भी बदल सकती है आपका बुरा समय

क्या आपने कभी सोचा है कि दीवार पर टंगी घंड़ियां भी आपके घर में सुख-समृद्धि का कारण बन सकती है| वास्तुशास्त्री श्री सिंह के अनुसार घड़ी की सूईयां एवं पेंडुलम से सकारात्मक उर्जा का संचार होता है. घर में कभी भी बंद घड़ी नहीं रखनी चाहिए बंद घडी से घर की उन्नति रुक जाती है. चलती हुई घडी निरन्तर विकास का प्रतीक होती है. घरों में लगाई जाने जाने वाली घड़िया हमारे जीवन में महत्तवपूर्ण रोल निभाती है |ज्योतिष और वास्तु की बात करें, तो ये अद्वितीय शास्त्र हमें ये ज्ञान देते हैं कि चाहे कैसी भी विपरीत परिस्थितियाँ क्यूँ ना हों, ज्योतिष और वास्तु की सहायता से इन दोषों को कम किया जा सकता है और अपने विपरीत परिस्थितयों को अपने अनुकूल बनाया जा सकता है |
वास्तुशास्त्री श्री सिंह के मुताबिक वास्तु शास्त्र में घड़ी लगाने के भी कुछ नियम बताए गए है। गलत ढंग से लगाई गई घड़ी आपका नुकसान करवा सकती है। वास्तुशास्त्री श्री सिंह के अनुसार सुनकर शायद यकीन न करें लेकिन यह सच है कि दीवाल पर टंगी घंड़ियां भी घर में सुख-समृद्धि लाती हैं। वास्तु शास्त्र  के अनुसार घड़ी की सूईयां एवं पेंडुलम से सकारात्मक उर्जा का संचार होता है। इसलिए कभी भी घर में बंद घड़ी नहीं रखें इससे उन्नति रूक जाती है।
वास्तुशास्त्री श्री सिंह के अनुसार घड़ी का चलते रहना निरन्तर विकास का प्रतीक है। समय से पीछे चलती घड़ी भी वास्तु शास्त्र के अनुसार सही नहीं होती है। व्यवहारिक जीवन में भी घड़ी का समय से पीछे चलना कई बार परेशानी का करण बनता है इसलिए घड़ी का समय सही रखें। घड़ी टांगने का संबंध समय देखने के अलावा घर की साज-सज्जा से भी है। तीसरी बात यह है कि उचित और वास्तु सम्मत स्थान पर घड़ी टांगने से उस कमरे या घर के लोगों का जीवन जहां अनुशासित रहता है, वहीं समय की गति के साथ उनका जीवन भी क्रियाशील यानी एक्टिव रहता है।
घर की बनावट के अनुसार ही दीवार घड़ी या टाइम पीस को लगाने का प्रावधान करना चाहिए। अगर आपके पास छोटा और सीमित आकार वाला घर हो, तो सिर्फ ड्राइंग रूम में ही वॉल-क्लॉक लगाना चाहिए।
जानिए घड़ी को कहां पर लगाएं ???
वास्तुशास्त्री श्री सिंह के अनुसार घड़ी कभी भी दक्षिण दिशा वाली दीवार पर नहीं लगाएं। दक्षिण दिशा को वास्तु शास्त्र  में  शुभ नहीं माना गया है क्योंकि यह यम की दिशा होती है। विज्ञान के अनुसार इस दिशा में निगेटिव एनर्जी होती है। दक्षिण दिशा की दीवार पर घड़ी होने से बार-बार आपका ध्यान इस दिशा की ओर जाएगा। इससे बार-बार दक्षिण दिशा की नकारात्मक उर्जा आप प्राप्त करेंगे।
वास्तुशास्त्री श्री सिंह के अनुसार घड़ी को कभी भी मुख्य द्वार के ठीक सामने अथवा दरवाजे के ऊपर नहीं लगाना चाहिए। इससे घर से बाहर आते और जाते समय आपके आस-पास की उर्जा प्रभावित होती है। इसके परिणामस्वरूप तनाव बढ़ता है। कुछ लोग सोते समय घड़ी तकिया के नीचे रख लेते हैं। ऐसा करने से घड़ी की टिक-टिक से नींद खराब होती है। 
वास्तुशास्त्री श्री सिंह के मुताबिक आजकल जो भी घड़ियां आती हैं वह आमतौर पर बैट्री से चलती हैं। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से जो इलेक्ट्रो-मैग्नेनिटक तरंग निकलता है उसका प्रभाव मस्तिष्क एवं हृदय पर पड़ता है। इसलिए फेंगशुई के साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी तकिये के नीचे घड़ी रखना अच्छा नहीं माना जाता है। ।
जानिए घड़ी की सही दिशा
वास्तुशास्त्री श्री सिंह के अनुसार घडी को दीवार पर लगाने के लिए उत्तर, पूर्व एवं पश्चिम दिशा को आदर्श माना जाता है। इन दिशाओं को पोजेटिव एनर्जी प्रदान करने वाला माना जाता है। ड्रांईंग रूम या बेडरूम में घड़ी ऐसे लगाएं ताकि रूम में प्रवेश करने पर घड़ी पर नज़र जाए। यह भी ध्यान रखें कि घड़ी पर धूल-मिट्टी न जमे।  मधुर संगीत उत्पन्न करने वाली दीवार घड़ी घर के मुख्य हॉल में लगानी चाहिए। इससे सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है। 
जानिए इसके साथ ही साथ क्या करें और क्या न करें ?
दक्षिण दिशा में घड़ी कदापि न लगायें .
घर के मुख्य दरवाज़े के ऊपर भी घड़ी कभी न लगायें.
बंद पड़ी हुयी घड़ियों को यथाशीघ्र सही करवाएं .
यदि घड़ी बिलकुल ख़राब हो गयी हो तो घर में ना रखें .
किसी भी रिश्तेदार को भूल कर भी गिफ्ट में घड़ी ना दें .
यदि घड़ी का समय आगे या पीछे हो गया हो तो उसे सही समय से मिला लें .
घड़ी का समय आगे या पीछे न रखें .
दीवार घड़ी पर कभी धुल न जमने दें, समय समय पे उसे साफ़ करते रहा करें .
घर का माहौल खुशनुमा बनाये रखने के लिए उन घड़ियों को लगायें जिनकी संगीत मधुर हो .
सोते समय तो हरगिज़ भी तकिये के नीचे कोई भी घड़ी न रखें .
घर के पूर्व, उत्तर और पश्चिम में ही घड़ी लगायें .
-घर के ड्राइंग रूम में पेंडुलम वाली घड़ियाँ लगाने से सौभ्य वृधि होती है .
गोल, आयताकार घड़ियाँ शुभ प्रभाव लाती हैं.
जानिए कौन सी घड़ी लकी है—-
वास्तुशास्त्री श्री सिंह के अनुसार घड़ियों का आकार वास्तु शास्त्र में काफी मायने रखता है। इसलिए जब अब घड़ी खरीद रहे हों तो इस बात का ध्यान रखें कि क्या आपकी घड़ी वास्तु शास्त्र के अनुसार आपके लिए लकी है। वास्तु शास्त्र के अनुसार अंडाकार, गोल, अष्टभुजाकार और षट्भुजाकार एवम आयताकार घड़ियाँ शुभ प्रभाव लाती हैं |
जानिए घडी लगते समय क्या रखें सावधानिया
—-स्टडी रूम में पूर्व या वायव्य कोण में घड़ी लगाना सर्वोत्तम रहेगा। इससे जहां वहां कार्यरत अध्ययनकर्ता की एकाग्रता बनी रहेगी, वहीं उनका समय भी फालतू कार्यों और दिमागी उलझनों में बर्बाद नहीं होगा।
—-वास्तुशास्त्री श्री सिंह के अनुसार ड्राइंग रूम में पूर्व या वायव्य कोण में दीवार घड़ी लगाने से घर के सदस्यों की शारीरिक और मानसिक ऊर्जा गतिमान रहेगी। उनके जीवन में नवीनता और गतिशीलता आएगी। पूर्व दिशा में लगाई गई दीवार घड़ी उनको सदैव समय पर जागृत रखेगा और किसी भी आकस्मिक घटना-दुर्घटना के प्रति वे समय रहते सचेत हो जाएंगे। साथ ही घर के सदस्यों का जीवंत व्यवहार बैठक यानी ड्राइंग रूम को आबाद रखेगा और उसमें साज-सज्जा के नए-नए और आधुनिक वास्तु सामग्री का संग्रह होता ही रहेगा। अच्छा ड्राइंग रूम गृहस्थ के सुविचार और अच्छे टेस्ट का प्रतीक बनेगा।
—-यदि ड्राइंग रूम के उत्तर की ओर दीवार घड़ी लगाते हैं, तो आर्थिक कार्य समय पर बनते रहेंगे। घर में धन की आवक समय पर होगी, लेकिन उत्तर की ओर पितर और देवताओं का वास होता है। अत: किसी देवी-देवता की चित्र या फोटो प्रतीक लगी हुई दीवार घड़ी लगाई जाए, तो ड्राइंग की साज-सज्जा में चार चांद लग जाएंगे।
—-वायव्य कोण बदलाव का प्रतीक है। हवा यानी वायु हर समय इस दिशा को साफ करती है। इस दिशा में अगर घड़ी लगाना हो, तो सादा और गोलाकार या अंडाकार नमूने की ही घड़ी लगानी चाहिए, ताकि समय की गति और बदलाव के अच्छे और सुखद क्षण बार-बार आते रहें। जिस प्रकार हवा गोल दायरे में चक्कर काटती है, वैसे ही मानव जीवन भी एक आवृति लिए रहता है। उसमें दुख-सुख अपना चक्कर पूरा करते रहते हैं।
वास्तुशास्त्री श्री सिंह के अनुसार यह भी ध्यान रहे कि जहां भी घड़ी लगाई जा रही है, वहां या उसके आसपास शेर, भालू, सियार गिद्द, सुअर, घडि़याल, बाघ, चीता या सांप आदि परभक्षी व खतरनाक प्राणियों के चित्र नहीं लगाने चाहिए। इससे जहां समय की धारा विरुद्ध हो जाती है, वहीं अन्य प्रकार के वास्तु-दोष घर के सदस्यों की कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं।
—-वास्तुशास्त्री श्री सिंह के अनुसार बेडरूम में सदैव उत्तर या उत्तरपूर्व दिशा में ही घड़ी लगानी चाहिए। वैसे, यहां अधिक खटपट करने वाली क्लॉक नहीं लगानी चाहिए और न ही अलार्म रहित घड़ी। हां, प्रत्येक घंटे चेतावनी देने वाली टबिल क्लॉक बेड रूम में लगाना अच्छा नहीं रहेगा। इससे नींद में खलल पड़ेगा।
—-वास्तु शास्त्र के अनुसार कभी भी घर के मुख्य द्वार या दरवाजे के ऊपर घड़ी लगाना भी शुभ नहीं माना गया है. घर के मुख्य द्वार पर घडी लगाने से घर में तनाव बढ़ता है |
घर में बहुत पुरानी या बार-बार खराब होने वाली और धुंधले शीशे वाली घड़ियां भी नहीं लगनी चाहिए ये की सफलता में बाधक है |
—-आजकल बाजार में जो घड़िया आयी है वह अधिकतर बैट्री से चलती हैं. इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से जो इलेक्ट्रो-मैग्नेनिटक तरंग निकलती है ये हमारे मस्तिष्क एवं हृदय पर बुरा प्रभाव डालती है वास्तुशास्त्र के अनुसार और वैज्ञानिक दृष्टि से ऐसी घड़ियों को तकिये के नीचे नहीं रखना चाहिए |
—-ऑफिस या कार्यस्थल पर लगाई जाने वाली घडी का साइज कुछ बड़ा होना चाहिए ये गाड़ी दिखने में साफ़ सुथरी होनी चाहिए. बहुत पुरानी और रुक-रुक कर चलने वाली घड़ी कार्यालय में नेगेटिव ऊर्जा लाती है |
दीवार की घडी पर कभी भी धूल-मिट्टी न जमने दे समय-समय पर घडी पर जमी धूल मिटटी को साफ़ करते रहे |
—-यदि घडी का शीशा टूटा हो तो उसे समय पर बदल देना चहिये अन्यथा घर में नेगेटिव ऊर्जा आती है|
—-घड़ी को घर पर ऐसे स्थान में लगाए जहा से सभी को आसानी से दिखाई दे |

—-कभी भी बेड के सिरहाने वाली दीवार पर कोई घड़ी या फोटो फ्रेम न लगाए इससे घर के सदस्यों में सर दर्द की समस्या बनी रहती है 

Wednesday, 17 August 2016

रावण सहिंता से समस्या निवारण (नागपाश) प्रयोग -:एक अचूक उपाय** सबसे शक्तिशाली उपाय

दंश चाहे रिश्तो में हो , रुपये पैसे में हो , शादी नौकरी में हो , रोग कर्ज़ में हो । जहर तो परेशान कर ही रहा है थोडा या बहुत ।सर्प चाहे शनि का हो या बिगड़े मंगल का या बिगड़े शुक्र का या कालसर्प का । अब काबू करना ही है । और जीनी है एक खुशहाल जिंदगी , घुटन से दूर ऐसी जिंदगी जिसमे रोज़ रोना न हो एक ख़ुशी भरी जिंदगी जिसमे हर काम बनते जाए कोई भी काम ना बिगड़े ।            
उपाय ::

असली उपाय तो यह है की एक प्रतीकात्मक रूप में (अभिमंत्रित )सांप की केंचुली लो ,कोई हथेली जितनी । इसमें नीला थोथा (जहर) भरो थोडा सा । और इसको काले कपडे में लपेट कर अपने गद्दे के नीचे रख लो । यह एक साक्षात् सर्प के रूप में दब जायेगा । कितना भी बिगड़े से बिगड़ा रिश्ता हो वो सुधर जायेगा अपने आप चला के एक चमत्कार की तरह ।तलाक का बिगड़ा से बिगड़ा मामला भी , और रिश्ते की तो कहना ही क्या । छोटी मोटी पति पत्नी की कलह , किसी का रिश्ते से इंकार इत्यादि सब अपने आप सुधरने लगेंगे ।

यदि यह उपाय मुश्किल लगता है तो ।


जिनको यह न मिले

वो कोई रस्सी ले ले हथेली भर । मुंज (अभिमंत्रित) की हो तो ज्यादा अच्छा । नीला थोथा नहीं मिले तो बाजार से allout liquid ले आये । इसमें रस्सी को भिगो ले ।कपूर जला के उसके ऊपर से घुमा ले उल्टा । काले कपडे में लपेट ले ।और गद्दे के नीचे रख दे । कैसे भी कर ले । ज्यादा असर के लिए अपने सिरहाने मोरपंख भी रख सकते है ।

और निश्चिन्त हो जाये ।

सारी दिक्कत अपने आप सही होने लगेंगी ।


यह जानकारी एक वरिष्टविजय जी  द्वारा दी गई है | 

( यह सारे उपाय किसी जानकार की देखरेख में ही करें | किसी भी त्रुटी के लिए आप स्वयं जवाबदार होंगे लेखक नहीं )

Thursday, 5 May 2016

सही ज्योतिष सलाहकार का चुनाव कैसे करें



ज्योतिष दिव्य विज्ञान विषय की मदद के माध्यम से हर कोई जीवन में बहुत जल्द प्रगति करना चाहता है। शहर में कई लोग अपनी अर्धकचरी ज्योतिष जानकारी से समाज को गुमराह कर रहें हैं। ऐसे में थोड़ी सी सावधानी से आप, ज्योतिष दिव्य विज्ञानं में आपकी आस्था से किया जाने खिलवाड़ को रोक सकतें हैं। साथ ही साथ ज्योतिष पवित्र शास्त्र की गरिमा संरक्षित रखने में भी आपका पुण्य योगदान हो सकेगा।

सदैव ध्यान रखें:

अपनी भविष्यवाणी को बढ़ाचढ़ा कर कर पेश करने वालों को दूर से ही नमस्कार कर लें।

निशुल्क या स्वेच्छाशुल्क द्वारा ज्योतिष परामर्श देने वाले महान पंडित जी से किसी भी तरह का परामर्श लेने के पहले समझ लें ये आपके जीवन में उपयोगी नहीं सिद्ध होगा।

अपनी समस्या या जन्म कुंडली को सोशल साइट्स पर ज्यादा पंडित को दिखाने के फेर में न रहें। इससे भ्रम की स्तिथि का शिकार होकर अपने कर्म में दिशाहीनता को प्राप्त हो सकने की सम्भावना प्रबल ही करेंगे।

जन्मपत्रिका, फलित, समय की विवेचना किसी ऐसे ज्योतिष जानकर से ही प्राप्त करें जो कम से कम एक निर्धारित मात्रा में आपकी पत्रिका और आपको समय दे सकने की स्तिथि में हो।

फ्री परामर्श के वजाय शुल्क / दक्षिणा के साथ ही ज्योतिष परामर्श प्राप्त करने का नियम बांध लें।

दूरभाष के वजाय परामर्श प्राप्ति हेतु अपने ज्योतिष जानकर दोस्त तक व्यक्तिगत रूप से पहुचने का माध्यम ही हितकर जाने। जाहिर सी बात है की किसी का भी personal attention सामने उपस्थित होकर ही प्राप्त करा जा सकता है।

व्यक्तिगत परामर्श के दौरान होने वाला discussion अपनी एक या दो तात्कालिक समस्या तक ही सिमित रखें।

ज्योतिष जानकर भाई से अपनी जीवन में हुए कुछ recent progress/downfall का accurate samay आधारित विवरण discussion के शुरुआत में जानने का प्रयास करें। धयान रखें इस के द्वारा आप पंडित जी की विषय कुशलता तो समझ ही लेंगें साथ ही साथ कुंडली ठीक बनी है या नहीं, ये भी पुष्ट हो सकेगा।

ज्योतिष परामर्श के दौरान सभी बातचीत के तथ्य नोट जरुर करें।

अच्छा समय कब बन रहा है ?

ये जानकारी अवश्य ले। ध्यान रखें आपका वक्त और जन्म पत्रिका कितनी भी दुर्बल क्यों न हो, आने वाला "अच्छा समय की जानकारी मात्र ही आपके हौसले को बुलन्द्कर आपके समय को आज से ही बदल सकने में पूर्णतया सक्षम है"।

यदि आप दुर्बल समय के चलते ग्रह सम्बंधित कोई उपाय करने हेतु गम्भीर, प्रबल इच्छायुक्त एवं द्रर्ण संकल्पित हैं तो आपकी जीवनशैली अनुरूप उपाय की जानकारी हेतु निवेदन अवश्य करें। 

हर उपाय हर किसी के लिए सामान रूप से उपयोगी नहीं साबित होते हैं। व्यक्तिगत परामर्श में बातचीत की संजीदगी के माध्यम से आपकी जीवनशैली के अनुसार ही उपाय बताने की सम्भावना बनती है।

बताये गए उपाय पर कम से कम तीन माह अमल जरुर करें। कुछ शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक उर्जा बदलने के शुरुआती संकेत होते हैं जो आप खुद भी notic कर सकने में समर्थ हैं।

उर्जा संतुलन हेतु किये जा रहें उपाय मन्त्र जप, हवन, नमक सेवन वर्जन, जल सेवन वर्जन, दान, यन्त्र धारण स्रोत/ कवच पाठ के द्वारा बनने वाले आत्मिक वैचारिक बल बदलाव को कैसे समझा जाये ये आपका सलाहकार आपको पूर्व में ही guide कर सकने में समर्थवान हो सकता है।

धयान रखें की उपाय शुरू करते ही 2 हफ्ते के भीतर ( चंद्रमा 180 डिग्री, सूर्य 15 डिग्री गोचर भ्रमण दौरान) ही ग्रहबल वर्धन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। अश्थापूर्वक उपाय करने के बावजूद भी लाभ न मिलने की दशा में अपने astrologer को पुनः संपर्क कर इस बारे में जरुर बताएं।

कलियुग में कोई भी इन्सान किसी भी रूप में आपकी मदद को पूर्णतया तभी तैयार होगा जब आप पूर्ण श्रद्धा भाव से व्यक्तिगत रूप से मिलकर कुछ निवेदन करेगें।

गुरु का स्थान गोविन्द से भी बड़ा है। 

सही नीयत और जानकारी वाले गुरु तक पहुचना एक अनिवार्य नियम है। इसकी अवहेलना से बचकर रहना ही सुमति का परिचायक है, बाकि आपकी मर्जी..

Saturday, 23 May 2015

सप्तमेश मंगल के वैवाहिक जीवन पर दुष्प्रभाव

मंगल का सप्तम में होना पति या पत्नी के लिये हानिकारक माना जाता है,उसका कारण होता है कि पति या
पत्नी के बीच की दूरिया केवल इसलिये हो जाती है क्योंकि पति या पत्नी के परिवार वाले जिसके अन्दर माता या पिता को यह मंगल जलन या गुस्सा देता है,जब भी कोई बात बनती है तो पति या पत्नी के लिये सोचने लायक हो जाती है,और अक्सर पारिवारिक मामलों के कारण रिस्ते खराब हो जाते है। पति की कुंडली में
सप्तम भाव मे मंगल होने से पति का झुकाव अक्सर सेक्स के मामलों में कई महिलाओं के साथ हो जाता है,और पति के कामों के अन्दर काम भी उसी प्रकार के होते है जिनसे पति को महिलाओं के सानिध्य मे आना पडता है। पति के अन्दर अधिक गर्मी के कारण किसी भी प्रकार की जाने वाली बात को धधकते हुये अंगारे की तरफ़ मारा जाता है,जिससे पत्नी का ह्रदय बातों को सुनकर विदीर्ण हो जाता है,अक्सर वह मानसिक बीमारी
की शिकार हो जाती है,उससे न तो पति को छोडा जा सकता है और ना ही ग्रहण किया जा सकता है,पति की माता और पिता को अधिक परेशानी हो जाती है,माता के अन्दर कितनी ही बुराइयां पत्नी के अन्दर दिखाई देने
लगती है,वह बात बात में पत्नी को ताने मारने लगती है,और घर के अन्दर इतना क्लेश बढ जाता है कि पिता के लिये असहनीय हो जाता है,या तो पिता ही घर छोड कर चला जाता है,अथवा वह कोर्ट केश आदि में चला जाता है,इस प्रकार की बातों के कारण पत्नी के परिवार वाले सम्पूर्ण जिन्दगी के लिये पत्नी को अपने साथ ले जाते है। पति की दूसरी शादी होती है,और दूसरी शादी का सम्बन्ध अक्सर कुंडली के दूसरे भाव से सातवें और ग्यारहवें भाव से होने के कारण दूसरी पत्नी का परिवार पति के लिये चुनौती भरा हो जाता है,और पति के लिये दूसरी पत्नी के द्वारा उसके द्वारा किये जाने वाले व्यवहार के कारण वह धीरे धीरे अपने कार्यों से अपने व्यवहार से पत्नी से दूरियां बनाना शुरु कर देता है,और एक दिन ऐसा आता है कि दूसरी पत्नी पति पर उसी तरह से शासन करने लगती है जिस प्रकार से एक नौकर से मालिक व्यवहार करता है,जब भी कोई बात होती है तो पत्नी अपने बच्चों के द्वारा पति को प्रताड़ित  करवाती है,पति को मजबूरी से मंगल की उम्र निकल जाने
के कारण सब कुछ सुनना पडता है।

किसी ग्रह के अशुभ फल देने से क्या क्या घटित हो सकता है |

आइये मोटे तौर पर जाने कि किसी ग्रह के अशुभ फल देने से क्या क्या घटित हो सकता है | ]
सूर्य: सरकारी नौकरी या सरकारी कार्यों में परेशानी, सिर दर्द, नेत्र रोग, हृदय रोग, अस्थि रोग, चर्म रोग, पिता से अनबन आदि।
चंद्र: मानसिक परेशानियां, अनिद्रा, दमा, कफ, सर्दी, जुकाम, मूत्र रोग, स्त्रियों को मासिक धर्म, निमोनिया।
मंगल: अधिक क्रोध आना, दुर्घटना, रक्त विकार, कुष्ठ रोग, बवासीर, भाइयों से अनबन आदि।
बुध: गले, नाक और कान के रोग, स्मृति रोग, व्यवसाय में हानि, मामा से अनबन आदि।
गुरु: धन व्यय, आय में कमी, विवाह में देरी, संतान में देरी, उदर विकार, गठिया, कब्ज, गुरु व देवता में अविश्वास आदि।
शुक्र: जीवन साथी के सुख में बाधा, प्रेम में असफलता, भौतिक सुखों में कमी व अरुचि, नपुंसकता, मधुमेह, धातु व मूत्र रोग आदि।
शनि: वायु विकार, लकवा, कैंसर, कुष्ठ रोग, मिर्गी, पैरों में दर्द, नौकरी में परेशानी आदि।
राहु: त्वचा रोग, कुष्ठ, मस्तिष्क रोग, भूत प्रेत वाधा, दादा से परेशानी आदि।
केतु: नाना से परेशानी, भूत-प्रेत, जादू टोने से परेशानी, रक्त विकार, चेचक आदि।
इस प्रकार ग्रहों के कारकत्व को ध्यान में रखते हुए शास्त्र
सम्मत उपाय करना चाहिए।